कवि सम्मेलन: जब सामने वाला आईना बन जाए, और आप अक्श Meerut News
दैनिक जागरण के कवि सम्मेलन में आए ऐसे भी क्षण जब लोग शांत हो गए ठहाके लगा पड़े रोने लगे और झूमने भी लगे।
मेरठ, [जय प्रकाश पांडेय]। झांकने की तमाम दूसरी जगहों में सवरेत्तम जगह है स्वयं का गिरेबां ..और ऐसे तमाम मौके उपलब्ध कराती हैं कविताएं, गीत-गजलें और शेर-ओ-शायरी की दुनिया। सोमवार रात से शुरू होकर मंगलवार कदरन भोर तक चले दैनिक जागरण के कवि सम्मेलन में ऐसे तमाम मौके आए कि जब सामने वाला वक्ता जिंदा आईना बन गया ..और लोग उसमें अपनी शक्ल देखने लगे। शब्दों के समंदर में भावनाओं के इतने ज्वार उठे कि कभी लोग हंस पड़ते तो कभी आंखें भर आतीं। आरंभ से अंत तक खचाखच भरे राधा-गोविंद मंडप में जिंदादिल मेरठ का वह चेहरा सामने था, जहां अट्ठारह बरस के युवा मन से लेकर सौ साल के दंपती तक भावनाओं के समंदर में गोते लगा रहे थे।
संतोष आनंद, गीतकार संतोष आनंद, ...किसी परिचय के मोहताज नहीं। हालांकि सभागार में बहुत लोग ऐसे भी थे,जो पहली बार देख रहे थे इस महान गीतकार को, जुदा मसला है कि यह सभी लोग संतोष आनंद के तमाम गीतों को सुनते हुए ही बड़े हुए थे। ..तो जब व्हीलचेअर पर बैठे लगभग 81 बरस के कृशकाय संतोष आनंद ने माइक संभाला तब उन्हें पहली बार देख रहे लोग थोड़ा अचरज में थे कि कवि सम्मेलन के मंच पर यह बुजुर्गवार कौन। हालांकि कुछ ही क्षणों में जब संतोष आनंद ने अपने लंबे कांपते हाथों को हवा में उठाकर हल्के से गुनगुनाया, पूरे सभागार में मानों बिजली सी कौंध गई। वो भारतीय सिनेमा के सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक की पंक्तियां थीं ..जिंदगी की ना टूटे लड़ी, प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी। तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंजने लगा, मंच संचालक दिनेश बावरा की माइक पर गूंजती आवाज भी कहीं हवा हो गई। तालियों के जोश में, लोग खड़े हो गए, खड़े ही रहे ..और तालियां गूंजती रहीं। इसके बाद दूसरा गीत, ज्यों बांसुरी की पहली तान निकलती है, वैसे ही संतोष आनंद ने हल्की सी आवाज बिखेरी। राधा गोविंद मंडप का सभागार गवाह बना कि उस हल्की सी स्वर लहरी के बाद कमान श्रोताओं ने संभाल ली और असली वक्ता अर्थात स्वयं संतोष आनंद सभागार में अकेले श्रोता बचे रह गए ..लोग अंदाज-बेअंदाज गाए चले जा रहे थे ..एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है, जिंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी-मेरी कहानी है।। सहज-सरल शब्द समूह की ऐसी रचना जिसने इस गीत को अमर बना दिया। किसी को दो लाइन याद थी, किसी को चार, किसी को केवल धुन याद थी तो अधिकांश को पूरा गीत। सभी खड़े थे, विभोर भाव से ताली बजा रहे थे, कुछ हंस रहे थे, कुछ रो भी रहे थे, कई महिलाओं की आंखें नम थीं ..हर जिंदगी मानों खुद का खुद से साक्षात्कार कर रही थी। संतोष आनंद का जादू मंजिल की ओर था, लोग अपनी मंजिल पा चुके थे।
इसके पहले, एक से बढ़कर एक रचनाकारों ने लोगों का दिल जीता। स्वनामधन्य नवाज देवबंदी, यशपाल यश, अशोक साहिल, दिनेश बावरा, दीपक सैनी, मुमताज नसीम, प्रीति अग्रवाल, अरुण जैमिनी और राजेंद्र राजन ने अपनी रचनाओं से इतनी तालियां बटोरीं कि लोगों के हाथ जरूर थक गए मगर दिल किसी का नहीं भरा।
इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रसार भारती के अश्वनी मिश्र गाजियाबाद से आए थे तो इतिहास के शिक्षक हवलदार सिंह आए थे सुल्तानपुर जनपद से। कार्यक्रम के बाद दोनों ही लोगों की टिप्पणी -‘धन्य, धन्य। आत्मा तृप्त हो गई’। सभागार में आइआइएमटी के कुलाधिपति योगेश मोहन गुप्त, डा. राजीव अग्रवाल, डा. वीरोत्तम तोमर, डा. उमंग अरोड़ा, डा. आरसी गुप्ता, रिटायर्ड उप सूचना आयुक्त नवीन चंद्रा, डा. तुंगवीर सिंह और उनकी पत्नी डा. रीता आदि ऐसे तमाम लोग थे जो आनंदित हो रहे थे, तालियां बजा रहे थे। एडीजी प्रशांत कुमार, आइजी आलोक सिंह, डीएम अनिल ढींगरा, महापौर सुनीता वर्मा समेत तमाम आला अधिकारी व जनप्रतिनिधि भावनाओं के शब्द समंदर में डूबते रहे-उतराते रहे।
और हां, सांसद राजेंद्र अग्रवाल, जिनकी चर्चा के बिना यह अध्याय अधूरा है। हर शेर पर, हर शायरी पर, गजल की हर पंक्ति पर खुले दिल से ताली बजाने वाले सांसद राजेंद्र अग्रवाल की तारीफ मंच से मशहूर शायर नवाज देवबंदी ने की, अरुण जैमिनी ने की, सभी ने की। अंत तक डटे रहे राजेंद्र अग्रवाल, एक सच्चे-भूखे श्रोता की तरह। सभागार से विदा होने वाले वो हमारे अंतिम अतिथि थे, दूर कहीं भोर होने वाली थी।