ऐसा घोटाला किया...जो थे ही नहीं उन्हें बांट दी छात्रवृत्ति की रेवड़ियां
अंकों के आधार पर फर्जी छात्रों को बांटीं छात्रवृत्ति। मदरसा व स्कूल संचालकों के साथ अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने भी घोटाले में अहम भूमिका निभाई।
By Taruna TayalEdited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 04:10 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2019 04:10 PM (IST)
मेरठ, [पंकज तोमर]। अल्पसंख्यक प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति 2010-11 का घोटाला परत-दर-परत खुलता जा रहा है। आर्थिक अपराध एवं अनुसंधान शाखा (ईओडब्ल्यू) की जांच में सामने आया कि जिन छात्रों का अस्तित्व ही नहीं है, वह भी मैट्रिक में अव्वल नंबरों से उत्तीर्ण हुए। कागजी मेधावियों को अच्छे नंबर पाने के आधार पर ही छात्रवृत्ति बांटी गई। मदरसा व स्कूल संचालकों के अलावा इसमें अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने अहम भूमिका निभाई।
छात्रों का ब्योरा तलब
ईओडब्ल्यू के विवेचकों ने उन छात्रों का ब्योरा तलब किया, जिन्हें छात्रवृत्ति देना दर्शाया गया है। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की ओर से उक्त दस्तावेज ईओडब्ल्यू को उपलब्ध कराए गए। इसके बाद जांच शुरू हुई तो विवेचक भी चौंक गए। मदरसा व जूनियर हाईस्कूलों के जिन छात्र-छात्राओं को बेहतर अंक प्राप्त करने के आधार पर छात्रवृत्ति देना बताया गया है, उनका कहीं अस्तित्व ही नहीं है। फर्जी नाम-पता के अलावा उनके माता-पिता तक के नाम फर्जी पाए गए। स्कूल व मदरसा के संचालकों, प्रबंधकों व प्रधानाचार्यों ने फर्जी छात्र बना दिए और सरकारी फाइलों में उनके दस्तावेज भी फर्जी लगा दिए। कई विद्यालय भी फर्जी पाए गए। इसी आधार पर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने बगैर सत्यापन छात्रवृत्ति व शुल्क प्रति पूर्ति रेवडिय़ों की तरह बांट दी।
सामने आए 11 फर्जी नाम
सूत्रों के मुताबिक, जांच में 11 बच्चों के फर्जी नाम सामने आए हैं। प्राथमिक चरण में इन बच्चों के नाम सामने आने से साफ है कि इसमें आगे चलकर और भी चौंकाने वाले राज उजागर होंगे। जिन संचालकों, प्रबंधकों व प्रधानाचार्यों ने जिस तरह फर्जी बच्चे तैयार कर सरकारी रकम हड़पी, उन पर ईओडब्ल्यू बहुत जल्द बड़ी कार्रवाई करने जा रहा है।
ये हुआ था घोटाला
भारत सरकार द्वारा साल 2010-11 में अल्पसंख्यक प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत करीब 3.5 करोड़ रुपये का गबन हुआ था। अल खिदमत फाउंडेशन के अध्यक्ष तनसीर अहमद की शिकायत पर शासन ने इसकी जांच ईओडब्ल्यू को दी थी। जिले के 145 मदरसों व जूनियर हाई स्कूलों में यह घोटाला सामने आया था। अक्टूबर व नवंबर में तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी और एक लिपिक समेत लगभग 54 लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ था।
इन्होंने कहा
जिन छात्रों का अस्तित्व ही नहीं है उन्हें भी अच्छे नंबरों से मैट्रिक पास दर्शाया गया। इसी आधार पर उन्हें छात्रवृत्ति भी बांट दी गई। आरोपितों ने घोटाला करने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए।
-डा. राम सुरेश यादव, एसपी-ईओडब्ल्यू
एक ही बिल्डिंग में चल रहे तीन स्कूल
ईओडब्ल्यू की जांच में आया कि विकासपुरी में तीन स्कूल एक ही बिल्डिंग में चल रहे हैं। विकासपुरी निवासी एक व्यक्ति इन तीनों स्कूलों के प्रधानाचार्य और प्रबंधक भी खुद है। सवाल है कि एक व्यक्ति तीन जगहों पर दो महत्वपूर्ण पदों का किस तरह निर्वहन कर रहा है। सरकारी तंत्र की आंखों में धूल झोंकने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गई है।
एक हैंडराइटिंग से निकली रकम
छात्रवृत्ति लेने के लिए एक हैंडराइटिंग का इस्तेमाल किया गया। विकासपुरी स्थित एक स्कूल में छात्रवृत्ति रजिस्टर की जांच हुई तो उसमें छात्रों के नाम पर एक जैसी राइटिंग में हस्ताक्षर पाए गए। आरोप है कि इस विद्यालय के प्रधानाचार्य व प्रबंधक ने विद्यार्थियों के नाम पर छात्रवृत्ति ली और खुद डकार ली।
यह भी पढ़ें: न बिल्डिंग, न मान्यता, न छात्र और जारी कर दी करोड़ों की रकम
छात्रों का ब्योरा तलब
ईओडब्ल्यू के विवेचकों ने उन छात्रों का ब्योरा तलब किया, जिन्हें छात्रवृत्ति देना दर्शाया गया है। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की ओर से उक्त दस्तावेज ईओडब्ल्यू को उपलब्ध कराए गए। इसके बाद जांच शुरू हुई तो विवेचक भी चौंक गए। मदरसा व जूनियर हाईस्कूलों के जिन छात्र-छात्राओं को बेहतर अंक प्राप्त करने के आधार पर छात्रवृत्ति देना बताया गया है, उनका कहीं अस्तित्व ही नहीं है। फर्जी नाम-पता के अलावा उनके माता-पिता तक के नाम फर्जी पाए गए। स्कूल व मदरसा के संचालकों, प्रबंधकों व प्रधानाचार्यों ने फर्जी छात्र बना दिए और सरकारी फाइलों में उनके दस्तावेज भी फर्जी लगा दिए। कई विद्यालय भी फर्जी पाए गए। इसी आधार पर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने बगैर सत्यापन छात्रवृत्ति व शुल्क प्रति पूर्ति रेवडिय़ों की तरह बांट दी।
सामने आए 11 फर्जी नाम
सूत्रों के मुताबिक, जांच में 11 बच्चों के फर्जी नाम सामने आए हैं। प्राथमिक चरण में इन बच्चों के नाम सामने आने से साफ है कि इसमें आगे चलकर और भी चौंकाने वाले राज उजागर होंगे। जिन संचालकों, प्रबंधकों व प्रधानाचार्यों ने जिस तरह फर्जी बच्चे तैयार कर सरकारी रकम हड़पी, उन पर ईओडब्ल्यू बहुत जल्द बड़ी कार्रवाई करने जा रहा है।
ये हुआ था घोटाला
भारत सरकार द्वारा साल 2010-11 में अल्पसंख्यक प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत करीब 3.5 करोड़ रुपये का गबन हुआ था। अल खिदमत फाउंडेशन के अध्यक्ष तनसीर अहमद की शिकायत पर शासन ने इसकी जांच ईओडब्ल्यू को दी थी। जिले के 145 मदरसों व जूनियर हाई स्कूलों में यह घोटाला सामने आया था। अक्टूबर व नवंबर में तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी और एक लिपिक समेत लगभग 54 लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ था।
इन्होंने कहा
जिन छात्रों का अस्तित्व ही नहीं है उन्हें भी अच्छे नंबरों से मैट्रिक पास दर्शाया गया। इसी आधार पर उन्हें छात्रवृत्ति भी बांट दी गई। आरोपितों ने घोटाला करने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए।
-डा. राम सुरेश यादव, एसपी-ईओडब्ल्यू
एक ही बिल्डिंग में चल रहे तीन स्कूल
ईओडब्ल्यू की जांच में आया कि विकासपुरी में तीन स्कूल एक ही बिल्डिंग में चल रहे हैं। विकासपुरी निवासी एक व्यक्ति इन तीनों स्कूलों के प्रधानाचार्य और प्रबंधक भी खुद है। सवाल है कि एक व्यक्ति तीन जगहों पर दो महत्वपूर्ण पदों का किस तरह निर्वहन कर रहा है। सरकारी तंत्र की आंखों में धूल झोंकने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गई है।
एक हैंडराइटिंग से निकली रकम
छात्रवृत्ति लेने के लिए एक हैंडराइटिंग का इस्तेमाल किया गया। विकासपुरी स्थित एक स्कूल में छात्रवृत्ति रजिस्टर की जांच हुई तो उसमें छात्रों के नाम पर एक जैसी राइटिंग में हस्ताक्षर पाए गए। आरोप है कि इस विद्यालय के प्रधानाचार्य व प्रबंधक ने विद्यार्थियों के नाम पर छात्रवृत्ति ली और खुद डकार ली।
यह भी पढ़ें: न बिल्डिंग, न मान्यता, न छात्र और जारी कर दी करोड़ों की रकम
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