क्या मुसीबत है! जर्जर सीवर लाइन भी घोल रही मेरठ के पानी में कैंसर
जर्जर सीवर लाइन भी मेरठ में कैंसर का एक कारण है। दूषित पानी से भूजल में पारा, लेड, कैडमियम जैसे खतरनाक तत्व पहुंच रहे हैं। इससे बड़ी आबादी कैंसर की चपेट में आ रही है।
By Ashu SinghEdited By: Published: Wed, 09 Jan 2019 04:34 PM (IST)Updated: Wed, 09 Jan 2019 04:34 PM (IST)
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। पेयजल लाइनों ने प्यास बुझाई और सीवर लाइनों ने गंदगी को ढोया, लेकिन ये दोनों कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों का सबब भी बन गए हैं। जलापूर्ति और सीवर की पुरानी पाइपों से रिसकर भूजल में पारा, लेड, कैडमियम पहुंचा, जिससे बड़ी आबादी कैंसर की चपेट में है। नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हाइड्रोलोजी, रुड़की की रिपोर्ट में स्पष्ट है कि इसी वजह से काली और हिंडन नदी में घुलनशील आक्सीजन घटी। जलीय जीव भी खत्म हो गए।
जल में आक्सीजन की मौत
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हाइड्रोलॉजी, रुड़की के वैज्ञानिक डा. सीके जैन का कहना है कि शहरों में पेयजल वितरण के लिए खराब गुणवत्ता वाली धातुओं एवं सीवर के लिए लोहे की पाइपों का प्रयोग हुआ। इसमें लगा लेप बहकर न सिर्फ पेयजल में शामिल हुआ, बल्कि उर्वर जमीन में पहुंचकर फसलचक्र में भी दाखिल हुआ। उधर, सीवर की लोहे की पाइपों से कैंसरकारक कैडमियम, क्रोमियम, लेड एवं पारा घुलकर नाले एवं नदियों में पहुंचा। ये रसायन इतने घातक हैं जिसे माइक्रोफिल्टर भी साफ नहीं पाते हैं। हिंडन और काली नदी के किनारे कई गांवों में हैंडपंप से खतरनाक धातुएं निकल चुकी हैं। प्रदूषण कण जल की आक्सीजन खत्म कर देते हैं, जिससे जलीय जीव मर गए। 2003 में नेशनल एन्वॉयरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ‘नीरी’ की रिसर्च रिपोर्ट में साफ हुआ कि सीवेज, पेस्टीसाइड एवं इंडस्ट्री का कचरा कैंसर की बड़ी वजह है।
दर्जनों गांवों में कैंसर
मेरठ नगर निगम से प्रतिदिन 350 एमएलडी सीवेज नालों के जरिए काली नदी में उड़ेला जाता है। सिर्फ 30 फीसद का शोधन किया जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2017 में मेरठ के छह नालों की सैंपलिंग कर जांच की। इसमें कैडमियम, आयरन, लेड, पारा, मालिब्डेनम, एल्मीनियम, निकिल, कापर, आर्सेनिक एवं फ्लोरायड जैसी धातुएं मिली। इनमें से ज्यादातर कैंसरकारक हैं। काली एवं ¨हडन के किनारे बसे दर्जनों गांवों में कैंसर तेजी से फैला। हालांकि अब सुरक्षित धातुओं की पाइप बिछाई जा रही है, किंतु पानी में घुल चुके रसायन का असर दशकों तक बना रहेगा।
30 फीसद बढ़ गए मरीज
डा. उमंग मित्थल का कहना है कि मेरठ में गत पांच साल में 30 फीसद तक कैंसर मरीज बढ़ गए हैं। इसमें जल प्रदूषण के जरिए तमाम रसायन शरीर में पहुंच रहे हैं। तीन साल पहले नालों के पानी से सींची गई सब्जियों की जांच की गई तो उसमें क्रोयियम, कैडमियम, लेड, पारा, आर्सेनिक समेत तमाम खतरनाक धातुएं मिलीं। देहरादून स्थित लैब में जांच हुई तो पता चला कि सब्जियों के सेवन से भी बोनमैरो की बीमारी एवं कैंसर का रिस्क है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी माना है कि वायु एवं जल प्रदूषण से खतरा बढ़ा है।
एनसीआर में हाई रिस्क में मेरठ
आइसीएमआर की रिसर्च के मुताबिक एनसीआर-मेरठ में प्रति लाख कैंसर मरीजों की संख्या 135 तक पहुंच चुकी है। खेतीबाड़ी में दर्जनों प्रकार के रसायनों के प्रयोग, कीटनाशकों की बड़ी खपत एवं टेक्सटाइल कंपनियों से नालों में पहुंचते जहर ने भी कैंसर बढ़ाया है। चर्म शोधन में क्रोमियम, चीनी मिलों में आर्सेनिक, एवं कई अन्य खतरनाक रसायनों का प्रयोग होता है। गैराजों से बहकर बड़ी मात्र में डीजल और चिकनाईयुक्त रसायन नालों में पहुंचने से भी जेनेटिक बीमारियों का खतरा है।
इनका कहना है
कैडमियम, क्रोमियम, लेड, पारा एवं आर्सेनिक खतरनाक रूप से कैंसरकारक धातु हैं। इससे सबसे ज्यादा ब्लड कैंसर का खतरा होता है, जो पश्चिम क्षेत्र में काफी देखा जा रहा है। ये रसायन बोनमैरो को खराब कर एप्लास्टिक एनीमिया भी बनाते हैं।
-डा. राहुल भार्गव, रक्त कैंसर विशेषज्ञ, वेलेंटिस
पेयजल की पाइपों से भी लेड व कैडमियम रिसकर पानी में पहुंचा। सीवेज की लोहे की जर्जर पाइपों से पारा और क्रोमियम नालों से होते हुए नदियों और भूजल में पहुंचा। ¨हडन एवं काली नदी के आसपास कैंसर बढ़ने की यह भी बड़ी वजह है। मल से पानी में कोलीफार्म और उर्वरक से नाइट्रेट एवं फास्फेट का जहर भी घुला है।
-डा. सीके जैन, विभागाध्यक्ष, पेयजल विभाग, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, रुड़की
जल में आक्सीजन की मौत
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हाइड्रोलॉजी, रुड़की के वैज्ञानिक डा. सीके जैन का कहना है कि शहरों में पेयजल वितरण के लिए खराब गुणवत्ता वाली धातुओं एवं सीवर के लिए लोहे की पाइपों का प्रयोग हुआ। इसमें लगा लेप बहकर न सिर्फ पेयजल में शामिल हुआ, बल्कि उर्वर जमीन में पहुंचकर फसलचक्र में भी दाखिल हुआ। उधर, सीवर की लोहे की पाइपों से कैंसरकारक कैडमियम, क्रोमियम, लेड एवं पारा घुलकर नाले एवं नदियों में पहुंचा। ये रसायन इतने घातक हैं जिसे माइक्रोफिल्टर भी साफ नहीं पाते हैं। हिंडन और काली नदी के किनारे कई गांवों में हैंडपंप से खतरनाक धातुएं निकल चुकी हैं। प्रदूषण कण जल की आक्सीजन खत्म कर देते हैं, जिससे जलीय जीव मर गए। 2003 में नेशनल एन्वॉयरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ‘नीरी’ की रिसर्च रिपोर्ट में साफ हुआ कि सीवेज, पेस्टीसाइड एवं इंडस्ट्री का कचरा कैंसर की बड़ी वजह है।
दर्जनों गांवों में कैंसर
मेरठ नगर निगम से प्रतिदिन 350 एमएलडी सीवेज नालों के जरिए काली नदी में उड़ेला जाता है। सिर्फ 30 फीसद का शोधन किया जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2017 में मेरठ के छह नालों की सैंपलिंग कर जांच की। इसमें कैडमियम, आयरन, लेड, पारा, मालिब्डेनम, एल्मीनियम, निकिल, कापर, आर्सेनिक एवं फ्लोरायड जैसी धातुएं मिली। इनमें से ज्यादातर कैंसरकारक हैं। काली एवं ¨हडन के किनारे बसे दर्जनों गांवों में कैंसर तेजी से फैला। हालांकि अब सुरक्षित धातुओं की पाइप बिछाई जा रही है, किंतु पानी में घुल चुके रसायन का असर दशकों तक बना रहेगा।
30 फीसद बढ़ गए मरीज
डा. उमंग मित्थल का कहना है कि मेरठ में गत पांच साल में 30 फीसद तक कैंसर मरीज बढ़ गए हैं। इसमें जल प्रदूषण के जरिए तमाम रसायन शरीर में पहुंच रहे हैं। तीन साल पहले नालों के पानी से सींची गई सब्जियों की जांच की गई तो उसमें क्रोयियम, कैडमियम, लेड, पारा, आर्सेनिक समेत तमाम खतरनाक धातुएं मिलीं। देहरादून स्थित लैब में जांच हुई तो पता चला कि सब्जियों के सेवन से भी बोनमैरो की बीमारी एवं कैंसर का रिस्क है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी माना है कि वायु एवं जल प्रदूषण से खतरा बढ़ा है।
एनसीआर में हाई रिस्क में मेरठ
आइसीएमआर की रिसर्च के मुताबिक एनसीआर-मेरठ में प्रति लाख कैंसर मरीजों की संख्या 135 तक पहुंच चुकी है। खेतीबाड़ी में दर्जनों प्रकार के रसायनों के प्रयोग, कीटनाशकों की बड़ी खपत एवं टेक्सटाइल कंपनियों से नालों में पहुंचते जहर ने भी कैंसर बढ़ाया है। चर्म शोधन में क्रोमियम, चीनी मिलों में आर्सेनिक, एवं कई अन्य खतरनाक रसायनों का प्रयोग होता है। गैराजों से बहकर बड़ी मात्र में डीजल और चिकनाईयुक्त रसायन नालों में पहुंचने से भी जेनेटिक बीमारियों का खतरा है।
इनका कहना है
कैडमियम, क्रोमियम, लेड, पारा एवं आर्सेनिक खतरनाक रूप से कैंसरकारक धातु हैं। इससे सबसे ज्यादा ब्लड कैंसर का खतरा होता है, जो पश्चिम क्षेत्र में काफी देखा जा रहा है। ये रसायन बोनमैरो को खराब कर एप्लास्टिक एनीमिया भी बनाते हैं।
-डा. राहुल भार्गव, रक्त कैंसर विशेषज्ञ, वेलेंटिस
पेयजल की पाइपों से भी लेड व कैडमियम रिसकर पानी में पहुंचा। सीवेज की लोहे की जर्जर पाइपों से पारा और क्रोमियम नालों से होते हुए नदियों और भूजल में पहुंचा। ¨हडन एवं काली नदी के आसपास कैंसर बढ़ने की यह भी बड़ी वजह है। मल से पानी में कोलीफार्म और उर्वरक से नाइट्रेट एवं फास्फेट का जहर भी घुला है।
-डा. सीके जैन, विभागाध्यक्ष, पेयजल विभाग, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, रुड़की
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