Shramik Special Train: लौटने की उम्मीद बंधी तो खिल गए चेहरे, कहा- गांव में ही मेहनत करेंगे बच्चे पालेंगे Saharnpur News
54 दिनों के बाद जब सहारनपुर से ट्रेन चली तो कामगारों के चेहरे पर खुशियां दिख रहीं थी। इनका कहना था कि जबतक स्थिति समान्य नहीं हो जाती तबतक शहर नहीं आएंगे।
सहारनपुर, [मनोज मिश्रा]। मुजफ्फरपुर का पवन अपनी व्यथा कहते-कहते फफक पड़ा। बोला कि कोरोना क्या हम लोग लाएं हैं, महामारी में फैक्ट्री बंद हुई तो मालिक ने हिसाब-किताब कर फोन बंद कर लिया। मजदूरी के रुपये कुछ दिन चले और फिर बच्चों को लेकर कदम गांव की तरफ चले तो पुलिस ने ऐसा बर्ताव किया, जैसे कोरोना हम ही लेकर आए हों। मोतिहारी का संजय बोला भइया सालों से मजदूरी करते हैं तब दो वक्त खा पाते थे लेकिन अब लोग हमें भिखारी समझने लगे हैं। रोड पर चलते हुए दारोगा जी गालियां देते हैं, जिसे सुनकर अफसोस होता है, इसलिए अब यहां नहीं रहेंगे, गांव ही लौटेंगे...।
54 दिन बाद सहारनपुर रेलवे स्टेशन का नजारा देखते ही बन रहा था। चारों तरफ पुलिसवाले या रेलकर्मी ही नजर आ रहे थे। सुबह करीब नौ बजे जैसे ही कामगारों को लेकर बस स्टेशन के बाहर पहुंची तो उसमें बैठे लोगों के चेहरे पर वो सुकून नजर आया कि मानो घर लौटने की टूट चुकी उम्मीद अब फिर से बंध गई हो। बेतिया का लल्लन तो इतना भावुक हुआ कि प्लेटफार्म पर प्रवेश से पहले दंडवत प्रणाम किया, जिसे वहां खड़े पुलिसकर्मी तुरंत उठने को कहा।
स्टेशन पर चारो तरफ मीडियाकर्मियों के कैमरों की टिमटिमाती फ्लैशको देख प्रवासी और उत्साहित हो रहे थे। मोतिहारी का पुत्तन बोला, शुक्र है सरकार को गरीबों की याद तो आई। इसी बीच मंडलायुक्त व जिलाधिकारी पहुंचे और सभी को घर लौटने की शुभकामनाएं दी। ट्रेन में सवार सुरेशो अपने छोटे बच्चे को रोटी-अचार खिला रही थी और कह रही थी, कल घर पहुंच जाएंगे फिर तुझे खीर बनाकर खिलाऊंगी। दोपहर एक बजे जैसे ही ट्रेन के इंजन ने हॉर्न बताया तो उसमें सवार कामगारों ने अफसरों की तरफ हाथ जोड़ा और ट्रेन के खुलते ही हाथ हिला कर विदाई ली।