कुंभ का स्नान, उद्योग बंदी का फरमान..उद्योगपति हुए हलकान
कुंभ स्नान के दौरानको पूरी तरह प्रदूषणमुक्त रखने का फरमान जारी होते ही उद्योगपतियों की बेचैनी बढ़ गई है। शासन ने प्रदूषणकारी उद्योगों की बंदी का रोस्टर जारी किया है लेकिन यह साफ नहीं है कि स्नान के दौरान कितने दिन तक उद्योग बंद रहेंगे। उधर, करोड़ों रुपये के नुकसान से आशंिकत उद्यमियों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। इस बीच जारी शासन के नए निर्देश के अनुसार अब 90 या 60 दिन के बजाय उद्योगों की सिर्फ 38 दिन की बंदी होगी।
मेरठ। कुंभ स्नान के दौरान गंगा नदी को पूरी तरह प्रदूषणमुक्त रखने का फरमान जारी होते ही उद्योगपतियों की बेचैनी बढ़ गई है। शासन ने प्रदूषणकारी उद्योगों की बंदी का रोस्टर जारी किया है लेकिन यह साफ नहीं है कि स्नान के दौरान कितने दिन तक उद्योग बंद रहेंगे। उधर, करोड़ों रुपये के नुकसान से आशंिकत उद्यमियों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। इस बीच जारी शासन के नए निर्देश के अनुसार अब 90 या 60 दिन के बजाय उद्योगों की सिर्फ 38 दिन की बंदी होगी।
उद्योगों की जांच करेगी थर्ड पार्टी
प्रदेश सरकार ने 15 दिसंबर-18 से 15 मार्च 2019 तक गंगा नदी किनारे स्थित उद्योगों को बंद रखने का निर्देश दिया है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मेरठ की दर्जनों इकाइयों को नोटिस भी भेजा है। इसके लिए बनाई गई समिति में एसडीएम एवं बोर्ड के विशेषज्ञ समेत पांच सदस्य शामिल हैं। यह टीम औद्योगिक इकाइयों के ईटीपी की मानीट¨रग रिपोर्ट शासन को भेजेगी। अगर किसी इकाई में रंगीन डिस्चार्ज मिला तो संबंधित को जेल जाना पड़ेगा। क्लीन गंगा मिशन के अंतर्गत एक तीसरी टीम भी मानीट¨रग करेगी, जिसकी रिपोर्ट केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजी जाएगी। प्रयागराज में 15 जनवरी से महाशिवरात्रि चार मार्च तक स्नान के लिए छह तिथियां निर्धारित हैं। दो दिन पहले इंडस्ट्री बंद की जाएंगी। पश्चिम उप्र से दो दिन में पानी प्रयागराज तक पहुंचता है। इसके बाद उद्योगों को चालू किया जा सकता है।
मेक इन इंडिया के दौर में तुगलकी फरमान
एनसीआर पेपर मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखे पत्र में इसे तुगलकी फरमान बताया है। उनका कहना है कि कुंभ के दौरान तीन माह तक इकाइयों को बंद रखने से कमाई का भारी नुकसान होगा। मेक इन इंडिया एवं इन्वेस्टर्स समिट के दौर में इस प्रकार उद्योगों पर रोक से सरकार की सोच को भी ठेस लगेगी।
ईटीपी चालू है तो बंदी क्यों
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक ज्यादातर इकाइयों के ईटीपी की आनलाइन मानीट¨रग हो रही है। बोर्ड ने माना है कि जीरो डिस्चार्ज वाली इकाइयां गंगा के लिए सुरक्षित हैं। सभी प्रदूषणकारी इकाइयों के ईटीपी में सेंसर लगे हैं, जिसे कहीं से भी देखा जा सकता है। उद्यमियों का कहना है कि ईटीपी के साथ संचालित उद्योगों को क्यों बंद किया जा रहा है। हालांकि इस पर शासन ने साफ किया है कि ईटीपी से निकले पानी का बीओडी लोड 30 मिलीग्राम प्रति सेमी तक होता है, जो गंगा के लिए खतरनाक है। जो इकाइयां ईटीपी से निकले पानी का उपयोग सिंचाई या फर्श धुलाई में करेंगी, उन्हें संचालन की अनुमति होगी।
दस लाख लोगों को रोजगार देते हैं पेपर मिल
उद्यमियों का कहना है कि गन्ना बेल्ट में चीनी मिलों को जल्द चालू कराने के लिए सरकार स्वयं प्रयासरत है, जबकि पेपर मिल भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से दस लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार देते हैं। पेपर मिलों द्वारा गन्ना मिलों से ईधन के रूप में बड़ी मात्रा में खोई खरीदी जाती है। इससे गन्ना मिलों की भुगतान क्षमता बढ़ती है। मेरठ में करीब 18, जबकि एनसीआर में 60 से ज्यादा पेपर मिल हैं। 20 हजार से ज्यादा लोग प्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं।
रोजाना होगा 40 करोड़ का नुकसान
पश्चिम उप्र की 60 से ज्यादा पेपर मिलों को बंद करने से रोजाना करीब 40 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। 15 हजार मीट्रिक टन पेपर का उत्पादन रोज होता है। राज्य एवं केंद्र को जीएसटी के रूप में करीब 480 लाख रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा।
-तीन माह तक पेपर मिलें बंद की गई तो उत्पादन में 12.5 हजार मीट्रिक टन की कमी होगी, जिससे 3600 करोड़ रुपये की हानि होगी।
-पश्चिम में ज्यादातर क्राफ्ट पेपर वाली इकाइयां हैं, जो एक पैकेजिंग मैटीरियल है। रोजमर्रा की वस्तुओं, फल, इलेक्ट्रिकल, व इलेक्ट्रानिक उत्पाद के लिए कोरिगेटेड बाक्स बनाए जाते हैं। बंद हुई तो लाखों लोगों का रोजगार प्रभावित होगा।
15 जनवरी-19 को पहला स्नान है। स्नान से चंद दिन पहले ही इकाइयों को बंद किया जाएगा। इकाइयों को अपना अतिरिक्त डिस्चार्ज रिजर्व टैंक में भरना होगा। उच्च क्षमता वाले वेब कैमरों से ईटीपी की मानीट¨रग होगी। ईटीपी से निकले पानी का बीओडी 30 से ज्यादा होता है, जो गंगा में नहीं छोड़ा जा सकता। उद्योगों को लगातार बंद किया जाएगा या सिर्फ चंद दिन, यह साफ नहीं है।
आरके त्यागी, क्षेत्रीय अध्यक्ष, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
जब उद्योगों की ईटीपी की कहीं से भी मानीट¨रग हो सकती है। जिन इकाइयों की ईटीपी खराब मिले उसे बंद करें। जीरो डिस्चार्ज एवं ईटीपी संचालित इकाइयों को बंद करने का कोई औचित्य नहीं। सिर्फ पेपर मिलों से रोजाना 40 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। इससे मेक इन इंडिया व इन्वेस्टर्स समिट के माहौल को झटका लगेगा।
अरविंद अग्रवाल, अध्यक्ष, एनसीआर पेपरमिल एसोसिएशन