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मंदी को शिकस्त दे सकती है तकनीकी शिक्षा, चुनौतियों का करना है सामना Meerut News

recession in india इंडस्ट्रीज की मांग के अनुसार जिन संस्थानों में खुद में बदलाव का लिया है वह मंदी को पछाड़ रहे हैं। हालांकि अभी ज्यादातर संस्थानों के सामने चुनौती है।

By Prem BhattEdited By: Published: Fri, 06 Sep 2019 02:57 PM (IST)Updated: Fri, 06 Sep 2019 02:57 PM (IST)
मंदी को शिकस्त दे सकती है तकनीकी शिक्षा, चुनौतियों का करना है सामना Meerut News
मंदी को शिकस्त दे सकती है तकनीकी शिक्षा, चुनौतियों का करना है सामना Meerut News

मेरठ, जेएनएन। recession एजुकेशन हब माने जाने वाले मेरठ में तकनीकी शिक्षा पर भी मंदी का असर है। संस्थान इससे निपटने की कोशिश कर रहे हैं। इंडस्ट्रीज की मांग के अनुसार जिन संस्थानों में खुद में बदलाव का लिया है, वह मंदी को पछाड़ रहे हैं। हालांकि अभी ज्यादातर संस्थानों के सामने चुनौती है।

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शहर में 35 तकनीकी कॉलेज
मेरठ जिले में करीब 35 तकनीकी कॉलेज हैं। हर साल करीब चार से पांच हजार इंजीनियर निकलते हैं। डा. अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी से जुड़े जिले में कुछ संस्थानों को छोड़ दे तो ज्यादातर जगह छात्रों के प्रवेश से लेकर प्लेसमेंट कम हुआ है। विशेषज्ञों की माने तो उच्च शिक्षा में मंदी का असर सीधे तौर पर नहीं है।

फार्मेसी में दिख रहा बूम
छात्र इंजीनियरिंग के अलावा कई अन्य कोर्स की ओर रुख कर रहे हैं। इंजीनियरिंग की बात करें तो इस मंदी में भी कंप्यूटर और आइटी में छात्रों का रुझान अभी भी है। इंजीनियरिंग के कोर ब्रांच में रोजगार कम देखकर युवा दूसरी जगह शिफ्ट हो रहे हैं। पहले फार्मेसी जैसे कोर्स की पूछ नहीं थी। मंदी में फार्मेसी में बूम देखने को मिल रहा है।

इंडस्ट्रीज नहीं करातीं ट्रेनिंग
पहले कंपनियां बीटेक करने वाले युवाओं को प्लेसमेंट के बाद तीन से चार महीने की ट्रेनिंग कराकर रख लेते थे। अब कंपनियां ट्रेनिंग नहीं सीधे इंडस्ट्रीज के हिसाब से तैयार प्रोफेशनल चाहते हैं। मेरठ के कुछ तकनीकी संस्थान इस गैप को भरने की कोशिश कर रहे हैं।

मंदी से उबरने के लिए कुछ उपाय

  • इंजीनियरिंग ग्रेजुएट के सामने स्टार्टअप और स्वरोजगार का विकल्प है, कम दरों पर वह लोन लेकर इसे बढ़ा सकते हैं।
  • संस्थान इंडस्ट्रीज की मांग के अनुसार अपने कोर्स को अपडेट करें, जिससे डिग्री के साथ तकनीकी दक्षता लेकर छात्र इंडस्ट्रीज में पहुंचे।
  • छात्रों को प्रोग्रामिंग लैंग्वेज, साफ्टवेयर, साइबर सिक्योरिटी, क्लाउड कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियली इंटेलीजेंस आदि नए कोर्स को सीखने की कोशिश करें।
  • प्रतियोगी दौर में तकनीकी संस्थानों को अपने ट्रेनिंग का तरीका बदलना होगा। मैनेजमेंट, फैकल्टी को इस ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।


इनका कहना है

प्रदेश के कई संस्थानों में प्रवेश कम हुए हैं। 18 फीसद सीटें ही भर पाई हैं। बच्चा इंजीनियरिंग करना नहीं चाहता है। प्लेसमेंट के लिए अच्छी कंपनियां नहीं आ रही हैं। रोजगार बढ़ेगा तो स्थिति सुधरेगी।
- योगेश मोहन गुप्त, कुलाधिपति-आइआइएमटी विश्वविद्यालय

तकनीकी संस्थानों में 2014 के बाद से मंदी का असर है। नौकरी कम होने और मैन पावर बढ़ने से यह गैप बढ़ा। जो संस्थान अपनी गुणवत्ता का स्तर बनाए रखेंगे। वे ही इस दौर में ठहरेंगे। फिर भी कई नई नौकरियां उपज रहीं हैं। कॉलेजों को क्वालिटी एजुकेशन पर ध्यान देना ही होगा।
- शरद जैन, मैनेजिंग ट्रस्टी, बीआइटी ग्रुप

मंदी का सबसे अधिक असर इंडस्ट्री पर है और उसका असर हम तक आएगा ही। प्लेसमेंट का ग्राफ गिरने या नौकरियों की छंटनी से हमारी दिक्कत बढ़ेगी। सरकार लांग टर्म रिफार्म की ओर है जबकि अभी शॉर्ट टर्म रिफार्म चाहिए। बैंकों के विलय के फैसले से तात्कालिक लाभ नहीं मिलेगा। वैश्विक शिक्षण संस्थानों के लिए भी अर्थव्यवस्था खोलनी चाहिए।
- अमर अहलावत, सह-निदेशक, नीलकंठ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस

सरकार का क्वालिटी कंट्रोल की ओर ध्यान नहीं है। करिकुलम में अभी तक अपेक्षित बदलाव नहीं हुए हैं, उस पर विचार करने की जरूरत है। इस सरकार का स्किल डेवलपमेंट पर बहुत जोर है, लेकिन वह रोजगार में तब्दील नहीं हो पा रहा है। सरकार शिक्षण संस्थानों और इंडस्ट्री के साथ बैठकर इस दिशा में पहल करे तो अपेक्षित परिणाम मिल सकते हैं।
- धर्मेद्र भारद्वाज, निदेशक- महावीर एजुकेशनल पार्क

रोजगार कम होने की वजह से युवाओं का रुझान बदला है। प्रदेश के ज्यादातर कॉलेजों में प्रवेश कम हुए हैं। डा. अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी अब आर्ट आफ ली¨वग के साथ मिलकर इंडस्ट्रीज के हिसाब से छात्रों को तैयार करने के लिए प्रोग्राम शुरू कर रहा है। इससे इस क्षेत्र में सुधार आएगा।
- योगेश त्यागी, चेयरमैन, राधा गोविंद ग्रुप

एजुकेशन सिस्टम पर मंदी का कोई असर नहीं है। बच्चे आज भी पढ़ रहे हैं। फोकस अलग - अलग है। तकनीकी क्षेत्र में कंप्यूटर, आइटी में आज भी छात्र हैं। मेरठ जैसी जगह में तीन से चार लाख में छात्र एक इंजीनियरिंग की डिग्री ले लेता है। इंडस्ट्रीज की मांग के अनुसार अगर इंस्टीट्यूट काम करें और छात्र तैयार करें तो मंदी इस सेक्टर पर असर नहीं डाल पाएगी।
- विष्णु शरण अग्रवाल, चेयरमैन, एमआइईटी ग्रुप


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