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कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी

भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता है, विश्व की महान संस्कृति यूनान, रोम आदि देशों की संस्कृति मिट गई, लेकिन भारतीय संस्कृति आज भी अपने विविधता को लिए आगे बढ़ रहा है। चौ. चरण सिंह विवि के इतिहास विभाग में भारतीय संस्कृति की विविधता विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं ने यह बात कही। महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विवि के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. एके सिन्हा ने भारतीय संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ बताया। राष्ट्रीय संगठन मंत्री डा. बाल मुकुंद पांडे ने कहा कि हम एक से अनेक हुए है। अब हमें उस अनेक में वह एक तत्व खोजना है जो हमें एक करता है। यही भारतीय संस्कृति की विशेषता है कि भारत विश्व में अपना एक स्थान रखता है। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के नई दिल्ली के सदस्य प्रो. आरएस अग्रवाल ने भारतीय संस्कृति के विषय में बोलते हुए कहा कि हमारी संस्कृति पर विदेशी और मा‌र्क्सवादियों ने बहुत प्रभाव डाला है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Aug 2018 09:05 PM (IST)Updated: Tue, 28 Aug 2018 09:05 PM (IST)
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी

जागरण संवाददाता, मेरठ : भारतीय संस्कृति की पहचान विविधता में एकता है। यही इसकी ताकत है, जो आज भी कायम है। जबकि यूनान, रोम आदि देशों की संस्कृति आज मिट चुकी है। यह बात महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विवि के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. एके सिंहा ने कही। दरअसल, वे चौ. चरण सिंह विवि के इतिहास विभाग में 'भारतीय संस्कृति की विविधता' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

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प्रो. सिंहा ने भारतीय संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ बताया। इस दौरान राष्ट्रीय संगठन मंत्री डा. बाल मुकुंद पांडे ने कहा कि हम एक से अनेक हुए है। अब हमें उस अनेक में वह एक तत्व खोजना है जो हमें एक करता है। यही भारतीय संस्कृति की विशेषता है कि भारत विश्व में अपना एक स्थान रखता है। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के नई दिल्ली के सदस्य प्रो. आरएस अग्रवाल ने भारतीय संस्कृति के विषय में बोलते हुए कहा कि हमारी संस्कृति पर विदेशी और मा‌र्क्सवादियों ने बहुत प्रभाव डाला है। अध्यक्षीय संबोधन में विवि के कुलपति प्रो. एनके तनेजा ने कहा कि क्षेत्रीय स्तर पर विविधता होने के बाद भी भारत में एकता है, हमारी संस्कृति में संयुक्त परिवार का विशिष्ट स्थान है। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष प्रो. वाचस्पति मिश्र ने कहा कि जितने भी विदेशी यात्री भारत आए, वह सबसे पहले संस्कृत सीखते थे। प्राचीन भारत में लोग इतने सज्जन थे कि अपने घरों में ताले नहीं लगाते थे। ह्वेनसांग जब भारत आया तो वह इसे देखकर आश्चर्य में पड़ गया था। प्रो. आराधना ने कि हमारी संस्कृति में स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर खान-पान, वेशभूषा, बोली और पर्व में भिन्नता होने के बाद भी एकरूपता है। विश्व एक परिवार की तरह है यह मान्यता भारत की है जिसे पूरा विश्व मानता है। विभागाध्यक्ष प्रो. अजय कौर ने सभी का स्वागत किया। प्रो. विघ्नेश त्यागी ने अतिथियों का परिचय किया। सभी अतिथियों को फल, अंगवस्त्र, तुलसी का पौधा भेंट किया। संगोष्ठी में 35 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए।


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