आवारा कुत्तों और बंदरों के खौफ से शहरवासियों को कब मिलेगी राहत
दिनोंदिन खौफ का पर्याय बनते जा रहे आवारा कुत्ते और बंदर मेरठवासियों के लिए बड़ी मुसीबत का सबब बन रहे हैं। इसने छुटकारा कब मिलेगा यह कह पाना अभी मुश्किल है।
By Ashu SinghEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 01:49 PM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 01:49 PM (IST)
मेरठ, जेएनएन। शहर की 20 लाख आबादी खौफ में है। यह खौफ आवारा कुत्तों और बंदरों का है। घरों में लोग बंदरों से असुरक्षित हैं तो सड़क व पार्को में आवारा कुत्तों के चलते भय का मौहाल बना है। बंदरों से तो जिला अस्पताल तक सुरक्षित नहीं है। इनके हमले से कई जानें भी जा चुकी हैं। इनसे निजात दिलाने की जिम्मेदारी नगर निगम की है,अधिकारी इस जिम्मेदारी को मानते भी हैं लेकिन पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का हवाला देकर इन्हें पकड़ने से बचते रहे।
कागजी प्लान पेश किया
जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट सख्त हुआ तो नगर निगम ने कागजी प्लान पेश कर दिया। यह सिलसिला सालों से जारी है। सड़कों पर घूमते बेसहारा पशुओं से निजात के लिए पहली बार इंतजाम तो हुए हैं लेकिन ये नाकाफी हैं। डेयरियों को शहर से बाहर करने में भी निगम नाकाम रहा। जनता परेशान है,शिकायतों का अंबार लगा है लेकिन इस गंभीर समस्या को लेकर न तो जनप्रतिनिधि चिंतित हैं और न शासन। नतीजा,पूरा शहर आवारा आतंक की चपेट में है।
हाईकोर्ट में डाली थी याचिका
शहर में खौफ का पर्याय बने आवारा कुत्ते,बंदर,सड़कों पर घूमते बेसहारा पशु और डेयरियों को शहर से बाहर करने जैसे मुद्दों पर मोहम्मद असलम,विनय चौधरी और मदन लाल यादव ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका डाली थी। इस पर गत चार जनवरी को हाईकोर्ट ने मेरठ नगर निगम और बनारस नगर निगम के अधिकारियों को पांच फरवरी तक डेयरियों को शहर से बाहर कैटल कालोनी में शिफ्ट करने,आवारा कुत्तों को आबादी वाले स्थान से पकड़कर शहर के बाहर शिफ्ट करने और आवारा पशुओं से निजात दिलाने का आदेश दिया था।
रिपोर्ट से हाईकोर्ट संतुष्ट नहीं
आठ मार्च और फिर 15 मार्च को सुनवाई हो चुकी है। नगर निगम अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट से हाईकोर्ट संतुष्ट नहीं है। दरअसल,नगर निगम अधिकारियों ने महज कागजी प्लान बनाया जबकि अदालत बार-बार चार जनवरी के आदेश के सापेक्ष की गई कार्रवाई की रिपोर्ट मांग रहा है। अगली सुनवाई पांच अप्रैल को होगी। पहले भी हाईकोर्ट ऐसे आदेश देता रहा है लेकिन नगर निगम और शासन ने कभी कोई ठोस कदम उठाना मुनासिब नहीं समझा।
चालान करते हैं पर रिकवरी नहीं
नगर निगम क्षेत्र में दो हजार से अधिक अवैध डेयरियां संचालित हैं। हाईकोर्ट के आदेश पर नगर निगम और एमडीए अभी तक अब्दुल्लापुर गांव के पास जमीन चिह्न्ति कर सके हैं। कैटल कालोनी बसाने का कोई प्लान नहीं बनाया है। नगर निगम अधिकारियों ने डेयरी संचालकों के साथ बैठक तक नहीं की है। कार्रवाई केवल चालान काटने तक सीमित है। प्रति डेयरी 20 हजार रुपये जुर्माना किया जा रहा है,मगर वसूला नहीं जा रहा।
शासन की मनाही का बहाना
डेयरियों के गोबर से नाले-नालियां जाम हैं। जली कोठी समेत कई मोहल्लों में घनी आबादी के बीच डेयरियां चलने से लोग परेशान हैं। आवारा कुत्तों और बंदरों से पूरा शहर परेशान है। इन्हें पकड़ने,कुत्तों की नसबंदी और एंटी रेबीज वैक्सीनेशन करने के निर्देश कई बार नगर निगम अधिकारियों को दिए लेकिन हर बार कह दिया जाता है कि इनको पकड़ने के लिए शासन की मनाही है। डेयरियों को बाहर करने के मामले में भी निगम अधिकारियों का यही जवाब होता है। डेयरियों के चलते शहर में गोबर का निस्तारण बड़ी चुनौती बन चुका है।
केवल 260 बेसहारा पशु पकड़े,बाकी घूम रहे
शहर की सड़कों पर दुर्घटना का कारण बने बेसहारा पशुओं को रखने के लिए शासन ने गोशाला और गोवंश संवर्धन एवं संरक्षण केंद्र खोलने की योजना बनाई है। नगर निगम ने सूरजकुंड और अछरौंडा में अस्थायी गोवंश संर्वधन एवं संरक्षण केंद्र खोले हैं। यहां 260 बेसहारा पशु रखे गए हैं। वहीं बड़ी संख्या में बेसहारा पशु सड़कों पर घूम रहे हैं। हालांकि, नगर निगम का दावा है कि बराल परतापुर में स्थायी गोशाला का निर्माण पूरा होने के बाद 650 बेसहारा पशुओं को रखने का इंतजाम हो जाएगा।
नसबंदी और इंजेक्शन का प्लान हवा-हवाई
नगर निगम अधिकारियों ने आवारा कुत्तों की नसबंदी करने और एंटी रेबीज वैक्सीन लगाने का प्लान बनाया है। एनिमल केयर सोसायटी से अनुबंध की बात कही जा रही है। प्लान के अनुसार,एनिमल केयर सोसायटी आवारा कुत्तों को जहां से पकड़ेगी नसबंदी के बाद एंटी रेबीज वैक्सीन लगाकर वहीं पर छोड़ेगी। यह प्लान कागज पर ही है। आवारा कुत्ते रोज हमले कर रहे हैं। जिला अस्पताल में प्रतिदिन औसतन 100 लोगों को रेबीज इंजेक्शन लगाए जाते हैं। आवारा कुत्तों के चलते स्वास्थ्य विभाग को बड़ा बजट भी खर्च करना पड़ रहा है।
कागजी प्लान पेश किया
जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट सख्त हुआ तो नगर निगम ने कागजी प्लान पेश कर दिया। यह सिलसिला सालों से जारी है। सड़कों पर घूमते बेसहारा पशुओं से निजात के लिए पहली बार इंतजाम तो हुए हैं लेकिन ये नाकाफी हैं। डेयरियों को शहर से बाहर करने में भी निगम नाकाम रहा। जनता परेशान है,शिकायतों का अंबार लगा है लेकिन इस गंभीर समस्या को लेकर न तो जनप्रतिनिधि चिंतित हैं और न शासन। नतीजा,पूरा शहर आवारा आतंक की चपेट में है।
हाईकोर्ट में डाली थी याचिका
शहर में खौफ का पर्याय बने आवारा कुत्ते,बंदर,सड़कों पर घूमते बेसहारा पशु और डेयरियों को शहर से बाहर करने जैसे मुद्दों पर मोहम्मद असलम,विनय चौधरी और मदन लाल यादव ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका डाली थी। इस पर गत चार जनवरी को हाईकोर्ट ने मेरठ नगर निगम और बनारस नगर निगम के अधिकारियों को पांच फरवरी तक डेयरियों को शहर से बाहर कैटल कालोनी में शिफ्ट करने,आवारा कुत्तों को आबादी वाले स्थान से पकड़कर शहर के बाहर शिफ्ट करने और आवारा पशुओं से निजात दिलाने का आदेश दिया था।
रिपोर्ट से हाईकोर्ट संतुष्ट नहीं
आठ मार्च और फिर 15 मार्च को सुनवाई हो चुकी है। नगर निगम अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट से हाईकोर्ट संतुष्ट नहीं है। दरअसल,नगर निगम अधिकारियों ने महज कागजी प्लान बनाया जबकि अदालत बार-बार चार जनवरी के आदेश के सापेक्ष की गई कार्रवाई की रिपोर्ट मांग रहा है। अगली सुनवाई पांच अप्रैल को होगी। पहले भी हाईकोर्ट ऐसे आदेश देता रहा है लेकिन नगर निगम और शासन ने कभी कोई ठोस कदम उठाना मुनासिब नहीं समझा।
चालान करते हैं पर रिकवरी नहीं
नगर निगम क्षेत्र में दो हजार से अधिक अवैध डेयरियां संचालित हैं। हाईकोर्ट के आदेश पर नगर निगम और एमडीए अभी तक अब्दुल्लापुर गांव के पास जमीन चिह्न्ति कर सके हैं। कैटल कालोनी बसाने का कोई प्लान नहीं बनाया है। नगर निगम अधिकारियों ने डेयरी संचालकों के साथ बैठक तक नहीं की है। कार्रवाई केवल चालान काटने तक सीमित है। प्रति डेयरी 20 हजार रुपये जुर्माना किया जा रहा है,मगर वसूला नहीं जा रहा।
शासन की मनाही का बहाना
डेयरियों के गोबर से नाले-नालियां जाम हैं। जली कोठी समेत कई मोहल्लों में घनी आबादी के बीच डेयरियां चलने से लोग परेशान हैं। आवारा कुत्तों और बंदरों से पूरा शहर परेशान है। इन्हें पकड़ने,कुत्तों की नसबंदी और एंटी रेबीज वैक्सीनेशन करने के निर्देश कई बार नगर निगम अधिकारियों को दिए लेकिन हर बार कह दिया जाता है कि इनको पकड़ने के लिए शासन की मनाही है। डेयरियों को बाहर करने के मामले में भी निगम अधिकारियों का यही जवाब होता है। डेयरियों के चलते शहर में गोबर का निस्तारण बड़ी चुनौती बन चुका है।
केवल 260 बेसहारा पशु पकड़े,बाकी घूम रहे
शहर की सड़कों पर दुर्घटना का कारण बने बेसहारा पशुओं को रखने के लिए शासन ने गोशाला और गोवंश संवर्धन एवं संरक्षण केंद्र खोलने की योजना बनाई है। नगर निगम ने सूरजकुंड और अछरौंडा में अस्थायी गोवंश संर्वधन एवं संरक्षण केंद्र खोले हैं। यहां 260 बेसहारा पशु रखे गए हैं। वहीं बड़ी संख्या में बेसहारा पशु सड़कों पर घूम रहे हैं। हालांकि, नगर निगम का दावा है कि बराल परतापुर में स्थायी गोशाला का निर्माण पूरा होने के बाद 650 बेसहारा पशुओं को रखने का इंतजाम हो जाएगा।
नसबंदी और इंजेक्शन का प्लान हवा-हवाई
नगर निगम अधिकारियों ने आवारा कुत्तों की नसबंदी करने और एंटी रेबीज वैक्सीन लगाने का प्लान बनाया है। एनिमल केयर सोसायटी से अनुबंध की बात कही जा रही है। प्लान के अनुसार,एनिमल केयर सोसायटी आवारा कुत्तों को जहां से पकड़ेगी नसबंदी के बाद एंटी रेबीज वैक्सीन लगाकर वहीं पर छोड़ेगी। यह प्लान कागज पर ही है। आवारा कुत्ते रोज हमले कर रहे हैं। जिला अस्पताल में प्रतिदिन औसतन 100 लोगों को रेबीज इंजेक्शन लगाए जाते हैं। आवारा कुत्तों के चलते स्वास्थ्य विभाग को बड़ा बजट भी खर्च करना पड़ रहा है।
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