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बागपत: उल्लू को बढ़ावा देने की तैयारी, किसानों को मिलेगा लाभ, जानिए उल्लू की खासियत

Benefits of Owls For Farmers देवी लक्ष्मी के वाहक उल्लू के दिन भी अब बहुरने वाले हैं। उल्लू को बढ़ावा देने की तैयारी की जा रही है किसानों को मिलेगा लाभ। चूहे छछूंदर कीट-पतंगे तथा मकौड़े हैं उल्लू का भोजन।

By Jaheer HasanEdited By: Taruna TayalPublished: Wed, 30 Nov 2022 02:03 PM (IST)Updated: Wed, 30 Nov 2022 02:03 PM (IST)
बागपत: उल्लू को बढ़ावा देने की तैयारी, किसानों को मिलेगा लाभ, जानिए उल्लू की खासियत
किसानों को बचाएंगे उल्‍लू, बढ़ावा देने की तैयारी।

बागपत, जहीर हसन। उल्लू को लेकर भले ही कुछ लोग नकारात्मक भाव रखते हों लेकिन पर्यावरण संतुलन को प्रत्येक जीव महत्वपूर्ण है। लक्ष्मी के वाहक उल्लू के दिन भी अब बहुरने वाले हैं। कृषि विभाग चूहों, छछूंदर, कीट-पतंगों तथा मकौड़ों से फसल बचाने को उल्लुओं को बढ़ावा देगा। उल्लू किसानों के दुश्मन चूहों, मकौड़ों व कीट पतंगों आदि को खा जाता है। उल्लू द्वारा फसलों की पहरेदारी करने से कीटनाशक खपत घटेगी और पर्यावरण संतुलन भी बनेगा। किसानों की फसल का उत्पादन भी बढ़ेगा और उनकी लागत में भी कमी आएगी। कृषि रक्षा विभाग अब फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग में कमी लाने को एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन को बढ़ावा देने पर जोर दे रहा है। चूहे, छछूंदर, कीट-पतंगों तथा मकौड़ों से गेहूं, सरसों, धान और गन्ना आदि फसलों में काफी नुकसान होता है। इस समस्या से मुक्ति पाने को अब उप निदेशक कृषि रक्षा अशोक कुमार यादव ने विभागीय अधिकारियों को उल्लुओं को बढ़ावा देने का निर्देश दिया है।

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ऐसे मिलेगा बढ़ावा

उल्लू रात्रिचर प्राणी है। रात में वह भोजन की तलाश में निकलता है। वह चूहे, छछूंदर, कीट-पंगतों और मकौड़ों को खाता है। कृषि कर्मी किसानों को जागरूक करेंगे कि उल्लू को न मारें। उनके घोंसले तथा अंड़े नष्ट न करें। ये पुराने पेड़ व खंडहर में रहते हैं, इसलिए उनसे छेड़छाड़ न करें। उल्लू स्वयं घोंसला न बनाकर दूसरे के खाली घोंसले में रहता है। इसलिए खाली घोंसले नष्ट न करें। इनके लिए घोंसले बनवाकर पेड़ों पर टांगने को लेकर किसानों को प्रेरित किया जाएगा।

यह भी जानिए

खरपतवार, कीट, चूहे व रोग से फसल उत्पादन में 15 प्रतिशत नुकसान होता है। इसमें चूहे से छह प्रतिशत नुकसान होता है। बागपत में चूहे से गन्ना, धान, गेहूं व सरसों आदि फसल में प्रत्येक वर्ष लगभग 200 करोड़ रुपये के नुकसान का आकलन है।

मेरठ व आसपास के जिलों में पाई जाने वाली प्रजातियां

मेरठ और आसपास के क्षेत्रों में खटखूसर या स्पाटेड आउलेट, रुस्तख या कामन बार्न आउल, एशियन बैरड आउलेट, ब्राउन हाक आउल, ब्राउन फिश आउल, इंडियन ईगल आउल, ऐशियन बैरड आउल, शार्ट अर्नड आउल, इंडियन स्कूपस आउल, छोटी कनूठी या ओरियंटल स्कूपस आउल, ओरियंटल स्कूपस आउल प्रजातियों के उल्लू पाए जाते हैं। इनमें खटखूसर, एशियन बैरड आउल, छोटी कनूठी को छोड़कर अन्य प्रजातियों के उल्लू या तो यदा कदा दिखाई देते हैं या संकट ग्रस्त प्रजातियों की सूची में हैं।

इनका कहना है...

विभगीय उप निदेशक का उल्लुओं को बढ़ावा देने का निर्देश मिला है। उल्लुओं की महत्ता से किसानों को अवगत कराया जा रहा है।

- संदीप पाल, जिला कृषि रक्षा अधिकारी

भारतीय वन्य जीव अधिनियम 1972 की अनुसूची एक के तहत उल्लू संरक्षित प्राणी है। इनके शिकार या तस्करी या पकड़ने पर तीन वर्ष सजा हो सकती है।

- डा. हेमंत सेठ, डीएफओ।

जानिए उल्लू की खासियत

एडीओ कृषि महेश कुमार खोखर ने बताया कि उल्लू की धरती पर पारिस्थितिकी संतुलन बनाने में अच्छी भूमिका है। उल्लू हर साल एक हजार चूहे का शिकार करता है। यह इंसान के मुकाबले 10 गुना धीमी आवाज सुन लेता है। सिर को दोनों ओर 135 डिग्री घुमा लेता है। पलकें न होने से हर समय आंखें खुली रहती हैं। उड़ने में ज्यादा आवाज नहीं करते।


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