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गठबंधन की 'माया' में उलझे छोटे चौधरी, दोराहे पर खड़े लग रहे

रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाते हुए गठबंधन में उलझे।

By Taruna TayalEdited By: Published: Tue, 16 Oct 2018 03:35 PM (IST)Updated: Tue, 16 Oct 2018 03:47 PM (IST)
गठबंधन की 'माया' में उलझे छोटे चौधरी, दोराहे पर खड़े लग रहे
गठबंधन की 'माया' में उलझे छोटे चौधरी, दोराहे पर खड़े लग रहे
मेरठ (संतोष शुक्‍ल)। राजनीति के चतुर खिलाड़ी रहे चौ. अजित सिंह प्रदेश में गठबंधन की डोर को लेकर असमंजस में हैं। लोकसभा चुनाव को लेकर गठबंधन की खीर में मक्खी पड़ने की आशंका में छोटे चौधरी खुलकर नहीं बोल पा रहे। वह जानते हैं कि मायावती को साथ लाना आसान नहीं होगा। उधर, बसपा साथ नहीं आई तो भाजपा को रोकना कठिन होगा। इसी उहापोह के बीच रालोद अपने ही गढ़ में दोराहे पर खड़ा नजर आता है।180 के दशक से प्रदेश में किसान राजनीति का चेहरा व कई बार केंद्रीय मंत्री रहे अजित सिंह इस वक्त सबसे मुश्किल सियासी दौर में हैं। लोकसभा चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं बचा है, जबकि गठबंधन की तान छेड़ने वाली सपा और बसपा अब तक सीटों को लेकर गर्मजोशी से चर्चा नहीं कर पाई हैं। इधर, रालोद की नजर अखिलेश-माया के सियासी कदमों पर टिकी है। अजित जाट-मुस्लिम एवं अनुसूचित वर्ग की तिकड़ी के जरिए चुनाव में उतरने की मंशा पाले हैं। अगर बसपा अकेले लड़ी तो रालोद का मुस्लिम-अनुसूचित समीकरण दरक सकता है।

सपा में दरार से बेकरार
शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव के सामने ताल ठोंककर गठबंधन के गुब्बारे में छेद कर दिया है। एक खेमा मान रहा है कि मायावती अखिलेश के बजाय शिवपाल एवं कांग्रेस के साथ मोर्चा बना सकती हैं। ऐसे में रालोद फिर तन्हा रह जाएगा। इस गठबंधन से भाजपा पर असर नहीं पड़ेगा, किंतु सपा व रालोद को झटका लगेगा। इधर, अजित सिंह एवं जयंत चौधरी लगातार किसानों के बीच पहुंच रहे हैं। अजित की मंशा है कि अगर गठबंधन नहीं हुआ तो भी उनकी पार्टी वजूद बचाने में सफल हो जाए।
माया पर असमंजस
अजित सिंह को पता है कि मायावती अपनी शर्तो की सियासत करती हैं। पश्चिम उप्र में अनुसूचित वर्ग के आंदोलन को लेकर भाजपा की मुसीबतें बढ़ी हैं, जिसका मायावती सियासी फायदा उठाएंगी। वह जानती हैं कि बसपा का परंपरागत वोटर आसानी से गठबंधन के घटक दलों को मिल जाएगा, जबकि जाट-ओबीसी एवं अन्य वोटों को लेकर बसपा आश्वस्त नहीं है। मुलायम के घर में मचे घमासान के बीच बसपा अकेले चुनाव लड़कर फायदा उठाना चाहेगी। उधर, गत वर्ष यूपी विस चुनाव से पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने अजित से हाथ मिलाया, किंतु बाद में वह भी रालोद का हाथ झटककर चले गए। इन चुनावों में रालोद की करारी हार के बाद छोटे चौधरी के लिए 2019 लोकसभा चुनाव अस्तित्व का प्रश्न बन गया है। उधर, भाजपा ने तमाम जाट नेताओं पर दांव खेलकर जहां चौधरी को घेरने का प्रयास किया है, वहीं भाकियू से भाजपा की अंदरूनी आंखमिचौनी ने भी रालोद को परेशान किया है। 

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