संकट कटे, मिटे सब पीरा...ऐसा ओडीएफ कहीं नहीं देखा Meerut News
ठेकेदार ने फिर जनता से वसूली शुरू कर दी है। एक महीना पहले जब ठेकेदार ने एंट्री मारकर दूसरों की एंट्री पर वसूली शुरू की थी तो कोना कोना चिल्ला रहा था।
मेरठ, [अनुज शर्मा]। ठेकेदार ने फिर जनता से वसूली शुरू कर दी है। एक महीना पहले जब ठेकेदार ने एंट्री मारकर दूसरों की एंट्री पर वसूली शुरू की थी तो कोना कोना चिल्ला रहा था। ठेकेदार ने उस रास्ते पर पहरा बैठाया था जो उसे भेजने वाले साहब का था ही नहीं। जन के साथ प्रतिनिधि खड़े हुए तो डीएम साहब को भी ताकत याद आ गई। उन्होंने चार दिन बाद एंट्री मारी और साहब लोगों को ठेकेदार को वापस बुलाने पर मजबूर कर दिया। ठेकेदार वापस चला और सभी उसे भूल गए लेकिन ठेकेदार लगा रहा। किसी का गुपचुप साथ लिया तो बाकी को भनक तक नहीं लगने दी। नतीजा सामने है। ठेकेदार फिर हाजिर है। अब फिर से ठेकेदार की चुनौती जिला प्रशासन के सामने है। सभी की नजरें उनपर हैं और डीएम साहब की नजरें संकटमोचन तलाश रही हैं। एक किनारा मिला भी है, अब बस खुशखबरी का इंतजार है।
मैडम तो गुस्से वाली हैं
सीडीओ मैडम स्मार्ट और सौम्य स्वभाव वाली हैं। अफसरों की भले ही क्लास लगाती हों लेकिन कर्मचारी उनके व्यवहार की तारीफें करते नहीं थकते। हाल ही में कर्मचारियों ने भी उनका गुस्सा देख लिया। मैडम की बैठक थी। जिसमें दूसरे विभाग की मैडम भी आई थीं। मेहमान मैडम अपना पर्स बैठक में भूल गईं। मेहमान मैडम ने सीडीओ मैडम को बताया तो एक्शन शुरू हो गया। रात में ही सभागार खुलवाया गया। पर्स मिला लेकिन उसके भीतर रखे हजारों रुपये गायब थे। अब मैडम का गुस्सा देखने लायक था। उन्होंने तीसरी आंख खोली, खाकी भी आ गई लेकिन कुछ नहीं मिला। मैडम ने अपने एक मातहत को भी थाने भेज दिया। अब गुस्से की बारी मातहतों की थी। दरी बिछी तो मैडम ने उन्हें प्यार से समझा लिया लेकिन छानबीन करके ही मातहत को बरी किया। हालांकि उनके सारथी ने जब हंगामा काटा था तो उसे माफी मिल गई थी।
ऐसा ओडीएफ कहीं नहीं देखा
स्वच्छ भारत अभियान में सरकार का कहना है कि शहर हो या गांव, कहीं भी लोग खुले में शौच न करें। इसके लिए घर में ही शौचालय भी बनाया जा रहा है। अपने मेरठ में गरीब हो या अमीर, सभी ने शौचालय बनवा लिए। शहर और गांव सभी को ओडीएफ घोषित करके अफसरों ने अपनी पीठ थपथपा ली। अब आपको सच दिखाते हैं। शहर में पुराना शौचालय होने के बाद भी लोगों ने सरकार से पैसा ले लिया। गांवों में सरकार ने खुद शौचालय बनवाए। यह बात भी सच है कि गांव में अधिकांश लोग आज भी शौच जंगल में ही जाते हैं लेकिन शौचालय के भवन का भी वे सदुपयोग कर रहे हैं। किसी ने उसे स्टोर बनाया तो किसी ने उसमें गृहस्थी बसा ली है। कहीं यह रसोई है तो किसी जगह पशुओं का भूसा भरा है। अफसर हैं कि जानते तो सबकुछ हैं पर बोलते कुछ नहीं।
गरीबी और गरीब दोनों खत्म
बात नौ साल पुरानी है। देशभर के साथ अपने जिले में भी गरीबों की गिनती हुई। सवा लाख से ज्यादा परिवार गरीब मिले। उनके लिए घर, शौचालय, शिक्षा, रोजगार समेत तमाम सुविधाओं की व्यवस्था करने का काम शुरू हुआ। दो साल पहले साहब लोगों ने घोषित कर दिया कि अब पूरे जिले में कोई गरीब ऐसा नहीं बचा जिसके सिर पर छत न हो। यानी सभी गरीबों को पक्के मकान दे दिए गए हैं। सरकार ने फिर भी मकान से वंचित गरीबों की संख्या पूछी तो साहब लोगों ने साफ कह दिया कि अब मेरठ में गरीब नहीं बचे हैं। जनपद का दूसरा दृश्य यह है कि गांव की गलियों में कच्चे मकान और झोपड़ी हैं, जिनमें लोग रह रहे हैं। वे मकान मांग रहे हैं लेकिन साहब लोग हैं कि अड़े हैं। कहना है कि अब नए गरीब अगली गणना में ही सामने आएंगे। तब तक गरीब तरसते रहें।