Move to Jagran APP

हमने देखी है गणतंत्र दिवस की वो महकती सुबह

लोगों को पहली बार लगा कि यह बहती हवा, खुला आसमान, कल-कल करती नदी, ऊंचे पहाड़, उड़ते पंछी सब अपने हैं। एक सपना जो हकीकत में बदल चुका था, देश का गणतंत्र लागू हो चुका था।

By Taruna TayalEdited By: Published: Fri, 25 Jan 2019 04:02 PM (IST)Updated: Fri, 25 Jan 2019 04:02 PM (IST)
हमने देखी है गणतंत्र दिवस की वो महकती सुबह
हमने देखी है गणतंत्र दिवस की वो महकती सुबह
मेरठ, संदीप शर्मा। देश आजाद होने के बाद यह पहला मौका था जब चारों ओर इतनी खुशियां पसर गई थीं कि समेटे नहीं सिमट रही थीं। लोगों ने होली-दिवाली और ईद एक साथ मनाई थी। जाति और धर्म की बंदिशें तोड़ एक नया सवेरा आंखें खोले खड़ा था। उम्मीद जगाती किरणों माथे पर पड़ीं तो आशाओं की लाली छा गई थी। मेरठ में कुछ ऐसे बुजुर्गवार हैं, जिन्हें 26 जनवरी 1950 की वह सुबह आज भी आंखों में जस की तस याद है।
आखों में खुशी के आंसू और उम्मीद की लाली थी : वेद प्रकाश वटुक
ख्यातिनाम साहित्यकार और अमेरिका में लगातार 55 साल तक हिन्दी पढ़ाने वाले प्रो. वेद प्रकाश वटुक 26 जनवरी 1950 को 18 साल के थे। फिलहाल वह नंदन सिनेमा के पीछे वाली गली में रहते हैं। पूछने पर प्रो. वटुक गहरी याद में डूब जाते हैं। कहते हैं कि उस समय लोगों की आंखों में खुशी के आंसू और उम्मीद की लाली थी। दो सौ साल तक गुलाम रहने के बाद जब यह पता चला कि अब अपना राजा देश की जनता खुद चुनेगी तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा था। संविधान में जब भारत को गणतंत्र कहा गया तो खुशी और बढ़ गई थी। युवाओं को लगा कि अब वह तंत्र में सीधा हस्तक्षेप करेंगे। काफी हद तक यह हुआ भी। आज इसरो ने चांद और मंगल पर भारत को पहुंचाया। देश के पास विश्वस्तरीय सेना है। पल भर में दुश्मन को खत्म कर देने वाले एटमी हथियार भी हैं। उस वक्त 38 करोड़ जनता के लिए दो जून का खाना मयस्सर नहीं था, लेकिन आज 125 करोड़ का पेट भरने के बाद भी हम निर्यात कर लेते हैं। आइआइटी, आइआइएम, एम्स जैसे संस्थान हैं, लेकिन सत्ता और धन चुनिंदा लोगों के हाथों में सिमटकर रह गया है। शांति के सूचकांक में हम लगातार पिछड़े हैं।
सड़कों में दीपकों की पंक्तियां लगा दी गई थीं :पंडित जय नारायण शर्मा
जिमखाना मैदान के पास रह रहे पूर्व विधायक और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंडित जय नारायण बताते हैं कि 26 जनवरी 1950 को वह दस साल के रहे होंगे, लेकिन वह सीन आज भी आंखों में जस का तस है। पहले गणतंत्र दिवस को सुबह होली और रात में दिवाली मनाई गई थी। मुसलमानों के घर ईद की रंगत थी। हिन्दू-मुसलमान का भेद मिट गया था। चाचा-ताऊ आसान लफ्जों में गणतंत्र के मायने बता रहे थे। युवाओं की टोलियां गलियों में देशभक्ति के तराने गाती चल रही थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार भगत सिंह के चित्र हाथ में लेकर रघुपति राघव राजा राम, मेरा रंग दे बसंती चोला जैसे तराने लबों पर थे। लोगों ने कबूतरों और गुब्बारों को तीन रंगों से रंगकर उड़ाया था। जैसे ही शाम होने को आई लोगों सड़कों पर दूर-दूर तक बल्लियां बिछा दी थीं, जिन पर रखे दीयों से गणतंत्र का प्रकाश निकल रहा था। वह पहली ऐसी रात थी जिसमें सारा मुल्क नाचता रहा था। लोग पड़ोसियों को बुलाकर अपने घर बनेे पकवानों को खिला रहे थे।
जो जहां मिलता ‘जय हिंद’ बोलकर गले लग जाता : धर्म दिवाकर पंडित प्यारे लाल
शर्मा रोड पर रहने वाले धर्म दिवाकर गांधी चितंन के अंतरराष्ट्रीय लेखक और विचारक माने जाते हैं। गांधी दर्शन पर लिखी उनकी किताबें दुनिया की लगभग तमाम लाइब्रेरी में हैं। धर्म दिवाकर बताते हैं कि 26 जनवरी 1950 की सुबह के नजारे को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। लोग दीवाने हो गए थे। सभी का धर्म हिन्दुस्तानी हो चुका था। जो जहां मिलता सलाम-नमस्ते की जगह ‘जय हिन्द’ बोलकर गले लग जाता था। बहुत वर्षो तक चिट्ठी में ‘जय हिन्द’ का संबोधन होने लगा था। कई दिनों तक दूध और जलेबियों की दावतें चली थीं। युवाओं की आंखों में कुछ कर गुजरने के सपने थे। सुबह से ही लोगों ने अबीर गुलाल लगाकर एक-दूसरे को शुभकामनाएं दी थीं। हम गांधीवादियों को बस एक ही बात साल रही थी कि आजादी दिलाने वाले महात्मा गांधी हमारे बीच नहीं हैं। हमने बाबू की याद में शाम को सभा की थी, जिसमें देश की भविष्य की राजनीति पर खूब चर्चा हुई थी।
उस दिन ऐसा लगा कि हमारी जड़ें दोबारा जम गई हैं : केके खन्ना
विक्टोरिया पार्क के पास स्थित कॉलोनी में रह रहे गांधी वादी केके खन्ना उन चुनिंदा लोगों में से हैं जिन्होंने 1950 की 26 जनवरी का सवेरा देखा था। कई दशकों से हर बुधवार को भ्रष्टाचार के विरुद्ध धरना देने वाले गांधीवादी केके खन्ना ने बताया कि 26 जनवरी 1950 को पहली बार ऐसा लगा कि अब हमारी जड़ें जम गई हैं। केके खन्ना बताते हैं कि इससे तीन साल पहले देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान में अपना सबकुछ छोड़कर मेरठ आ गए थे। ये तीन साल घोर निराशा और पीड़ा में बीते थे। लेकिन जब संविधान लागू हुआ तो ऐसा लगा कि जैसे सब कुछ दोबारा मिल गया। पाकिस्तान में अपना घरबार छोड़कर आए पंजाबी समाज के लोग उस सुबह एकत्र हुए तो सभी की आंखों में खुशी के आंसू थे। सभी हमने मेहनत की और दोबारा अपना व्यापार खड़ा किया। समय बीतने के साथ देश को जातिवाद, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, धनबल और बाहुबल ने जकड़ लिया था। जीवन के 90 से ज्यादा वसंत देख चुके खन्ना मानते हैं कि भारत को एक मजबूत संविधान मिला, लेकिन गरीबी और भुखमरी से पूरी तरह निजात नहीं मिली। जाति के नाम सियासत होने लगी थी। बताया कि वह महात्मा गांधी को देख सुन बड़े हुए थे। इसलिए उस दर्शन के अलावा समाधान नहीं दिखता। राष्ट्रपिता ने स्वदेशी पर बल दिया था, जो आज तक पूरा नहीं हो पाया है। लेकिन यह संतोष करने वाली बात है कि सभी सरकारों ने आतंकवाद का मजबूती से मुकाबला किया। आज भारत का विदेशों में जो नाम है। उसके पीछे मजबूत संविधान ही है।

मैं नौवीं कक्षा में था और खुशी से फूला नहीं समा रहा था : श्रीकृष्ण कुमार
सिंचाई विभाग से 1996 में रिटायर हुए श्रीकृष्ण कुमार फिलहाल सदर में रहते हैं। 26 जनवरी 1950 की याद करते हुए श्रीकृष्ण कुमार बच्चों से चहक उठते हैं। कुमार बताते हैं कि उस वक्त वह सहारनपुर में नवीं कक्षा के छात्र थे। लोगों का हुजूम सड़कों पर देशभक्ति नारे लगाता और तराने गाता चल रहा था। बच्चे भी भारत माता की जय, महात्मा गांधी अमर रहे, नेताजी अमर रहे के नारे लगा रहे थे। उस दिन स्कूलों में जिस उत्साह के साथ कार्यक्रम हुए। वह नजारा आज तक नहीं देखा। बताते हैं कि आजादी के बाद हुए बंटवारे में उस वक्त पाकिस्तान से सबसे ज्यादा शरणार्थी सहारनपुर में रुके थे। सहारनपुर की सीमा पंजाब से मिलती थी। आज का हरियाणा उस वक्त पंजाब का हिस्सा हुआ करता था। एक अफवाह उड़ गई थी कि पंजाब पाकिस्तान में चला जाएगा। जबकि आधा पंजाब पाकिस्तान और आधा भारत के हिस्से में आया था। श्रीकृष्ण कुमार बताते हैं कि वहां से आए लोगों ने अपनी मेहनत से देश ही नहीं, दुनिया में भारत का नाम चमकाया था। उस वक्त मोहल्ले में धनाढ्य लोगों के यहां ही रेडियो होते थे। जिन पर कई बार गणतंत्र दिवस का बुलेटिन प्रसारित हुआ था। 

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.