हर मुद्दा स्पष्ट होने से लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को मिली प्रचंड विजय
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए को लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला है। भाजपा ने ही अकेले 303 सीटें जीत ली हैं। इतनी बड़ी जीत से नरेंद्र मोदी से भारतीय जनमानस को बड़ी आशा है।
By Taruna TayalEdited By: Published: Tue, 28 May 2019 03:09 PM (IST)Updated: Tue, 28 May 2019 03:09 PM (IST)
मेरठ, [प्रवीण वशिष्ठ]। लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए को प्रचंड बहुमत मिला है। भाजपा ने ही अकेले 303 सीटें जीत ली हैं। इतनी बड़ी जीत से नरेंद्र मोदी से भारतीय जनमानस को बड़ी आशा है। विपक्ष के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। दैनिक जागरण की साप्ताहिक संगोष्ठी में भी इसी विषय पर मंथन हुआ। ‘मोदी की प्रचंड जीत के मायने’ पर मुख्य वक्ता सिविल एकेडमी मेरठ के चेयरमैन अभिषेक शर्मा ने विचार रखे।
भाजपा का राष्ट्रवाद और हिंदूत्व को लेकर स्पष्ट था स्टैंड
राहुल गांधी विचारधारा की लड़ाई कहते तो रहे, पर अपनी विचारधारा स्पष्ट न कर सके। दूसरी ओर भाजपा का राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को लेकर स्टैंड स्पष्ट था। इसका तोड़ समूचा विपक्ष नहीं तलाश पाया। चुनाव के शुरू से ही विपक्ष के कई नेताओं ने ईवीएम पर सवाल खड़े करना शुरू कर दिया। उनकी यह रणनीति भी हार की एक वजह बनी।
मोदी उपलब्धियां बताने में रहे सफल
पूरे चुनाव अभियान में विरोधी दल नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने में लगे रहे और अपना मजबूत पक्ष जनता के सामने रखने में असफल रहे। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी ने विपक्ष की कमियां गिनाईं और अपनी उपलब्धियों शौचालय निर्माण, उज्ज्वला योजना, बिजली कनेक्शन, आयुष्मान आदि को मतदाताओं के सामने रखा। कांग्रेस से मुकाबले में वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी ने विकास का गुजरात माडल प्रस्तुत किया था। विपक्षी दलों के पास 2019 में कोई माडल नहीं था।
मोदी से उम्मीद
एनडीए को प्रचंड बहुमत मिलने से उम्मीदें भी प्रचंड लगाई जा रही हैं। अगले छह महीनों में राज्यसभा में भी बहुमत की स्थिति बन जाएगी। ऐसे में कोई बहाना नहीं चलेगा। जनता को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता की अपेक्षाओं को समझकर गरीब, किसान और बेरोजगारों के हित में प्रभावी कदम उठाएंगे। इसी के साथ आर्थिक मोर्चे पर भी ध्यान देंगे।
अतिथि के विचार
विपक्ष के पास कोई एक नेता नहीं था। इसी के साथ विपक्षी दल देश में महागठबंधन भी नहीं बना सके। जिन राज्यों में विपक्ष थोड़ा-बहुत एकजुट भी दिखा वहां मुख्य कारण विचारधारा न होकर सीटों का बंटवारा था। जनता के मन में उनको लेकर अवसरवादी होने का संदेश गया। जैसे- दिल्ली में कांग्रेस विरोध को लेकर आम आदमी पार्टी सत्ता में आई थी, लेकिन दोनों ही पार्टियां सीटों को लेकर जूझती रहीं और अंत में गठबंधन नहीं हो सका। इसके विपरीत भाजपा ने गठबंधन में बड़ा दिल दिखाया। राज्यों में गठबंधन साथियों शिवसेना, लोजपा, जदयू आदि को सम्मानजनक सीटें दीं।
भाजपा कार्यकर्ता जुझारू और मेहनती
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में राहुल गांधी जोश नहीं भर सके। उसकी तुलना में भाजपा का कार्यकर्ता जुझारू, मेहनती और महत्वाकांक्षी रहा। कांग्रेस के अन्य नेताओं ने राहुल जितनी मेहनत नहीं की। अमित शाह राष्ट्रीय अध्यक्ष होते हुए भी मेरठ जैसे जिले में अनेक बार आए। उनके विपरित कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष राजबब्बर तक यहां बहुत कम दिखे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया तो सिर्फ एक घंटे के लिए मेरठ में दिखे।
भाजपा का राष्ट्रवाद और हिंदूत्व को लेकर स्पष्ट था स्टैंड
राहुल गांधी विचारधारा की लड़ाई कहते तो रहे, पर अपनी विचारधारा स्पष्ट न कर सके। दूसरी ओर भाजपा का राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को लेकर स्टैंड स्पष्ट था। इसका तोड़ समूचा विपक्ष नहीं तलाश पाया। चुनाव के शुरू से ही विपक्ष के कई नेताओं ने ईवीएम पर सवाल खड़े करना शुरू कर दिया। उनकी यह रणनीति भी हार की एक वजह बनी।
मोदी उपलब्धियां बताने में रहे सफल
पूरे चुनाव अभियान में विरोधी दल नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने में लगे रहे और अपना मजबूत पक्ष जनता के सामने रखने में असफल रहे। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी ने विपक्ष की कमियां गिनाईं और अपनी उपलब्धियों शौचालय निर्माण, उज्ज्वला योजना, बिजली कनेक्शन, आयुष्मान आदि को मतदाताओं के सामने रखा। कांग्रेस से मुकाबले में वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी ने विकास का गुजरात माडल प्रस्तुत किया था। विपक्षी दलों के पास 2019 में कोई माडल नहीं था।
मोदी से उम्मीद
एनडीए को प्रचंड बहुमत मिलने से उम्मीदें भी प्रचंड लगाई जा रही हैं। अगले छह महीनों में राज्यसभा में भी बहुमत की स्थिति बन जाएगी। ऐसे में कोई बहाना नहीं चलेगा। जनता को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता की अपेक्षाओं को समझकर गरीब, किसान और बेरोजगारों के हित में प्रभावी कदम उठाएंगे। इसी के साथ आर्थिक मोर्चे पर भी ध्यान देंगे।
अतिथि के विचार
विपक्ष के पास कोई एक नेता नहीं था। इसी के साथ विपक्षी दल देश में महागठबंधन भी नहीं बना सके। जिन राज्यों में विपक्ष थोड़ा-बहुत एकजुट भी दिखा वहां मुख्य कारण विचारधारा न होकर सीटों का बंटवारा था। जनता के मन में उनको लेकर अवसरवादी होने का संदेश गया। जैसे- दिल्ली में कांग्रेस विरोध को लेकर आम आदमी पार्टी सत्ता में आई थी, लेकिन दोनों ही पार्टियां सीटों को लेकर जूझती रहीं और अंत में गठबंधन नहीं हो सका। इसके विपरीत भाजपा ने गठबंधन में बड़ा दिल दिखाया। राज्यों में गठबंधन साथियों शिवसेना, लोजपा, जदयू आदि को सम्मानजनक सीटें दीं।
भाजपा कार्यकर्ता जुझारू और मेहनती
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में राहुल गांधी जोश नहीं भर सके। उसकी तुलना में भाजपा का कार्यकर्ता जुझारू, मेहनती और महत्वाकांक्षी रहा। कांग्रेस के अन्य नेताओं ने राहुल जितनी मेहनत नहीं की। अमित शाह राष्ट्रीय अध्यक्ष होते हुए भी मेरठ जैसे जिले में अनेक बार आए। उनके विपरित कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष राजबब्बर तक यहां बहुत कम दिखे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया तो सिर्फ एक घंटे के लिए मेरठ में दिखे।
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