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गठबंधन टूटते ही जमीनी हकीकत आई याद, फिर सड़क पर उतरेगी सपा

गठबंधन टूटने के बाद सपा कार्यकर्ताओं को संदेश मिला है कि सभी मिलकर प्रदेश से लेकर स्थानीय मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरें। सरकार को घेरें।

By Ashu SinghEdited By: Published: Wed, 05 Jun 2019 10:42 AM (IST)Updated: Wed, 05 Jun 2019 10:42 AM (IST)
गठबंधन टूटते ही जमीनी हकीकत आई याद, फिर सड़क पर उतरेगी सपा
गठबंधन टूटते ही जमीनी हकीकत आई याद, फिर सड़क पर उतरेगी सपा
मेरठ,जेएनएन। संघर्ष से निकली सपा जब सत्ता का स्वाद चखने लगी और ‘नेताजी’ की रणनीतियों से दूर होने लगी तो उसे भी गठबंधन की वैसाखी की जरूरत पड़ गई। सपा ने धुर विरोधी दल बसपा से गठबंधन कर लिया पर अब बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के बयान के बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के बयान से स्पष्ट हो गया कि गठबंधन टूट गया है।
आंदोलन का दौर शुरू होगा
गठबंधन टूटते ही सपा को जमीनी हकीकत याद आ गई। अखिलेश यादव ने भी यह दिया कि वह भी अकेले लड़ने को तैयार हैं और इसी के साथ उन्होंने कार्यकर्ताओं को संदेश पहुंचा दिया। कार्यकर्ताओं को संदेश मिला है कि सभी मिलकर प्रदेश से लेकर स्थानीय मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरें। सरकार को घेरें। सपा संघर्ष की पार्टी है और वह फिर से सड़क पर आंदोलन करेगी।
सपाइयों ने रालोद को अपनाया बसपा को छोड़ा
गठबंधन टूटने का फर्क सीधे तौर पर मंगलवार को मेरठ में दिखाई पड़ा। गन्ना मूल्य भुगतान की मांग को लेकर सपा जिलाध्यक्ष व रालोद जिलाध्यक्ष की अगुवाई में कार्यकर्ता ज्ञापन देने पहुंचे। इसमें बसपा पदाधिकारियों को शामिल नहीं किया गया। इससे पहले के हर कार्यक्रम में तीनों दल साथ रहते थे। उधर, रालोद के साथ रहने का मतलब साफ है कि सपा उस रालोद को साथ लेकर चलना चाह रही है जिसे उसने खुद गठबंधन में शामिल किया था।
मिला अध्यक्ष का निर्देश,दिखेगा सड़क पर संघर्ष : अतुल
सपा नेता अतुल प्रधान ने बताया कि वह मंगलवार को लखनऊ में थे और अखिलेश यादव से मिले। संदेश मिला है कि सभी कार्यकर्ता पूरी तैयारी के साथ मुद्दों को लेकर संघर्ष करें। सड़क पर आंदोलन दिखाई दे। जब बसपा ने अलग उप चुनाव लड़ने का एलान किया है तो सपा भी लड़ेगी और जीत दर्ज करेगी। हाल ही में सपा व बसपा के करीब 40 नेताओं की राजनीतिक हत्या हुई है, इसका विरोध आंदोलन के रूप में किया जाएगा।
जुबानी संघर्ष नहीं जमीन पर उतरना पड़ेगा : शाहिद
सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर का कहना है कि सपा संघर्ष पर ही जिंदा रही है। जुबानी संघर्ष के बजाय अब जमीन पर उतरने का वक्त आ गया है। भाजपा ने राष्ट्रीय मुद्दे पर केंद्र में सरकार तो बना ली लेकिन अन्य मुद्दे अभी खत्म नहीं हुए हैं। रोजगार, महंगाई, गरीबी जैसे मुद्दे ऐसे हैं जिस पर सरकार से जवाब मांगा जा सकता है। 1971 में इंदिरा सरकार को 405 सीटों का मैंडेट मिला था पर बाद में जेपी के आंदोलन ने सरकार को हिला दिया था। बसपा मुखिया मायावती ने अगर वोट ट्रांसफर न होने की बात कही है तो इस पर मंथन करना चाहिए। मेरठ में तो सपा ने ही बसपा के प्रत्याशी को लड़ाया और चार विधानसभा क्षेत्र में बढ़त दिलाई। बिजनौर, सहारनपुर की जीत बिना वोट ट्रांसफर के मुमकिन नहीं थी। अब इस समय में पार्टी को नेताजी के संघर्ष वाले रास्ते पर चलना पड़ेगा। सपा में क्षमता है।
अखिलेश का विचार..धोखा खा लो, धोखा मत दो : राजपाल
सपा जिलाध्यक्ष राजपाल सिंह का कहना है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का विचार है कि धोखा खा लो पर धोखा मत दो। वोट ट्रांसफर नहीं हुआ है तो शून्य से 10 सीट बसपा पा गई। 20 फीसद वोट से 40 फीसद तक पहुंच गई। यह राजनीति है। गठबंधन टूट गया है तो 2022 के लिए सपा जुटेगी और अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएगी। सपा को सभी जातियों व सभी धर्म के लोगों का समर्थन हासिल है। 

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