हाशिमपुरा : बेटा खोकर भी प्रोफेसर ने बचाई थी आठ मुस्लिमों की जान
1987 के दंगों में मेरठ जल रहा था। ऐसे हालात में भी अमन के पहरुओं ने इंसानियत का दामन नहीं छोड़ा। एक प्रोफेसर ने बेटा खोने के बाद भी आठ मुस्लिमों की जान बचाई थी।
By Ashu SinghEdited By: Published: Sat, 03 Nov 2018 11:24 AM (IST)Updated: Sat, 03 Nov 2018 11:24 AM (IST)
मेरठ (जेएनएन)। वर्ष 1987 के मई माह में मेरठ सांप्रदायिक दंगे की आग में जल रहा था। चारों तरफ लाशें ही लाशें दिख रही थी। मेरठ कॉलेज के एक प्रोफेसर के बेटे पर भी हमला हुआ। बावजूद इसके इन प्रोफेसर ने सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए मुस्लिमों के एक परिवार के आठ लोगों की अपने घर में छिपाकर जान बचाई थी। उस समय के वह अमन के सिपाही साबित हुए थे। इस परिवार को दुख इस बात का है कि जिस बेटे पर हमला किया था। बाद में उसकी भी मौत हो गई थी। हमला करने वाले मुस्लिम ही थे।
दंगों में हुआ था हमला
सुपरटेक पामग्रीन में रहने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कुमार बताते हैं कि उनके पिता स्व. आरएल कुमार मेरठ कॉलेज में प्रोफेसर थे। 1987 में जब सांप्रदायिक दंगा हुआ तो विवेक की उम्र समय 16 वर्ष थी। विवेक का कहना है कि उसके ताऊ पिशोरी लाल के बेटे प्रमोद कुमार और उनके सगे भाई सुभाष कुमार 22 मई 1987 को बाइक से घर लौट रहे थे। छतरी वाले मोड़ पर दोनों पर मुस्लिमों ने हमला कर दिया। प्रमोद की हत्या करके बाइक में आग लगा दी और उसके शव को नाले में फेंक दिया था। सुभाष कुमार गंभीर रूप से घायल हो गए थे। बाद में सुभाष की भी उपचार के दौरान मौत हो गई थी।
मुस्लिमों की जान बचाई
दो बेटे खोकर भी इस परिवार ने सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम की। विवेक के पिता प्रोफेसर आरएल शर्मा उस समय पूर्वा अहिरान स्कूल के पीछे रहते थे। उनसे थोड़े ही दूर मुन्ना प्रिंटिंग प्रेस वालों का परिवार रहता था। इस परिवार पर कुछ हिंदू लोगों ने हमला कर दिया। इस दौरान प्रोफेसर बीच में आ गए। उन्होंने परिवार के आठ सदस्यों को बचाया और अपने घर ले आए। करीब 10 दिन तक अपने घर में पनाह दी। 10 दिन के बाद दंगा शांत हुआ तो उन्हें सुरक्षा में उनके घर भेजा।
हाईकोर्ट के वकील की भी बचाई थी जान
गुलमर्ग सिनेमा के पास से प्रोफेसर आरएल कुमार गुजर रहे थे। उन्होंने देखा कि हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गिरीश गुलाटी को कुछ दंगाइयों ने घेरा हुआ है। उन्होंने उन्हें बचाया और सुरक्षित दिल्ली के लिए रवाना किया।
अभी तक नहीं मिला इंसाफ
प्रोफेसर स्व. आरएल कुमार के बेटे व भतीजे की हत्या के आरोपित कुछ साल के बाद जमानत पर बाहर आ गए थे। मुकदमा अभी भी चल रहा है। अमन के ये सिपाही इंसाफ पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
दंगों में हुआ था हमला
सुपरटेक पामग्रीन में रहने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कुमार बताते हैं कि उनके पिता स्व. आरएल कुमार मेरठ कॉलेज में प्रोफेसर थे। 1987 में जब सांप्रदायिक दंगा हुआ तो विवेक की उम्र समय 16 वर्ष थी। विवेक का कहना है कि उसके ताऊ पिशोरी लाल के बेटे प्रमोद कुमार और उनके सगे भाई सुभाष कुमार 22 मई 1987 को बाइक से घर लौट रहे थे। छतरी वाले मोड़ पर दोनों पर मुस्लिमों ने हमला कर दिया। प्रमोद की हत्या करके बाइक में आग लगा दी और उसके शव को नाले में फेंक दिया था। सुभाष कुमार गंभीर रूप से घायल हो गए थे। बाद में सुभाष की भी उपचार के दौरान मौत हो गई थी।
मुस्लिमों की जान बचाई
दो बेटे खोकर भी इस परिवार ने सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम की। विवेक के पिता प्रोफेसर आरएल शर्मा उस समय पूर्वा अहिरान स्कूल के पीछे रहते थे। उनसे थोड़े ही दूर मुन्ना प्रिंटिंग प्रेस वालों का परिवार रहता था। इस परिवार पर कुछ हिंदू लोगों ने हमला कर दिया। इस दौरान प्रोफेसर बीच में आ गए। उन्होंने परिवार के आठ सदस्यों को बचाया और अपने घर ले आए। करीब 10 दिन तक अपने घर में पनाह दी। 10 दिन के बाद दंगा शांत हुआ तो उन्हें सुरक्षा में उनके घर भेजा।
हाईकोर्ट के वकील की भी बचाई थी जान
गुलमर्ग सिनेमा के पास से प्रोफेसर आरएल कुमार गुजर रहे थे। उन्होंने देखा कि हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गिरीश गुलाटी को कुछ दंगाइयों ने घेरा हुआ है। उन्होंने उन्हें बचाया और सुरक्षित दिल्ली के लिए रवाना किया।
अभी तक नहीं मिला इंसाफ
प्रोफेसर स्व. आरएल कुमार के बेटे व भतीजे की हत्या के आरोपित कुछ साल के बाद जमानत पर बाहर आ गए थे। मुकदमा अभी भी चल रहा है। अमन के ये सिपाही इंसाफ पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
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