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अतिक्रमण के ‘संक्रमण’ से बीमार हैं मेरे शहर की सड़कें

मेेेेरठ शहर में लोग नगर निगम व पुलिस की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे हैं। यहां सारे अभियान हवा में चलते हैं। शहर की सड़के अ‍तिक्रमण के संक्रमण से बीमार हैं।

By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 31 Mar 2019 12:06 PM (IST)Updated: Sun, 31 Mar 2019 12:06 PM (IST)
अतिक्रमण के ‘संक्रमण’ से बीमार हैं मेरे शहर की सड़कें
अतिक्रमण के ‘संक्रमण’ से बीमार हैं मेरे शहर की सड़कें
मेरठ, [पंकज तोमर]। लोकतंत्र के महापर्व पर फिजा में एक बार फिर आश्वासनों, बयानों और दावों का रंग घुलने लगा है। सियासतदां हर हथकंडा अपनाते हुए लोगों के बीच उतर आए हैं। गुप्तचरों के जरिए गली-मोहल्लों में थाह ली जा रही है। मतदाताओं का मत टटोला जा रहा है। उन्हें मथने के लिए भागदौड़ शुरू कर दी गई है। हर बार सड़कों को अतिक्रमणमुक्त करने के लिए दावे किए गए, लेकिन क्या इस बार कोई मेरे शहर की ‘बीमार’ सड़कों को अतिक्रमण के ‘संक्रमण’ से छुटकारा दिला पाएगा? नगर निगम और ट्रैफिक पुलिस की फाइलों से अभियान बाहर निकल पाएंगे या नहीं? उन्हें सड़कों पर जाम में फंसने के बजाय बिना रुके चलने का अधिकार मिलेगा या नहीं? इस तरह के तमाम सवाल हैं, जिनके प्रति नेताओं और अफसरों के जवाब हमेशा चलताऊ रहे हैं।
सड़कें बन गईं गलियां फुटपाथ पर शोरूम
शहर के तमाम मार्ग अतिक्रमण की चपेट में हैं। सड़कों पर वाहन चलाना तो दूर, पैदल चलना तक दूभर होता है। 95 फीसद से अधिक दुकानों के बाहर फड़ निकाली गई हैं। दिल्ली रोड, जीरो माइल, आबूलेन, बेगमपुल, गढ़ रोड, हापुड़ अड्डा, सोतीगंज, केसरगंज, भुमिया का पुल, रेलवे रोड चौराहा, शारदा गढ़, एल ब्लॉक शास्त्रीनगर, रुड़की रोड, जेल चुंगी, आंबेडकर चौक सिविल लाइन, जलीकोठी, भैंसाली अड्डा आदि तमाम स्थानों पर अतिक्रमण का साया है। दुकानों के आगे फड़, उसके आगे फुटपाथ पर ठेला-पटरी और उनके आगे खड़े होने वाले टेंपो व ई-रिक्शा मुसीबत का सबब बने हैं। सड़कें गलियों में तब्दील हो गई हैं, फुटपाथ पर छोटी-छोटी दुकानें सजी हैं।
104 बार चला अभियान हालात जस के तस
अतिक्रमण हटाने के लिए नगर निगम, यातायात पुलिस और एमडीए ने तीन साल में 104 बार अभियान चलाए। साल 2016 में 22, 2017 में 35 व 2018 में 47 बार अभियान चलाए गए। हर अभियान का फोकस जीरो माइल, बेगमपुल, आबूलेन, सोतीगंज, हापुड़ अड्डा व भुमिया के पुल पर रहा है। जहां-जहां भी अभियान चले, वहीं पर हालात सबसे विकट हैं।
दुकानों के साथ ई-रिक्शा व टेंपो भी वजह
सड़कों पर स्थायी अतिक्रमण के अलावा ई-रिक्शा व टेंपो भी जबरदस्त अतिक्रमण करते हैं। शहर में लगभग 11 हजार ई-रिक्शा और 2500 के आसपास टेंपो हैं। डग्गामार बसों व अन्य गाड़ियों की संख्या भी सैकड़ों में है। प्रमुख मार्गो पर यह सभी वाहन बीच सड़क खड़े हो जाते हैं। एक ओर अतिक्रमण और बीच सड़क वाहनों का रुकना राहगीरों के लिए मुसीबत बन जाता है। रजिस्टर्ड ई-रिक्शा की संख्या करीब 5400 है, जबकि बाकी सब अवैध रूप से दौड़ रही हैं। इन हालात में सड़कें बेहद संकरी हो गई हैं।
शहर में नहीं है एक भी पार्किंग
शहर का दुर्भाग्य यह है कि यहां एक भी पार्किंग नहीं है। तमाम वाहन सड़कों पर खड़े किए जाते हैं। दुकानों, ठेला-पटरी और वाहनों का अतिक्रमण हर मार्ग को संकरा कर देता है। दिल्ली रोड, जीरो माइल, बेगमपुल, गढ़ रोड, हापुड़ अड्डा आदि स्थानों पर दिन में यह हालात हो जाते हैं कि 10 मिनट की दूरी तय करने में 30 मिनट तक लग जाता है।
जिम्मेदान कौन..पुलिस निगम या एमडीए
अतिक्रमण के लिए नगर निगम के अधिकारी यातायात पुलिस व एमडीए के सिर दोष मढ़ते हैं, जबकि ट्रैफिक पुलिस नगर निगम को जिम्मेदार ठहराती है। इस खींचतान के चलते लोग बेहाल हैं और अफसर व नेता खामोशी की चादर ओढ़े बैठे हैं।
अदालत के आदेश भी ठेंगे पर
कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अतिक्रमण हटाने को कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत के आदेश पर नगर निगम व ट्रैफिक पुलिस ने अभियान तो चलाया, लेकिन सिर्फ फाइलों में। वर्तमान स्थिति बताती है कि यहां न अफसर कुछ करना चाहते हैं और नेताओं को वोट बैंक बनाना है।
अतिक्रमण के कारण हो रहे हादसे
अतिक्रमण के कारण शहर में आए दिन हादसे हो रहे हैं। घायलों को तो छोड़िए, इसका खामियाजा लोगों को जान देकर चुकाना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि दुर्घटनाओं को रोकने के लिए भी अधिकारी और नेता कोई पहल नहीं करते। यातायात पुलिस नियमों का पाठ पढ़ाने निकलती है तो उसका कोई पालन नहीं करता। अतिक्रमण जैसी भयावह बीमारी पर अंकुश पाने के लिए अधिकारियों और नेताओं को ठोस कदम उठाना होगा। तभी मेरे शहर की किस्मत बदल सकती है।
ये स्थान उदाहरण-
जीरो माइल, बेगमपुल
यहां करीब छह माह में चार बार अभियान चल चुका है। ट्रैफिक व सिविल पुलिस ने आगे-आगे अतिक्रमण हटवाया और पीछे-पीछे बाजार गुलजार होता चला गया। वर्तमान हालात बेहद खराब हैं।
हापुड़ अड्डा
यह स्थान अफसरों की मुख्य सूची में शामिल रहा है। अतिक्रमण हटाने को लेकर यहां कई बार पुलिस को लोगों के गुस्से का शिकार भी होना पड़ा है। यहां छह माह में तीन बार अभियान चला। अब स्थिति यह है कि वहां अतिक्रमण ज्यों का त्यों है।
टीपीनगर कट
यहां डेढ़ माह पूर्व बड़े स्तर पर अभियान चलाया गया। टीपीनगर के अंदर से आने वाले वाहनों को रांग साइड जाने से रोकने के लिए बेरीकेडिंग भी हुई, परंतु अब न बेरीकेडिंग कहीं है और न ही रांग साइड आना-जाना रुक रहा है। गेट के दोनों ओर अतिक्रमण का साया है।
इन्‍होंने बताया
नगर निगम नहीं, सारी लापरवाही पुलिस की है। निगम अतिक्रमण हटवा देता है, लेकिन पुलिस फिर से अतिक्रमण करा देती है।
राजेश कुमार, अतिक्रमण प्रभारी-नगर निगम
नगर निगम ने फुटपाथों तक को बिकवा रखा है। पुलिस अतिक्रमण हटाती है तो नगर निगम का कोई सहयोग नहीं मिलता।
- संजीव कुमार बाजपेयी, एसपी-यातायात पुलिस
आरोप-प्रत्यारोप में उलङो अफसर, खामियाजा भुगत रही जनता
अफसरों की यह बयानबाजी दर्शाती है कि वह अपने कर्तव्य के प्रति कितना गंभीर हैं। धरातल पर काम करने के बजाय एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर जिम्मेदारी से भाग रहे हैं, जिसका खामियाजा लोग चुका रहे हैं। 

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