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मेरठ को सिंगापुर जैसा कैसे बनाएं, हैदराबाद में सीखेंगे अफसर

मेरठ में सिंगापुर जैसी ग्रीन बिल्डिंग कैसे बनाई जाएं अफसर इसका प्रशिक्षण लने हैदराबाद जाएंगे। वहां ग्रीन बिल्डिंग कांग्रेस का आयोजन किया जा रहा है।

By Ashu SinghEdited By: Published: Mon, 22 Oct 2018 04:23 PM (IST)Updated: Mon, 22 Oct 2018 04:24 PM (IST)
मेरठ को सिंगापुर जैसा कैसे बनाएं, हैदराबाद में सीखेंगे अफसर
मेरठ को सिंगापुर जैसा कैसे बनाएं, हैदराबाद में सीखेंगे अफसर
मेरठ (जेएनएन)। सिंगापुर, अमेरिका और फिलीपींस जैसे देश ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए अपने शहरों और भवनों को ग्रीन बना रहे हैं। भारत में भी ग्रीन बिल्डिंग बनें, इसके लिए हैदराबाद में ग्रीन बिल्डिंग कांग्रेस-2018 का आयोजन किया जा रहा है। इसमें मेरठ विकास प्राधिकरण के अधिकारी और इंजीनियर भी प्रशिक्षण लेने जाएंगे।
हैदराबाद में आयोजन
सीआइआइ (कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री) की ओर से हैदराबाद में 31 अक्टूबर से तीन नवंबर तक ग्रीन बिल्डिंग कांग्रेस-2018 का आयोजन होगा। इसकी थीम ‘ग्रीन बिल्ट एनवायरमेंट फार पीपुल एंड दी प्लेनेट’ है। इसमें ग्रीन बिल्डिंग बनाने को लेकर इंटरनेशनल कांफ्रेंस, प्रोडक्ट और टेक्नोलॉजी पर प्रदर्शनी, अफोर्डेबल हाउसिंग, ग्रीन हॉस्पिटल, ग्रीन स्कूल, ग्रीन सिटी व ग्रीन लैंडस्केप पर सेमिनार होगा। इसके बाद ग्रीन बिल्डिंग पर दो दिन का ट्रेनिंग प्रोग्राम भी है। इसमें बताया जाएगा कि भवनों में विद्युतीकरण किस तरह हो, जिससे कम कार्बन उत्सर्जित हो। अमेरिका, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, फिलीपींस, कनाडा, जर्मनी की प्रमुख हस्तियां इसकी जानकारी देंगी, जो ग्रीन हाउसिंग के विशेषज्ञ हैं। भारत से हुडको के चेयरमैन, इस्कान के प्रभु गौर गोपाल दास समेत कई हस्तियों का व्याख्यान होगा।
क्या है ग्रीन बिल्डिंग कांसेप्ट
ग्रीन बिल्डिंग कांसेप्ट भारत में अभी नया है, लेकिन अमेरिका व चीन जैसे देश इस पर काफी आगे बढ़ चुके हैं। ग्रीन बिल्डिंग यानी हरित भवन। वैसे तो भारत में ग्रीन कालोनी लिखकर फ्लैट्स व प्लाट बेचे जाते हैं, मगर वहां होता कुछ नहीं है। दरअसल, ऐसे मकानों में 10 प्रतिशत तक तापमान कम किया जा सकेगा। इस क्षेत्र में कार्य कर रहीं स्वाति सिंह का कहना है कि ऐसे भवन बनाकर हम व्यक्तिगत रूप से मौसम को प्रभावित होने से बचाने में योगदान दे सकते हैं। ऐसे भवन पर्यावरण को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। ऊर्जा और पानी बचाने पर जोर होता है। बड़ी संख्या में पेड़-पौधे लगाए जाते हैं, हवादार खिड़कियां बनाई जाती हैं। प्राकृतिक संसाधनों का अधिक प्रयोग होता है। कम खपत वाले बिजली उपकरण लगाए जाते हैं। सोलर पैनल लगाए जाते हैं। वाटर रीचार्ज यूनिट बनाने के साथ ही रसोई के पानी को भी रीसाइकिल किया जाता है। ईंट फ्लाई एश की लगाई जाती है। कंपोस्ट यूनिट भी परिसर में बनाया जाता है।
इनका कहना है
सीआइआइ का इस संबंध में पत्र मिला है। इसमें प्रतिभाग करने के लिए प्रतिनिधि का चयन किया जा रहा है। इसमें बताए गए तरीकों को शहर में लागू किया जाएगा।
-साहब सिंह, वीसी एमडीए

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