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CCSU: मरने के बाद मुकदमा, यह समझना मुश्किल होता है खैर... Meerut News

कभी-कभी कुछ ऐसा हो जाता है जिसके बाद यह समझना मुश्किल होता है कि इसे सही कहें अथवा गलत। अब चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के इस बेहद चर्चित मामले को ही देखिए।

By Prem BhattEdited By: Published: Sat, 15 Feb 2020 02:01 PM (IST)Updated: Sat, 15 Feb 2020 02:01 PM (IST)
CCSU: मरने के बाद मुकदमा, यह समझना मुश्किल होता है खैर... Meerut News
CCSU: मरने के बाद मुकदमा, यह समझना मुश्किल होता है खैर... Meerut News

मेरठ, [विवेक राव]। कभी-कभी कुछ ऐसा हो जाता है जिसके बाद यह समझना मुश्किल होता है कि इसे सही कहें अथवा गलत। अब चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के इस बेहद चर्चित मामले को ही देखिए। वर्ष 1994-95 में कुलपति प्रो. केसी पांडेय और तत्कालीन रजिस्ट्रार एन सेठ थे। दोनों अधिकारियों पर कॉलेजों की संबद्धता देने के मामले में अनियमितता और भ्रष्टाचार के आरोप लगे। जांच खूब हुई, हालांकि नतीजा नहीं निकला। साल दर साल कई एजेंसियों ने जांच की। हालांकि आश्चर्यजनक तरीके से कभी अभिलेख गायब होते रहे, तो कभी मामला फाइलों में दबा रहा। इन्हीं सब सरकारी कवायदों के बीच आरोपी पहले विश्वविद्यालय से रिटायर हुए, इसके बाद इस फानी दुनिया से भी विदा हो गए। अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस आपराधिक मामले में मुकदमा दर्ज कराने के लिए कहा है। इसमें पुलिस परेशान है कि मौत के बाद आखिर मुकदमा किस तरह दर्ज कराएं?।

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पकड़ से दूर मुन्‍नाभाई

चौ.चरणसिंह विवि में एमबीबीएस की डिग्री कुछ सालों से चर्चा में है। पिछले साल मुजफ्फरनगर मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की परीक्षा देते समय हाईटेक नकल करते कुछ लोग पकड़े गए थे। विश्वविद्यालय सचल दस्ते ने सभी को दोषी मानते हुए परीक्षा पर रोक लगा दी, हालांकि कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। अब विवि उनकी परीक्षा कराने जा रहा है। दो साल पहले विश्वविद्यालय में एमबीबीएस की कापियों में हेराफेरी का मामला पकड़ा गया था। कई मुन्नाभाईयों के डाक्टर बनने की कहानी सामने आई थी। विश्वविद्यालय के कुछ कर्मचारी भी दोषी पाए गए थे। पुलिस की कार्रवाई से मजबूर होकर विश्वविद्यालय को अपने कर्मचारियों को हटाना पड़ा। अब फिर एसआइटी (विशेष जांच टीम) एमबीबीएस की कापियों को बदलकर अयोग्य लोगों को डाक्टर बनाने के तार को तलाशने में जुटी है।

कुर्सी खिसक न जाए

डिग्री कॉलेजों में जब से आयोग से प्राचार्य नहीं आए, मैनेजमेंट की कृपा से वरिष्ठ शिक्षक प्राचार्य बनने लगे हैं। तब से महाविद्यालयों में शिक्षकों की वरिष्ठता सूची को लेकर सरगर्मी बढ़ती ही जा रही है। पहले मनमानी तरीके से शिक्षकों की वरिष्ठता सूची बनती थी। अब हाईकोर्ट ने ऐसा नियम बना दिया है कि इधर-उधर से आने वाले शिक्षकों की बेचैनी बढ़ गई है। कॉलेजों की नई वरिष्ठता सूची से कई प्राचार्यों की कुर्सी खिसकने वाली है। सबसे बड़े कॉलेज मेरठ कॉलेज में वरिष्ठता सूची की बात पर शिक्षकों ने मोर्चा खोला था। मामला वरिष्ठता का होने की वजह से दो अलग- अलग गुट भी एकजुट हो गए। 22 फरवरी को मेरठ कॉलेज की प्राचार्य रिटायर हो रही हैं। इसपर कॉलेज की वरिष्ठता सूची में जो आगे होगा, उसके सिर पर ताज सजेगा। कुछ वरिष्ठ शिक्षक प्राचार्य के पद को नहीं संभाल पा रहे हैं।

यहां संघे शक्ति कलियुगे

कलियुग में शक्ति संगठन में निहित है, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि येनकेन प्रकारेण हम संगठित होकर गलत और सही में फर्क न कर पाएं। हमारी असली शक्ति स्वयं में निहित होती है। जिसमें जनकल्याण की भावना होती है। जिस संस्था और जिम्मेदारियों से जुड़े हैं, उसका क्रियान्वयन करते हैं। चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय और उससे जुड़े कॉलेजों में इस समय कुछ शिक्षक संघ के नाम पर यूं ही समय बिता रहे हैं। जो समय शिक्षकों को कॉलेज और अपने विभाग में विद्यार्थियों को पढ़ाने में लगाना चाहिए, उस समय को वह परिक्रमा में लगा रहे हैं। कक्षा छोड़कर वह गैरशैक्षणिक कायों में लिप्त हैं। शिक्षा से दूर ऐसे शिक्षक कुलपति के उद्देश्यों पर भी पानी फेर रहे हैं। दूसरे शिक्षक जो संघ से दूर हैं, उनमें इसे लेकर असंतोष है कि कुलपति की नजर न पढ़ाने वाले शिक्षकों पर क्यों नहीं पड़ती?।


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