निकले थे गरीबों की मदद करने और खुद के हाथ ही जला बैठे Meerut News
एक कहावत है हाथ जला बैठना। यह किठौर के दो दानवीर युवाओं के साथ हो गया। गरीबों की मदद को निकले थे और आपस में ही ऐसा उलझे कि गुस्सा फायरिंग तक पहुंच गया।
[मेरठ, प्रदीप द्विवेदी]। Special Column एक कहावत है हाथ जला बैठना। यह किठौर के दो दानवीर युवाओं के साथ हो गया। गरीबों की मदद को निकले थे और आपस में ही ऐसा उलझे कि गुस्सा फायरिंग तक पहुंच गया। अब हाथ जलना ही था। दोनों पक्ष के 15 लोगों पर मुकदमा हुआ। वैसे तो ऐसा कम ही होता है एक साथ दान बांटने वाले ही आपस में लड़ बैठें और अंजाम फायरिंग तक पहुंच जाए लेकिन मेरठ में ऐसा हो गया। लॉकडाउन में मदद करने वाले खूब सामने आए हैं। यह इस जिले के लिए अच्छा संदेश है। किठौर के संप्रदाय विशेष के दो लोगों ने आपस में पैसा एकत्र किया और गरीबों को खाद्य सामग्री वितरित करने लगे। इसमें से एक ने आरोप लगाया दूसरे पर कि वह अपने संबंधियों को ही राशन बांट रहा है। इससे दोनों में बात बिगड़ गई। इस वाकये से लोगों को सीख लेनी चाहिए।
मुकम्मल समाधान नहीं मिलता
वे लोग जो पूरी कोशिश कर रहे हैं लॉकडाउन का पालन करने को, उनके साथ भी समस्याएं हैं। संकट काल में तो समस्याएं होती हैं और व्यवस्थाएं भी बिगड़ती हैं पर मेरठ में झोल कुछ ज्यादा है। कंट्रोल रूम का फोन नहीं उठता। उठता है तो टरकाने की प्रक्रिया चल पड़ती है। यही हाल है होम डिलीवरी से सामग्री मंगवाने का। किसी का फोन नहीं उठता तो कोई ऑर्डर पहुंचाने की हां करने की बात कहकर भी फोन नहीं उठाता। कोई यह कहता है कि उसका नाम गलत दर्ज कर दिया गया है, वह तो दुकानदार है ही नहीं। कई स्थानों पर अभी भी सामान महंगे दामों पर बिक रहा है। राशन डीलरों के कारनामे अलग ही हैं। इस समय भी दुकान बंद करके चले जाते हैं। निगम के सैनिटाइजेशन का भी अपना अलग ही वाकया है। यहां मुकम्मल समाधान न हो पाना बड़ी समस्या है।
बात वही सोच नई
कानपुर से शुरू हुआ एक अभियान मेरठ में भी सराहा जाने लगा है। विचार है ही काबिले तारीफ। यह अभियान है एक रोटी इनकी भी। इसका मकसद है कि लोग वैसे तो नियम का पालन करते हुए घर में ही रहें पर खाना खाने के बाद एक रोटी या कुछ बचा लें, और उसे इधर-उधर घूमने वाले पशुओं, कुत्ताें के लिए डाल दें। ये खाद्य सामग्री इधर-उधर न फेंकी जाए इसलिए इस अभियान के तहत हर गली में एक बॉक्स रख दिया जाए। बॉक्स ऐसा हो ताकि पशु आराम से खा भी सकें और कोई उसे उखाड़ भी न सके। मेरठ में इसकी शुरुआत की आयुष मित्तल नाम के युवा ने। करीब 54 स्थानों पर स्थापित किया गया है बॉक्स। शहर में और लोग भी इस मिशन से जुडऩे लगे हैं। पुरखे भी यही कहा करते थे। खैर नई सोच के साथ यह बात सामने है।
पाएंगे गुठलियों के दाम
लॉकडाउन में कई ऐसे लोग सामने आए हैं जो विभिन्न उत्पादों की होम डिलीवरी कर रहे हैं, मसलन दूध, खाने-पीने की सामग्री आदि। खास बात यह है कि इनमें से बहुत से लोगों ने अभी नया ही काम शुरू किया था और इस लॉकडाउन में घोषणा कर दी कि होम डिलीवरी का शुल्क नहीं लेंगे। ऐसे लोगों की सराहना हो रही है। कुछ युवा भी हैं जिनका भविष्य का स्टार्टअप ही होम डिलीवरी से सामान पहुंचाने का है। अब इनका सेवाभाव इन्हें अब आम के आम और गुठलियों के दाम दिलाएगा। इसी बहाने काफी लोग ग्राहक हो जाएंगे और जो अभी निश्शुल्क सामान पा रहा है उसे बाद में शुल्क देकर सामान घर तक डिलीवर कराने में दिक्कत नहीं होगी क्योंकि इस संकटकाल में भी बिग बाजार, स्वीगी जैसी बड़ी कंपनियां डिलीवरी चार्ज वसूल रही हैं। सो जो इस समय नहीं वसूलेगा उसको लोग याद रखेंगे।