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Meerut News: 200 साल का हुआ सरधना का ऐतिहासिक चर्च, 1822 में बेगम समरू ने कराया था निर्माण

Historical Church मेरठ के सरधना कस्‍बे में स्‍थित चर्च के बारे में मान्यता है कि यहां माता मरियम की चमत्कारी तस्वीर के दर्शन करने से हर इच्छा पूरी होती है। इसे माइनर बसिलिका का दर्जा हासिल है। विभिन्‍न राज्यों के श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Parveen VashishtaPublished: Tue, 04 Oct 2022 07:30 AM (IST)Updated: Tue, 04 Oct 2022 07:30 AM (IST)
Meerut News: 200 साल का हुआ सरधना का ऐतिहासिक चर्च, 1822 में बेगम समरू ने कराया था निर्माण
200 साल का हुआ सरधना का ऐतिहासिक चर्च

मेरठ, जागरण संवाददाता। सरधना कस्बे का ऐतिहासिक चर्च 200 वर्ष का हो गया है। इसे बेगम समरू ने बनवाया था। 200 वर्ष होने के  उपलक्ष्य में मंगलवार को यहां भव्य कार्यक्रम आयोजित होगा। इसमें बड़ी संख्‍या में श्रद्धालु हिस्सा लेंगे। इसके लिए चर्च परिसर को सजाया गया है। मान्यता है कि चर्च में माता मरियम की चमत्कारी तस्वीर के दर्शन करने से हर इच्छा पूूर्ण होती है। इसीलिए यहां हर वर्ष विशेष प्रार्थना और मेले की परंपरा भी शुरू हुई। विभिन्‍न राज्यों के श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। 

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यहां हर रविवार को माता मरियम के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। चर्च प्रबंधक फादर पाक्यनाथन ने बताया कि अक्टूबर 2022 के प्रथम सप्ताह में चर्च की स्थापना के 200 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इसी खुशी में यह आयोजन हो रहा है। मेरठ के फादर सुबह दस बजे विशेष प्रार्थना कराएंगे।

1809 में शुरू हुआ था निर्माण कार्य

बेगम समरू के बनवाया गया ऐतिहासिक चर्च आस्था के साथ-साथ कला की भी बेहतरीन मिसाल है। चर्च का निर्माण कार्य 1809 में शुरू हुआ था। गिरिजाघर के दरवाजे के पास स्थित इमारत का निर्माण काल 1822 दर्शाया गया है। बताया जाता है कि उस समय इसे बनाने में करीब चार लाख रुपये का खर्च आया था।

माइनर बसिलिका का दर्जा है हासिल 

इस चर्च को पोप जान (23वें) ने 1961 में माइनर बसिलिका का दर्जा प्रदान किया था। इसमें चर्च की भव्यता का काफी योगदान है। ऐतिहासिक और भव्य गिरिजाघरों को ही यह दर्जा मिलता है। यहां लगी कृपाओं की माता की चमत्कारी तस्वीर के कारण हर वर्ष इस चर्च में विशेष प्रार्थना और मेले की परंपरा शुरू हुई।

1778 से शुरू हुई थी बेगम समरू की हुकूमत 

कोताना कस्बा (बागपत) के रहने वाले लतीफ अली खां की बेटी फरजाना थीं। भरतपुर के राजा जवाहर सिंह के यहां सेनापति वाल्टर रेंनार्ड उर्फ समरू ने फरजाना से शादी की थी। समरू की मौत के बाद फरजाना बेगम (बेगम समरू)  ने उनकी गद्दी संभालते हुए वर्ष 1778 से लंबी व शानदार हुकूमत की शुरुआत की। इस दौरान उन्होंने कैथोलिक धर्म अपना लिया था।


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