मेरठ पंचायत चुनाव : जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए भाजपा के पास नहीं थी ठोस रणनीति
भाजपा मेरठ को पश्चिम यूपी की राजनीतिक राजधानी मानती है और यहीं पर अपना पंचायत अध्यक्ष बनाने की रेस से पार्टी तकरीबन बाहर नजर आ रही है। पार्टी ने मेरठ से बड़ा सियासी संदेश देने का अवसर गंवा दिया।
मेरठ, जेएनएन। भाजपा मेरठ को पश्चिम यूपी की राजनीतिक राजधानी मानती है, और यहीं पर अपना पंचायत अध्यक्ष बनाने की रेस से पार्टी तकरीबन बाहर नजर आ रही है। पार्टी ने मेरठ से बड़ा सियासी संदेश देने का अवसर गंवा दिया। पंचायत चुनावों में चौथे स्थान पर पिछड़ने से पार्टी के मिशन-2022 को भी झटका लगा है। संगठन की अनुभवहीनता से ठोस रणनीति नहीं बन सकी। सही कसर जनप्रतिनिधियों की ढीली पकड़ और चुनावी मैदान में उतारे गए कमजोर प्रत्याशियों ने पूरी कर दी।
भाजपा ने पंचायत चुनावों मं बेशक पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन पंचायत अध्यक्ष को लेकर कोई रणनीति नजर नहीं आई। इस बार अध्यक्ष पद सामान्य वर्ग के कोटे में आ गया था, ऐसे में मना जा रहा था कि पार्टी ब्राह्मणों को मौका देकर बड़ा संदेश देगी। इस कड़ी में लंबा राजनीतिक अनुभव रखने वाले पूर्व जिलाध्यक्ष एवं क्षेत्रीय उपाध्यक्ष विमल शर्मा का नाम लिया जा रहा था। विमल कई चुनावी प्रबंधन संभाल चुके हैं, लेकिन टिकट घोषित होने से पहले उनका नाम अचानक गायब हो गया। वार्ड-13 से 2010 में रिकार्ड मतों से जीते धर्मेंद्र भारद्वाज का नाम पार्टी में चर्चा में आया, जहां माना जा रहा था कि पार्टी उन्हें अध्यक्ष पद के लिए आगे रखेगी। वो 2014 एमएलसी-स्नातक चुनावों में 20 हजार से ज्यादा वोट पाकर बेहद नजदीकी अंतर से हारे थे। लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया।
सामान्य वर्ग में पूर्व जिला उपाध्यक्ष समीर चौहान को पार्टी ने वार्ड-25 से लड़ाया, लेकिन वो भारी अंतर से हारकर राजनीतिक जमीन गंवा बैठे। पार्टी का एक खेमा मानता है कि सीट भले ही सामान्य वर्ग के कोटे में आई, लेकिन दो बार पंचायत सदस्य रह चुकीं मीनाक्षी भराला को अध्यक्ष बनाने की रणनीति बन चुकी थी। इससे पार्टी महिला कोटा भी पूरा लेती, लेकिन उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों ने घेरेबंदी कर हरा दिया। उनकी आगे की डगर भी आसान नहीं होगी। गुर्जर चेहरे के रूप में रोहिताश पहलवान ने भी अध्यक्ष पद के लिए नाम चलाया था, लेकिन उनका अति आत्मविश्वास भारी पड़ा। 33 वार्डो में बहुमत के लिए 17 सदस्यों का समर्थन पाना भाजपा के लिए अब बेहद कठिन है। बसपा के नौ सदस्य हैं, जो रालोद और सपा के साथ मिलकर पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंच सकती है। पांच निर्दलीय सदस्य हैं, जो किसी भी दल को सत्तासीन करने में बड़ी मदद कर सकते हैं।