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सहारनपुर : मुगल काल की गवाही देता है लखनौती का इतिहास, एसडीएम ने दिए किले से अवैध कब्‍जा हटाने के आदेश

सन 1526 ई. में बाबर लखनौती आया तथा यहीं इब्राहीम लोदी से मुठभेड़ हुई। उसी दौर में लखनौती की नींव पड़ी। पुरातत्व विभाग की लापरवाही के चलते यहां के पुराने किले पर अवैध कब्‍जे हैं। अब एसडीएम ने 11 अगस्त तक इसे खाली करने के आदेश दिए हैं।

By Taruna TayalEdited By: Published: Tue, 27 Jul 2021 12:24 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jul 2021 04:24 PM (IST)
सहारनपुर : मुगल काल की गवाही देता है लखनौती का इतिहास, एसडीएम ने दिए किले से अवैध कब्‍जा हटाने के आदेश
लखनौती के इसी किले पर अवैध कब्जे हैं

सहारनपुर, जेएनएन। एसडीएम ने लखनौती के प्राचीन किले पर अवैध कब्जा मानते हुए 11 अगस्त तक इसे खाली करने के आदेश दिए हैं। कब्जा नहीं हटाने पर 30 दिन बाद बलपूर्वक खाली कराया जाएगा।

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एसडीएम सहारनपुर ने आदेश दिया है कि खसरा नं. 174 पुराना खसरा नंबर 1483/2 व रकबा 8-13-0 आबादी के रूप में और 1359 फसली वर्ष में अंग्रेज एएनडब्ल्यू पौल के नाम अंकित है। भू-अभिलेखों में आबादी जमींदारा खात्मे के बाद आबादी किले के रूप में दर्ज है। इस पर अजहर अब्बास पुत्र हैदर अब्बास, जहीर अब्बास पुत्र फरजंद अली, अली शामीन, मो. आरिफ, मोहम्मद कुमैल निवास कर रहे हैं। पारित आदेश में कब्जाधारकों को 30 दिन के भीतर किला स्वयं खाली करने को कहा है, अन्यथा बलपूर्वक खाली कराया जाएगा।

कब होगा संरक्षण, कहीं अवशेष भी न मिट जाएं

पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के चलते क्षेत्र में अनेक प्राचीन इमारतें खंडहर हो रही हैं। प्रशासन ने लखनौती किले को खाली कराने के आदेश तो दे दिए हैं लेकिन क्या यह भी बिना रखरखाव के समाप्ति की और बढ़ जाएगा।

गंगोह ब्लाक क्षेत्र अनेक पुरानी स्मृतियां व अवशेष समेटे हुए है। अब बचे अवशेष ही कभी आबाद इमारतों की गवाही दे रहे हैं। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रलय द्वारा 14 वर्ष पूर्व गंगोह को ग्रामीण पर्यटन स्थल का दर्जा दे दिया, परंतु पुरातत्व विभाग ने कोई सहयोग पर्यटन मंत्रालय को देने की नहीं सोची। पुरानी स्मृतियां पुरातत्व विभाग की लापरवाही के चलते निजी संपत्तियां बनती चली गई। क्षेत्र के लोग अब भी मानते हैं कि यदि अब बचे अवशेषों की मरम्मत करा कर उन्हें संजो कर रखा जाए तो जहां पुरानी यादें ताजा होंगी वहीं, क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। लखनौती का इतिहास मुगल काल की गवाही दे रहा है।

सन 1526 ई. में बाबर यहां आया तथा यहीं इब्राहीम लोदी से मुठभेड़ हुई, तभी लखनौती की नींव पड़ी। यह तुर्कमानों के अधिकार में था यहां 79694 बीघा में खेती होती थी तथा 17,96,058 दाम मालगुजारी वसूल होती थी। उसी समय लखनौती को बाबर ने अपने एक सिपहसालार को सौंप दिया था। उसके बाद ही यहां विभिन्न इमारतों का निर्माण हुआ। लखनौती में प्रवेश करते ही मुगल काल का किला आज भी विद्यमान है। बताते हैं कि अंग्रेजी शासन में इस किले पर अंग्रेज अधिकारी पोल का कब्जा हो गया था। अब यह स्थानीय निवासियों के कब्जे में है। मुगल काल के हुजरे भी यहां कई स्थानों पर बने हैं। लखनौती, सरकड़, शकरपुर मार्ग पर इनके अवशेष आज भी मौजूद हैं। इसी मार्ग पर बताते हैं कि मुगल काल में बनाई गई ईदगाह के अवशेष मौजूद हैं। इस पूरे क्षेत्र में मुख्य निर्माण भूलभूलैया है। इसका परिसर जहां उपले पाथने व भूसे का कूप बनाने के काम आ रहा है, वहीं अब इसके अंदर पशु बांधे जा रहे हैं। किले की ओर तो प्रशासन का ध्यान चला गया तथा उसे खाली कराने के आदेश दे दिए गए लेकिन क्या अन्य एतिहासिक अवशेषों पर भी प्रशासन स्वत संज्ञान लेगा।


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