छह साल बाद खुले नगर निगम के 48 करोड़ के दस घोटाले
वर्ष 2012-13 में नगर निगम के खजाने में हुआ जमकर खेल। ऑडिट टीम ने लगाई आपत्ति तो अफसरों ने दबवा दी!
By Taruna TayalEdited By: Published: Tue, 11 Dec 2018 01:21 PM (IST)Updated: Tue, 11 Dec 2018 01:21 PM (IST)
मेरठ (अनुज शर्मा)। नगर निगम के खजाने में छह साल पहले 48 करोड़ रुपये की सेंधमारी की गई। ऑडिट टीम ने इन सभी घोटालों को पकड़ भी लिया लेकिन उस समय अफसरों ने दबवा लिया। अब ये सभी मामले विधानसभा की लोक लेखा समिति के सामने पहुंचे हैं और समिति ने निगम अफसरों से इन पर जवाब मांगा है।
ऑडिट टीम ने पकड़ी धांधली व अनियमितताएं
नगर निगम का सालाना बजट लगभग 500 करोड़ है। इसमें से लगभग आधी राशि वेतन पर खर्च होती है और बाकी विकास व अन्य जनसुविधाओं पर। वर्ष 2012-13 में निगम की निधि से अफसरों ने खिलवाड़ किया। निगम की आय बढ़ाने, पुराने बकाया की वसूली के बजाय दोनों हाथों से जमकर खर्च किया। वित्तीय अनियमितताएं भी खूब कीं। लापरवाही और धांधली के दस मामलों को ऑडिट टीम ने पकड़कर आपत्ति लगाई और निगम प्रशासन से जवाब मांगा। तत्कालीन अफसरों ने इन्हें दबवा दिया। इन 10 मामलों पर अब विधानसभा की लोक लेखा समिति ने गंभीरता जताते हुए निगम प्रशासन से जवाब मांगा है। इससे अफसरों के हाथ पांव फूले हैं।
सोमवार की बैठक टली
लोक लेखा समिति अध्यक्ष महबूब अली की अध्यक्षता में 10 दिसंबर को इन सभी मामलों पर सुनवाई के लिए विधान भवन में बैठक बुलाई गई थी। इसमें शामिल होने के लिए निगम के मुख्य वित्त एवं लेखाधिकारी संतोष शर्मा लखनऊ गए थे। उन्होंने बताया कि यह बैठक अचानक टाल दी गई। नई तिथि जल्द घोषित होगी।
समाधान नहीं हुआ तो मांगा समय
निगम प्रशासन दस मामलों में से कई का समाधान नहीं कर सका है। कुछ पत्रावलियां भी नहीं मिली हैं। लिहाजा लोक लेखा समिति से समय मांगा है। अब बैठक टलने से समय मिल गया है। सभी का समाधान हो जाएगा।
संतोष शर्मा, मुख्य वित्त एवं लेखाधिकारी
वर्ष 2012-13 के प्रमुख घोटाले
- नीलामी की पूरी धनराशि जमा कराए बिना निगम की जमीन नौ साल की लीज पर दे दी गई। वित्तीय क्षति 3.37 लाख।
- पशुवधशाला का ठेका नहीं छोड़ा। वित्तीय क्षति 62.50 लाख।
- व्यवसायिक वाहनों पर लाइसेंस शुल्क नहीं लगाया। वित्तीय क्षति 10.67 लाख।
-चिकित्सक से प्राकलन प्राप्त किए बिना कर्मियों को 7.45 लाख का अग्र्रिम भुगतान।
- बिना आवश्यकता खरीदे सीवर के ढक्कन। वित्तीय क्षति 11.07 लाख।
- सफाई कर्मचारी होने के बाद भी 70 दिन तक 30 मजदूरों से नाला सफाई कराना, वित्तीय क्षति 3.15 लाख।
- बिना टेंडर, कुटेशन मांगे सामग्र्री की आपूर्ति लेना और स्टॉक बुक में प्रविष्टि नहीं करना। वित्तीय क्षति 9.60 लाख।
- पांच साल तक अवशेष अनुदान को संबंधित विभाग को वापस नहीं किया। न ही उपभोग की अवधि बढ़वाई। वित्तीय क्षति 7.20 करोड़।
- 31 मार्च 2013 को बैंक खाते में अवशेष 62.36 करोड़ था। रोकड़ बही के मुताबिक बकाया राशि 78.94 करोड़ थी। 16.56 करोड़ की गंभीर अनियमितता।
- जलमूल्य की बकाया राशि 12.58 करोड़, हाउस टैक्स की बकाया राशि 10.76 करोड़, दुकान किराया की बकाया राशि 31.77 लाख, कुल 23.68 करोड़ की वसूली के लिए प्रयास नहीं करना।
ऑडिट टीम ने पकड़ी धांधली व अनियमितताएं
नगर निगम का सालाना बजट लगभग 500 करोड़ है। इसमें से लगभग आधी राशि वेतन पर खर्च होती है और बाकी विकास व अन्य जनसुविधाओं पर। वर्ष 2012-13 में निगम की निधि से अफसरों ने खिलवाड़ किया। निगम की आय बढ़ाने, पुराने बकाया की वसूली के बजाय दोनों हाथों से जमकर खर्च किया। वित्तीय अनियमितताएं भी खूब कीं। लापरवाही और धांधली के दस मामलों को ऑडिट टीम ने पकड़कर आपत्ति लगाई और निगम प्रशासन से जवाब मांगा। तत्कालीन अफसरों ने इन्हें दबवा दिया। इन 10 मामलों पर अब विधानसभा की लोक लेखा समिति ने गंभीरता जताते हुए निगम प्रशासन से जवाब मांगा है। इससे अफसरों के हाथ पांव फूले हैं।
सोमवार की बैठक टली
लोक लेखा समिति अध्यक्ष महबूब अली की अध्यक्षता में 10 दिसंबर को इन सभी मामलों पर सुनवाई के लिए विधान भवन में बैठक बुलाई गई थी। इसमें शामिल होने के लिए निगम के मुख्य वित्त एवं लेखाधिकारी संतोष शर्मा लखनऊ गए थे। उन्होंने बताया कि यह बैठक अचानक टाल दी गई। नई तिथि जल्द घोषित होगी।
समाधान नहीं हुआ तो मांगा समय
निगम प्रशासन दस मामलों में से कई का समाधान नहीं कर सका है। कुछ पत्रावलियां भी नहीं मिली हैं। लिहाजा लोक लेखा समिति से समय मांगा है। अब बैठक टलने से समय मिल गया है। सभी का समाधान हो जाएगा।
संतोष शर्मा, मुख्य वित्त एवं लेखाधिकारी
वर्ष 2012-13 के प्रमुख घोटाले
- नीलामी की पूरी धनराशि जमा कराए बिना निगम की जमीन नौ साल की लीज पर दे दी गई। वित्तीय क्षति 3.37 लाख।
- पशुवधशाला का ठेका नहीं छोड़ा। वित्तीय क्षति 62.50 लाख।
- व्यवसायिक वाहनों पर लाइसेंस शुल्क नहीं लगाया। वित्तीय क्षति 10.67 लाख।
-चिकित्सक से प्राकलन प्राप्त किए बिना कर्मियों को 7.45 लाख का अग्र्रिम भुगतान।
- बिना आवश्यकता खरीदे सीवर के ढक्कन। वित्तीय क्षति 11.07 लाख।
- सफाई कर्मचारी होने के बाद भी 70 दिन तक 30 मजदूरों से नाला सफाई कराना, वित्तीय क्षति 3.15 लाख।
- बिना टेंडर, कुटेशन मांगे सामग्र्री की आपूर्ति लेना और स्टॉक बुक में प्रविष्टि नहीं करना। वित्तीय क्षति 9.60 लाख।
- पांच साल तक अवशेष अनुदान को संबंधित विभाग को वापस नहीं किया। न ही उपभोग की अवधि बढ़वाई। वित्तीय क्षति 7.20 करोड़।
- 31 मार्च 2013 को बैंक खाते में अवशेष 62.36 करोड़ था। रोकड़ बही के मुताबिक बकाया राशि 78.94 करोड़ थी। 16.56 करोड़ की गंभीर अनियमितता।
- जलमूल्य की बकाया राशि 12.58 करोड़, हाउस टैक्स की बकाया राशि 10.76 करोड़, दुकान किराया की बकाया राशि 31.77 लाख, कुल 23.68 करोड़ की वसूली के लिए प्रयास नहीं करना।
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