कई मांग पत्रों पर थी एक हैंडराइटिंग, छात्रवृत्ति घोटाले की एक और परत खुली
अल्पसंख्यक प्री-मेट्रिक छात्रवृत्ति 2010-11 के घोटाले के पीछे मेरठ और इटावा के गिरोह का हाथ है। ईओडब्ल्यू को जांच में कई साक्ष्य मिले, जिसमें अधिकारियों की गर्दन फंसनी तय है।
By Taruna TayalEdited By: Published: Thu, 31 Jan 2019 03:31 PM (IST)Updated: Thu, 31 Jan 2019 03:31 PM (IST)
मेरठ, [पंकज तोमर]। अल्पसंख्यक प्री-मेट्रिक छात्रवृत्ति 2010-11 के घोटाला से एक और परत हटी है। आर्थिक अपराध एवं अनुसंधान शाखा (ईओडब्ल्यू) की जांच में आया कि घोटाले के पीछे मेरठ और इटावा का एक बड़ा गिरोह है, जिसके गठजोड़ से करोड़ों के घोटाले को अंजाम दिया गया। कमीशन लेकर फर्जी मांग पत्र तैयार करने वाला यह गिरोह कानपुर तक भी सक्रिय बताया जा रहा है। कई मांग पत्रों पर एक हैंड राइटिंग मिलने से कई और अधिकारियों की गर्दन फंसनी भी तय मानी जा रही है।
तीन साल से चल रही है जांच
करीब तीन वर्ष से चल रही जांच को ईओडब्ल्यू के विवेचकों ने रफ्तार दे दी है। कई चौंकाने वाले तथ्यों के बाद हैरान करने वाला एक और साक्ष्य सामने आया है। मदरसा और जूनियर हाईस्कूल के संचालकों व प्रबंधकों ने अपनी गर्दन बचाने के लिए गिरोह की सहायता ली। उन्होंने छात्रवृत्ति के दस्तावेज खुद बनाने के बजाय एक गिरोह से बनवाए, ताकि कभी घपला पकड़ा भी जाए तो उसमें हैंड राइटिंग मिलान न खा सके। गिरोह ने मेरठ जिले के 145 मदरसे व जूनियर हाईस्कूलों के बच्चों का छात्रवृत्ति रजिस्टर तैयार किया। जांच में दर्जनभर से अधिक रजिस्टरों में एक हैंड राइटिंग पाई गई है। जांच आगे बढ़ी तो तार इटावा से जुड़ गए। वहां भी इसी गिरोह ने काम किया। मेरठ और इटावा में ईओडब्ल्यू को दिए गए दस्तावेजों में हूबहू लिखावट है। इटावा में 118 विद्यालयों में यह घोटाला सामने आया था। दोनों जिलों में करीब 15 करोड़ रुपये हड़पने का आरोप है।
कानपुर तक फैली हैं जड़ें
सूत्रों की मानें तो कानपुर तक इस गिरोह की जड़ें फैली हैं। विवेचकों ने कानपुर में बरामद किए गए अभिलेखों की भी जांच शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि उप्र के इस बड़े गिरोह में शिक्षाधिकारी, कर्मचारी, प्रबंधक, प्रधानाचार्य आदि लोग शामिल हैं।
10 से 15 फीसद कमीशन लिया
जांच में सामने आया कि छात्रवृत्ति के दस्तावेज तैयार करने वाले इस गिरोह ने सरकार से मिलने वाली धनराशि पर 10 से 15 फीसद कमीशन लिया है।
ये हुआ था घोटाला
भारत सरकार द्वारा साल 2010-11 में अल्पसंख्यक प्री-मेट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत करीब 3.5 करोड़ रुपये का गबन हुआ था। अल खिदमत फाउंडेशन के अध्यक्ष तनसीर अहमद की शिकायत पर शासन ने इसकी जांच ईओडब्ल्यू को दी थी। जिले के 145 मदरसों व जूनियर हाईस्कूलों में यह घोटाला सामने आया था। अक्टूबर व नवंबर में तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी और एक लिपिक समेत लगभग 54 लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ था।
इन्होंने कहा
फिलहाल मामले की जांच चल रही है। यह तय है कि इतना बड़ा घोटाला किसी बड़े गिरोह के बिना संभव नहीं है।
-डा. राम सुरेश यादव, एसपी-ईओडब्ल्यू
तीन साल से चल रही है जांच
करीब तीन वर्ष से चल रही जांच को ईओडब्ल्यू के विवेचकों ने रफ्तार दे दी है। कई चौंकाने वाले तथ्यों के बाद हैरान करने वाला एक और साक्ष्य सामने आया है। मदरसा और जूनियर हाईस्कूल के संचालकों व प्रबंधकों ने अपनी गर्दन बचाने के लिए गिरोह की सहायता ली। उन्होंने छात्रवृत्ति के दस्तावेज खुद बनाने के बजाय एक गिरोह से बनवाए, ताकि कभी घपला पकड़ा भी जाए तो उसमें हैंड राइटिंग मिलान न खा सके। गिरोह ने मेरठ जिले के 145 मदरसे व जूनियर हाईस्कूलों के बच्चों का छात्रवृत्ति रजिस्टर तैयार किया। जांच में दर्जनभर से अधिक रजिस्टरों में एक हैंड राइटिंग पाई गई है। जांच आगे बढ़ी तो तार इटावा से जुड़ गए। वहां भी इसी गिरोह ने काम किया। मेरठ और इटावा में ईओडब्ल्यू को दिए गए दस्तावेजों में हूबहू लिखावट है। इटावा में 118 विद्यालयों में यह घोटाला सामने आया था। दोनों जिलों में करीब 15 करोड़ रुपये हड़पने का आरोप है।
कानपुर तक फैली हैं जड़ें
सूत्रों की मानें तो कानपुर तक इस गिरोह की जड़ें फैली हैं। विवेचकों ने कानपुर में बरामद किए गए अभिलेखों की भी जांच शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि उप्र के इस बड़े गिरोह में शिक्षाधिकारी, कर्मचारी, प्रबंधक, प्रधानाचार्य आदि लोग शामिल हैं।
10 से 15 फीसद कमीशन लिया
जांच में सामने आया कि छात्रवृत्ति के दस्तावेज तैयार करने वाले इस गिरोह ने सरकार से मिलने वाली धनराशि पर 10 से 15 फीसद कमीशन लिया है।
ये हुआ था घोटाला
भारत सरकार द्वारा साल 2010-11 में अल्पसंख्यक प्री-मेट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत करीब 3.5 करोड़ रुपये का गबन हुआ था। अल खिदमत फाउंडेशन के अध्यक्ष तनसीर अहमद की शिकायत पर शासन ने इसकी जांच ईओडब्ल्यू को दी थी। जिले के 145 मदरसों व जूनियर हाईस्कूलों में यह घोटाला सामने आया था। अक्टूबर व नवंबर में तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी और एक लिपिक समेत लगभग 54 लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ था।
इन्होंने कहा
फिलहाल मामले की जांच चल रही है। यह तय है कि इतना बड़ा घोटाला किसी बड़े गिरोह के बिना संभव नहीं है।
-डा. राम सुरेश यादव, एसपी-ईओडब्ल्यू
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