LokSabha Election Result 2019: भले जीत का चंदन न बना पर कामयाब हो गया गठबंधन
मेरठ-हापुड़ की पांच विधानसभा क्षेत्रों में से चार में विजयी बढ़त बनाने का मतलब है सपा-बसपा-रालोद गठबंधन बहुत हद कामयाब रहा। वोट ट्रांसफर वाला फार्मूला भी लगभग सटीक बैठा।
By Taruna TayalEdited By: Published: Fri, 24 May 2019 01:57 PM (IST)Updated: Fri, 24 May 2019 01:57 PM (IST)
मेरठ, [प्रदीप द्विवेदी]। मेरठ-हापुड़ की पांच विधानसभा क्षेत्रों में से चार में विजयी बढ़त बनाने का मतलब है सपा-बसपा-रालोद गठबंधन बहुत हद कामयाब रहा। दलित- मुस्लिम समीकरण ही नहीं वोट ट्रांसफर वाला फार्मूला भी लगभग सटीक बैठा। हमेशा से भाजपा के लिए वरदान बनने वाले कैंट की वजह से गठबंधन को हार मिली पर यह गुंजाइश अभी बाकी है कि कम से कम मेरठ में यह प्रयोग भविष्य में तो दोहराया ही जा सकता है।उदाहरण के तौर पर दो विधानसभा क्षेत्रों से इसकी तुलना करने से तस्वीर पूरी तरह से साफ दिखाई दे जाती है। लोकसभा चुनाव 2014 में किठौर विधानसभा में बसपा के शाहिद अखलाक और सपा के शाहिद मंजूर को मिलाकर कुल एक लाख 20 हजार 507 वोट मिले थे। इस बार दोनों दल एक हुए तो याकूब को एक लाख 31 हजार 39 वोट वहां से मिले। दक्षिण विधानसभा में वर्ष 2014 में दोनों दलों के प्रत्याशियों को मिलाकर एक लाख 32 हजार 580 वोट मिले थे इस बार याकूब को एक लाख 52 हजार 210 वोट मिले।
सपा बसपा का साथ
सपा बसपा इन दोनों दलों के साथ आ जाने से गठबंधन के प्रत्याशी की जीत पक्की हो जाती अगर भाजपा ने कैंट से जबरदस्त बढ़त न ले ली होती। कैंट हमेशा ही भाजपा के लिए संजीवनी रही है और इस बार फिर हारते हुए राजेंद्र अग्रवाल को हैटिक दिला गई। कैंट हमेशा से ही भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। अन्य चारों विधानसभा क्षेत्रों में याकूब ने बढ़त बनाई है यानी इन चारों में बढ़त का मतलब है कि सपा-बसपा के एक साथ आने से दलित-मुस्लिम समीकरण के हिसाब से याकूब को बसपा के दलित तो मिले ही सपा के मुस्लिम वोट भी उधर ट्रांसफर हुए।
फार्मूला फेल नहीं हुआ
सिर्फ दलित-मुस्लिम ही नहीं अन्य वोट भी बहुत हद तक मिले। यानी मोदी लहर व जबरदस्त चले राष्ट्रवाद के नारे के बीच भी वोट ट्रांसफर वाला फामरूला कामयाब हो रहा था और चार विधानसभा में याकूब फतह करते चले गए। बसपा के कुछ नेता मानते हैं कैंट से वोट ट्रांसफर नहीं हुआ पर कैंट से जितना हासिल हुआ वह काफी है। इस प्रयोग के बावजूद गठबंधन के प्रत्याशी को हार मिली पर इसका मतलब यह नहीं कि फार्मूला फेल हो गया।
सपा बसपा का साथ
सपा बसपा इन दोनों दलों के साथ आ जाने से गठबंधन के प्रत्याशी की जीत पक्की हो जाती अगर भाजपा ने कैंट से जबरदस्त बढ़त न ले ली होती। कैंट हमेशा ही भाजपा के लिए संजीवनी रही है और इस बार फिर हारते हुए राजेंद्र अग्रवाल को हैटिक दिला गई। कैंट हमेशा से ही भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। अन्य चारों विधानसभा क्षेत्रों में याकूब ने बढ़त बनाई है यानी इन चारों में बढ़त का मतलब है कि सपा-बसपा के एक साथ आने से दलित-मुस्लिम समीकरण के हिसाब से याकूब को बसपा के दलित तो मिले ही सपा के मुस्लिम वोट भी उधर ट्रांसफर हुए।
फार्मूला फेल नहीं हुआ
सिर्फ दलित-मुस्लिम ही नहीं अन्य वोट भी बहुत हद तक मिले। यानी मोदी लहर व जबरदस्त चले राष्ट्रवाद के नारे के बीच भी वोट ट्रांसफर वाला फामरूला कामयाब हो रहा था और चार विधानसभा में याकूब फतह करते चले गए। बसपा के कुछ नेता मानते हैं कैंट से वोट ट्रांसफर नहीं हुआ पर कैंट से जितना हासिल हुआ वह काफी है। इस प्रयोग के बावजूद गठबंधन के प्रत्याशी को हार मिली पर इसका मतलब यह नहीं कि फार्मूला फेल हो गया।
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