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Sharamik Special Train: सहारनपुर से गए कामगारों के मन में बहुत से थे सवाल, न जाने अब कैसे चलेगा घर का काम?

लॉकडाउन के बीच जब सहारनपुर से श्रमिक स्‍पेशल ट्रेन चली तो कामगरों के मन में रोजगार और परिवार के खर्च को लेकर बहुत से सवाल मन में घूम रहे थे। जिसका समाधान शायद उनके पास न था।

By Prem BhattEdited By: Published: Sat, 16 May 2020 12:50 AM (IST)Updated: Sat, 16 May 2020 12:50 AM (IST)
Sharamik Special Train: सहारनपुर से गए कामगारों के मन में बहुत से थे सवाल, न जाने अब कैसे चलेगा घर का काम?
Sharamik Special Train: सहारनपुर से गए कामगारों के मन में बहुत से थे सवाल, न जाने अब कैसे चलेगा घर का काम?

सहारनपुर, [अश्वनी त्रिपाठी]। प्रवासी कामगारों को लेकर श्रमिक स्पेशल बिहार रवाना हो गई। यह ट्रेन सहारनपुर से बेशक चली गई हो, लेकिन अपने पीछे रोजी से लेकर परिवार पालने तक के अनगिनत सवाल है। कर्ज अदायगी से लेकर चिकित्सकीय आवश्यकताओं की पूर्ति के प्रश्न भी खड़े हैं। जिंदगी से जुड़े इन तमाम प्रश्नों को अब तक कामगार गैर राज्यों में नौकरी कर सुलझा रहे थे। खाली हाथ घर लौटने के बाद कामगारों का आगे भविष्य क्या होगा, इसका जवाब खुद कामगारों के पास भी नहीं। पूछने पर सभी एक ही जवाब देते हैं...। अब देखेंगे बिहार जाकर क्या होता है।

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शुक्रवार दोपहर करीब पौने एक बजे हैं, श्रमिक स्पेशल चलने को तैयार है। ट्रेन में मोतिहारी, बेतिया, मुजफ्फरपुर तथा सीवान व आसपास के 1320 कामगार सवार हैं, जबकि सरकारी तंत्र ट्रेनों के बाहर खड़ा है। सरकारी मशीनरी के चेहरों पर प्रवासी कामगारों को विधिवत रवाना करने का संतोष दिख रहा है, तो कामगारों के चेहरों पर भी अजीब सी बेबसी दिखी, यह बेबसी खाली हुए हाथों की है। बिहार पहुंचकर आने वाले कठिन दिनों का उन्हें अहसास है। बेतिया निवासी सलाउद्दीन खिड़की से झांक रहे हैं। पूछने पर बताते हैं कि वह राजमिस्त्री हैं। साढे तीन सौ रुपये प्रतिदिन का ठेका चंडीगढ़ में लेते थे, तब नौ लोगों के परिवार का खर्च बेतिया में चलता था। घर में खेती भी नहीं है। अब आगे क्या होगा?

कर्ज उतारने के लिए आए थे कमाने

वहीं बगल की सीट पर बैठे कन्हैया बोले कि वे मोतिहारी के निवासी हैं, वह भी चंडीगढ़ में तीन सौ रुपये रोज पर मजदूरी करते थे। परिवार में आठ लोग, भूमिविहीन हैं। बोले कि वे घर जाकर क्या करेंगे, पता नहीं। ट्रेन में सवार रामू मोतिहारी से हैं। जगाधरी की प्लाई कंपनी में 12 हजार पर काम करते थे। कहते हैं कि कर्जा चुकाने के लिए काम करने आए थे। अब नौकरी नहीं रही, कर्ज अलग से है। मोतिहारी के बेरिया निवासी राजेश का दर्द है कि यमुना नगर की प्लाईवुड कंपनी में काम करते थे, परिवार में सात लोगों का खाना खर्चा इससे चलता था। कंपनी मालिक ने उनका बकाया पैसा नहीं दिया, खाने को भी नहीं दिया। मजबूर होकर गांव वापस लौटना पड़ रहा है, कहते हैं, बिहार में काम होता तो यहां क्यों आते, अब हालातों का सामना करना है।

गांव में भी कम है जमीन

मोतिहारी के राजा कहते हैं, प्लाई कंपनी में काम करते थे। बिहार में परिवार में चार बहन हैं, वह इकलौते भाई। बहनों की शादी करनी है, घर पर आधा बीघा से कम जमीन है, इससे परिवार की पूरी रोटी भी नहीं चल पाती। कहते हैं, अब भगवान भरोसे ही गांव वापस जा रहे हैं। शोहराब, विनोद, प्रदीप, अशोक शाह, राजकुमार आदि का कहना था कि अब तो गांव वापस जाना है, आगे क्या होगा अभी कुछ नहीं पता। इस कोरोना ने सब तहस नहस कर दिया। ट्रेन में सवार 1320 मजदूरों में से हर किसी की ऐसी ही कहानी थी, इनके जवाब ढूंढने के लिए श्रमिक एक्सप्रेस सहारनपुर से बिहार को रवाना हो गई है। 


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