प्रदेश में चल रही व्यवस्था को सुधारने की धुन, पर इधर तो पुलिस में लगा भ्रष्टाचार का घुन Meerut News
प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर सुधारने को लेकर सरकार हर तरह की जुगत लगा रही है पर मेरठ में पुलिस का भ्रष्टाचार वाला चेहरा सामने आ रहा है। पढ़े सुशील कुमार की रिपोर्ट।
सुशील कुमार, मेरठ। पुलिस से प्रत्येक व्यक्ति का सीधा जुड़ाव होता है। यही कारण है कि कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाकर भाजपा यूपी की सत्ता में आई। उसके बाद पार्टी ने कानून व्यवस्था कायम करने के लिए प्राथमिकता तय की। उनका पालन भी कराया जा रहा है, लेकिन उससे इतर भी हर कोई चाहता है कि पुलिस से भ्रष्टाचार का खात्मा हो। हालांकि भ्रष्ट-तंत्र को सुधारने के लिए अपेक्षित गंभीरता नहीं दिखाई दे रही। थानेदार से लेकर अफसरों तक पर वसूली के आरोप लग रहे हैं। हाल ही में लव जिहाद के लिए मां-बेटी की हत्या करने के संगीन मामले में भी पुलिस का वसूली वाला चेहरा सामने आया। उससे पहले एसपी सिटी के नाम से दस लाख की वसूली के आरोप लग चुके हैं। हाल में चर्चा है कि हरिओम आनंद आत्महत्या कांड में भी पुलिस वसूली के घेरे में आ चुकी है।
गलती पर सजा के बजाए इनाम
शीर्ष अफसर पुलिस की छवि बेदाग करने में लगे हैं। हालांकि कुछ पुलिसकर्मी ऐसे हैं, जो दाग को धोना ही नहीं चाह रहे हैं। हाल में सरधना सर्किल के सीओ पर लगे आरोपों की बात कर रहे हैं। नंगलाताशी के सोनू ने हिम्मत दिखाते हुए सीओ पर वसूली और जमीन पर कब्जा कराने के आरोप लगाए। मामला शीर्ष अफसरों तक पहुंचा। एसपी सिटी से जांच कराई तो सीओ को क्लीनचिट दी गई। उसके बाद अफसरों ने इस जांच को गाजियाबाद स्थानांतरित कर दिया। बड़ा सवाल है कि शीर्ष अफसर भी हकीकत जानते हैं, लेकिन जांच रिपोर्ट के इंतजार में हैं। पुलिस की कार्रवाई से क्षुब्ध होकर पीड़ित ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालती कार्रवाई से बचने के लिए कप्तान अजय साहनी ने सीओ का स्थानांतरण दूसरे सर्किल में कर दिया। अब सवाल है कि गलती की सजा दी गई है, या सरधना सर्किल में स्थानांतरण करके इनाम।
अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग
अपनी डफली अपना राग डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार मोहन सिंह द्वारा रचित एक नाट्य-संग्रह है, जिसके लिए उन्हें सन् 1991 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसका मतलब है कि तालमेल और सहयोग का अभाव। हाल में तीन शीर्ष अफसरों में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है। सोतीगंज प्रकरण को ही लें तो शीर्ष अफसरों ने कबाड़ियों के यार पुलिसवालों की लिस्ट तैयार करने के आदेश दिए, ताकि उनका दूसरे जोन में स्थानांतरण किया जा सके। उसके बाद भी लिस्ट तैयार करके नहीं दी गई। उससे पहले हरिओम आत्महत्या प्रकरण था, जिसमें शीर्ष अफसर बिना जांच के एफआइआर करने की बात कह रहे थे। एक महीने की जद्दोजहद के बाद वही हुआ भी। एडीजी साफ भी कर चुके हैं कि जिस जनपद की जांच बाहर के जिलों से कराई जाने लगे, उनके अफसरों को खुद ही सोचना चाहिए।
कुर्सी पर फेवीकोल लगवाने की जुगत
इन दिनों जनपद के कई बड़े कद्दावर इंस्पेक्टरों की कुर्सी डोल रही है, जो फेवीकोल का जोड़ लगाकर कुर्सी से चिपकने की कवायद में जुट गए हैं। जी हां, यहां जोन और रेंज स्तर पर दारोगा और इंस्पेक्टरों के स्थानांतरण को तैयार होने वाली लिस्ट की बात की जा रही है। इंस्पेक्टर पांच और दारोगा छह साल जनपद और दस साल रेंज में रहने वाले पुलिसकर्मियों को बाहर की रेंज और जोन में स्थानांतरण करने की कवायद चल रही है। इस सीमा में जनपद के कई इंस्पेक्टर और दारोगा आ रहे हैं, जिनकी कप्तान ऑफिस से सूची भी मांग ली गई है। ऐसे में कई इंस्पेक्टर अभी भी जनपद में रुकने की जुगत भिड़ा रहे हैं। कुछ पहले से ही अंडर ट्रांसफर होने के बाद भी चार्ज चला रहे हैं। सवाल, उत्तर प्रदेश शासन की स्थानांतरण नीति सबके लिए अलग अलग है क्या।