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काली का कायाकल्प : जलाशय और पेड़ देंगे काली को नवजीवन Meerut News

नागिन नदी के नाम से प्रसिद्ध काली नदी की सफाई के लिए गांव अंतवाड़ा में उसके उद्गम स्थल पर गुरुवार को भीड़ उमड़ी। इस मौके पर नदी की पूजा-अर्चना की गई और उसके आसपास पौधे रोपे गए।

By Taruna TayalEdited By: Published: Fri, 22 Nov 2019 05:00 PM (IST)Updated: Fri, 22 Nov 2019 05:00 PM (IST)
काली का कायाकल्प : जलाशय और पेड़ देंगे काली को नवजीवन Meerut News
काली का कायाकल्प : जलाशय और पेड़ देंगे काली को नवजीवन Meerut News

मेरठ, [जागरण स्‍पेशल]। काली नदी ईस्ट के उद्गम स्थल मुजफ्फरनगर में खतौली के अंतवाड़ा गांव में एक बार फिर जलधारा फूट पड़ी है। लगभग मर चुकी काली नदी को जिंदा होते देख ग्रामीणों और आसपास के क्षेत्र के लोग भी काफी उत्साहित हैं। नदी की धार अविरल रहे और यह नदी अपने छह-सात दशक पुराने स्वरूप में लौटे इसकी खातिर वैज्ञानिक और तकनीकी पक्ष से भी आगे बढ़ा जा रहा है। इसकी खातिर नदी की 145 बीघा जमीन पर ही जलाशय और री-चार्ज पिट भी खोदे जा रहे हैं। 10 हजार से अधिक पौधे रोपन की योजना है। आइए रवि प्रकाश तिवारी की इस रिपोर्ट में समझते हैं आखिर जलाशय और पौधे रोपने के पीछे का विज्ञान क्या है...

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जलधारा का पूजन किया, रोपे पौधे

नागिन नदी के नाम से प्रसिद्ध काली नदी की सफाई के लिए गांव अंतवाड़ा में उसके उद्गम स्थल पर गुरुवार को भीड़ उमड़ी। इस मौके पर नदी की पूजा-अर्चना की गई और उसके आसपास पौधे रोपे गए। पर्यावरण गोष्ठी में पर्यावरणविदों ने नदियों को जिंदा करने के लिए समाज से आगे आने का आह्वान किया। गोष्ठी में पर्यावरणविद् पदमश्री डा. अनिल जोशी ने कहा कि नदियां एक-एक करके मर रही हैं। हर चीज का विज्ञान है, हमने सभी तरह के विज्ञान पर काम किया। हम चंद्रमा पर जाना चाहते हैं, मंगल पर जाना चाहते हैं, लेकिन प्रकृति के विज्ञान को नहीं समझते। नदियों के मरने का जिम्मेदार समाज ही है। हमने नदियों का भोग किया, पर हमने उसे कुछ नहीं दिया। जरूरत है कि हम पृथ्वी को समझें, प्रकृति को समझें। हरियाणा के किसान पद्मश्री कंवल सिंह चौहान ने कहा कि काली नदी का उद्गमस्थल अंतवाड़ा में है, यह गांव के लिए सौभाग्य की बात है। प्लास्टिक, पॉलिथीन व अन्य कचरा नदी में नहीं जाना चाहिए। गांव का गंदा पानी नदी में नहीं जाना चाहिए। नदियों को बचाने की मुहिम पूरे देश की है, हर देशवासी की है। सभी को आगे आना होगा। इस नदी से स्वच्छ पानी बहेगा, यह हमें उम्मीद है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर्यावरण गतिविधियों के राष्ट्रीय सह संयोजक राकेश कुमार जैन ने कहा कि सभी को स्वच्छ जल मिले, शुद्ध जल मिले व सदा जल मिले नदियों के पुनर्जीवन की बहुत आवश्यकता है। हम नदी को बचाकर पानी को बचा सकते हैं। वर्षा के जल को भूमि में कैसे पहुंचाएं, इसके लिए प्रयास किए जाने चाहिए। अंतवाड़ा में यह अच्छे काम की शुरुआत है। उम्मीद है कि इसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे। नीर फाउंडेशन के निदेशक व नदी पुत्र रमनकांत त्यागी ने कहा कि काली नदी को पुनर्जीवित करने का उन्होंने बीड़ा उठाया। नीर फाउंडेशन एक वर्ष से उद्गमस्थल पर कार्य कर रही है। यहां दो सौ पौधे रोपे गए। सैकड़ों लोगों ने श्रमदान कर दिखा दिया कि वे नदी को पुनर्जीवित करने में हर स्तर पर प्रयास करेंगे। इससे पूर्व उद्गमस्थल पर नदी की पूजा की गई। सैकड़ों लोगों ने रमन त्यागी के नेतृत्व में नदी की सफाई में श्रमदान किया। कार्यक्रम में अर्थ डे फाउंडेशन के संस्थापक राहुल देव, पथिक सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुखिया गुर्जर, भाकियू के तहसील अध्यक्ष भारतवीर आर्य, ब्लाक अध्यक्ष कपिल सोम आदि मौजूद रहे।

छह जलाशय तैयार हैं छह और खोदेंगे

अंतवाड़ा गांव में नदी के किनारे ही छह जलाशय खोद दिए गए हैं। छह और जलाशय बची हुई जमीन पर खोदे जाएंगे। इन जलाशयों में खेत का पानी और गांव का निकलने वाला पानी जमा होकर भूजल स्तर को मेंटेन रखेगा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम भी जल्द दौरा करने वाली है ताकि गांव के घरो-नालियों से निकलने वाले पानी का शोधन कर नदी में पहुंचाने की व्यवस्था की जाए। इसके साथ ही हर 30 फीट की दूरी पर लगभग 300 रीचार्ज पिट भी खोदे जाने हैं। इनमें से कुछ खोद भी दिए गए हैं। चूंकि इस क्षेत्र में जलस्तर ऊंचाई पर है लिहाजा पांच-छह फीट पर ही मिट्टी में गीलापन मिलने लगा है, जो कि शुभ संकेत है।

एक नजर में...

  • 12 तालाब अंतवाड़ा गांव में छह खोद दिए हैं, छह और खोदने हैं
  • 1.65 करोड़ लीटर सालभर में इन तालाबों और पिटो में हो सकेगा जलभंडारण
  • 10000 पेड़ नदी के किनारे अगल-अलग किस्मों के पौधे रोपे जाएंगे
  • 300 पिट रिचार्ज पिट हर 30 फीट की दूरी पर खोद जा रहे हैं

नदियों को बचाने के लिए जल क्रांति जरूरी

आज प्राण वायु खत्म हो रही है। मिट्टी जहरीली हो गई, नदियां सूनी हो गईं। नदियां ऐसी हैं, जैसे हमारे शरीर में धमनियां, जो रुक जाएं तो जीवन खत्म हो जाता है। नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए सरकारी प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन यह केवल उनका काम नहीं। इसके लिए जन क्रांति की जरूरत है। मेरठ, मुजफ्फरनगर क्रांति का गढ़ रहा है। हम यहां से जल क्रांति का बिगुल बजाना चाहते हैं। समाज को नदियों को बचाने के लिए जागृत होना पड़ेगा और सरकार को भी गंभीर होना होगा। नदियों को बचाने के लिए हम राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन चलाने का प्रयास कर रहे हैं। अब समाज को यह दिखाना होगा कि अगली बार वोट हवा, मिट्टी व पानी के लिए मिलेगी।

-पद्मश्री डा. अनिल जोशी, पर्यावरणविद

रासायनिक खेती से दूषित हो रहा पर्यावरण

पिछले 50 वर्षों में रासायनिक खेती से पर्यावरण दूषित हो रहा है। हम साबुन का बहुत उपयोग कर रहे हैं, जिससे पर्यावरण नुकसान पहुंच रहा है। मैं जब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में था, तब प्लास्टिक पर रोक लगाने, रासायनिक खाद का विकल्प ढूंढने की की बात कही थी। आज सरकार पर्यावरण को बचाने के लिए गंभीर हुई। पॉलिथीन व सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाई गई। हमें रासायनिक खाद का प्रयोग भी रोकना होगा। तभी पर्यावरण बच सकेगा।

- पद्मश्री कंवल सिंह चौहान, प्रगतिशील किसान

सघन वृक्षारोपण बारिश कराएंगे

लगभग डेढ़-दो किमी की दूरी में नदी के दोनों किनारों पर सघन वृक्षारोपण की व्यवस्था की जा रही है। वन विभाग के सहयोग से अलग-अलग किस्म के 10 हजार पौधे रोपे जाने की योजना है। इसके पीछे का तर्क है कि सघन वृक्षारोपण होगा तो वह बारिश का बड़ा कारक बनेगा जिससे नदी का प्रवाह भी बना रहेगा। वृक्षारोपण में ब्लॉक प्लांटेशन के तहत अलग-अलग उपवन तैयार करने की योजना है। इसमें फलदार, फूलदार के साथ ही औषधीय पौधों की वाटिका लगायी जाएगी।

एक जलाशय में 13 लाख लीटर पानी

12 जलाशय जो खोदे जा रहे हैं, उन सभी को नदियों का नाम दिया जाएगा। एक जलाशय की क्षमता 13 लाख लीटर प्रतिवर्ष की है। कुछ छोटे भी हैं लिहाजा आकलन के मुताबिक 12 जलाशयों में सालभर में 1.20 करोड़ लीटर जल का भंडारण हो सकेगा जबकि 300 पिटों के जरिए लगभग 45 लाख लीटर जल एकत्रित हो सकता है। एक पिट में लगभग 15 हजार जल भंडारण हो सकता है।

-रमन त्यागी, निदेशक नीर फाउंडेश

घर-घर जाकर संघ जनजागरण करेगा

पर्यावरण संरक्षण को लेकर आरएसएस गंभीर है। संघ की ओर से एक टीम दी गई है। सभी प्रांतों, जिलों में संयोजक बनाए जा रहे हैं। उनकी टीमें बनाई जा रही हैं। टीमें घर-घर जाकर जनजागरण करेंगी। लोगों से पानी की बचत और उनके संचयन को लेकर जागृत करेंगी। लोगों से पॉलिथीन व प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करने की अपील भी करेंगी। उम्मीद है कि इससे पर्यावरण को बचाने में मदद मिलेगी। अंतवाड़ा का यह प्रयास बड़ा बदलाव लाएगा।

- राकेश कुमार जैन, संघ की पर्यावरण गतिविधियों के राष्ट्रीय सह संयोजक

नदी को जिंदा रखने में जलाशयों का बड़ा योगदान : पोसवाल

आइआइटी मुंबई से डिग्री लेने के बाद नमामि गंगे परियोजना के तहत जलाशयों को पुनर्जीवित करने की जिम्मेदारी उठा रहे दिनेश पोसवाल कहते हैं कि नदी को जिंदा रखने में जलाशयों का बेहद महत्वपूर्ण योगदान है। वे बताते हैं, नदी के प्रवाहमान रहने के दो कारक होते हैं। एक तो बारिश के पानी से नदी चलती है। बारिश का पानी सूखने पर नदी सूख जाती है। दूसरा, जहां भूजल स्तर ऊपर होता है और नदी नीचे बहती है। ऐसा होने पर भूजल स्तर का फ्लो नदी की ओर होता है और नदी की धारा चलती रहती है। गंगा को ही ले लीजिए, गंगोत्री से जितना पानी निकलता है, उससे कई गुना पानी हमें हमेशा गंगा में मिलता है। इसकी वजह भूजल स्तर से नदी का कनेक्ट ही है। इसलिए अगर जलाशय या रीचार्ज पिट बनाए जा रहे हैं तो निश्चित तौर पर यहां पानी इकट्ठा होने के बाद नदी की ओर बढ़ेगा और इसका प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा। वैसे भी अंतवाड़ा में भूजल स्तर काफी ऊंचा है। 


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