सहारनपुर, बृजमोहन मोगा। राजनीति में महिलाओं को 33 प्रतिशत भागीदारी देने की बात तो खूब की जाती है लेकिन जब चुनाव आते हैं तो उन्हें हाशिये पर कर दिया जाता है। सहारनपुर जनपद की सात सीटों पर पिछले सात दशक में हुए चुनाव नतीजे इस तथ्य को पुख्ता आधार देते हैं। अब तक हुए 17 चुनाव में सिर्फ छह महिलाएं ही विधानसभा में पहुंच पाई हैं। इनमें शकुंतला देवी चार बार तो बिमला राकेश पांच बार विधानसभा पहुंचीं। बसपा सुप्रीमो मायावती दो बार यहां से विधानसभा पहुंचीं।
महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। सहारनपुर जिले की बात करें तो यहां राजनीति में महिलाओं को किसी भी दल ने तवज्जो नहीं दी है। आजादी के बाद सहारनपुर की राजनीति में शकुंतला देवी वर्ष 1962 में सरसावा सुरक्षित सीट से पहली महिला विधायक चुनी गई थी। इनके बाद बिमला राकेश ही एकमात्र ऐसी महिला रहीं, जिन्होंने राजनीति की लंबी पारी खेली।
हरौड़ा विधानसभा सीट को सुरक्षित किया गया तो शकुंतला देवी इस सीट से वर्ष 1967,1969 व 1974 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनीं। 1977 के चुनाव में पहली बार बिमला राकेश हरौड़ा से विधायक चुनी गईं। इसके बाद वह 1980, 1985, 1989 व 1991 का चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थीं।
तीन दशक की इस अवधि में इनके अलावा कोई अन्य महिला नेता न तो चुनाव लड़ी और न विधानसभा पहुंच सकी। वर्ष 1993 में पहली बार भाजपा के टिकट पर देवबंद से शशि बाला पुंडीर और मुजफ्फराबाद विधानसभा सीट से रानी देवलता विधायक चुनी गईं।
वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव में जिले से एकमात्र महिला के रूप में बसपा सुप्रीमो मायावती हरौड़ा विधानसभा सुरक्षित से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचीं और प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं। वर्ष 2002 के चुनाव में भी अकेली मायावती ही इस सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंची और मुख्यमंत्री बनी थीं।
बाद में उन्होंने इस सीट को छोड़कर बिल्सी सीट को अपने पास रखा था। इसके बाद नागल सीट पर बसपा विधायक व मंत्री रहे इलम सिंह के निधन के बाद उनकी पत्नी सत्तो देवी उपचुनाव जीती थीं। सत्तो देवी के बाद जिले की राजनीति में कोई महिला विधायक नहीं बन सकी।
a