किसान आंदोलन की सियासी फसल काटने में चूक गया विपक्ष
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ट्वीट के बाद इस आंदोलन का ताप बढ़ गया। हालांकि विपक्ष आंदोलन से राजनीतिक लाभ लेने में विफल रहा।
मेरठ (जेएनएन)। किसानों के हुक्के में धधकी आग बेशक शांत पड़ गई, किंतु इसके बड़े सियासी मायने निकले हैं। आंदोलन को थामने में भाजपा ने जहां सधा हुआ होमवर्क किया, वहीं विरोधी दल सियासी फसल काटने में चूकते नजर आए। सपा, कांग्रेस एवं रालोद के मैदान में उतरने से पहले किसानों ने आंदोलन खत्म कर दिया। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो विरोधी दलों को भाजपा की घेरेबंदी में नए सिरे से फील्डिंग सजानी पड़ेगी।
सीएम योगी ने उतारी टीम
सीएम योगी ने 29 सितंबर को गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा को किसानों के पास भेजा। राणा आखिर तक किसानों के संपर्क में रहते हुए पीएमओ एवं गृहमंत्री से मीटिंग कराने में सक्रिय रहे। 30 सितंबर को मंत्री लक्ष्मीनारायण ने कमान संभाला। एक अक्टूबर को दोनों मंत्रियों ने गाजियाबाद में किसानों से वार्ता की, और शाम को सीएम योगी से ¨हडन पर किसानों की मुलाकात कराई। यहां से पीएमओ से मिलाने के लिए प्रयास किया। रात में चार बजे तक भाजपाइयों ने किसानों के साथ वार्ता की। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बाद किसान गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिले। सात मांगों पर सहमति बनी। किसानों की कई मांगे पहले से भाजपा के एजेंडे में हैं, ऐसे में बात बन गई। हालांकि कर्जमाफी और स्वामीनाथन रिपोर्ट पर सरकार नरम नहीं पड़ी।
सीधी लड़ाई में चूकी रालोद
किसान आंदोलन के बहाने पश्चिमी उप्र में सियासत की कई धाराएं चल पड़ी हैं। जहां भारतीय किसान यूनियन ने लंबे समय बाद ताकत का प्रदर्शन किया, वहीं किसान नेता बनने की रेस में भी कई नाम उभरे हैं। राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह ने किसानों को साधने का प्रयास किया। रालोद की रणनीतिक सफलता रही कि किसानों ने केंद्र के प्रस्ताव को तत्काल नहीं माना, किंतु शाम तक रालोद की पकड़ ढीली हो गई। पार्टी सीधी लड़ाई नहीं लड़ सकी, जिससे पार्टी आंदोलन को मनचाहे मुकाम पर नहीं पहुंचा सकी।
ट्वीट से बढ़ा ताप
उधर, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ट्वीट के बाद इस आंदोलन का ताप बढ़ गया। हरियाणा से भी तमाम बड़े चेहरे शामिल होने की योजना बना रहे थे, किंतु इससे पहले भाजपा किसानों को समझाने में सफल हुई। उधर, भाकियू के नरेश टिकैत एवं राकेश टिकैत के बयानों में अंतर से भी किसानों में कंन्फ्यूजन बढ़ा। भाकियू के महासचिव युद्धवीर ने कई बार किसानों को अनुशासनहीनता से बाज आने के लिए कहा।