रावण दहन के साथ-साथ मेरठ को चाहिए इन 10 बुराइयों से छुटकारा Meerut News
इस दशहरा पर्व पर रावण दहन के साथ मेरठ को शहर की इस दस बुराईयों से भी निजात चाहिए। यह संकल्प आमजन के साथ-साथ सरकारी सिस्टम को भी लेनी की जरूरत है।
मेरठ, जेएनएन। असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक दशहरा पर्व पर यूं तो हर व्यक्ति बुराइयों से दूर रहने का संकल्प लेता है। आज बुराई के प्रतीक कुंभकरण, मेघनाद समेत दशानन के पुतले जलेंगे। लोग जश्न मनाएंगे, लेकिन हकीकत से भी रूबरू होने की जरूरत है। शहर में ऐसी तमाम बुराइयों ने जड़ें जमा रखी हैं, जिन्होंने जीना मुहाल कर दिया है। अबकी बार रावण दहन के साथ इन बुराइयों से निजात मिले। यह संकल्प आमजन के साथ-साथ सरकारी सिस्टम को भी लेने की जरूरत है।
सड़क पर फैला कूड़ा
शहर में रोज 900 मीटिक टन कूड़ा उत्पन्न होता है। जिसमें से 70 फीसद ही उठ पाता है। 30 फीसद कूड़ा शहर में ही सड़ रहा है, जो बीमारियां दे रहा है। कूड़ा निस्तारण प्लांट न होने से शहर के चारों तरफ डंंपिंग ग्राउंड बन गए हैं, जिससे स्वच्छ शहर की परिकल्पना बेमानी हो गई है। नगर निगम प्रशासन से शहर के लोग इस दशहरा यही संकल्प चाहते हैं कि अगले बरस इस बुराई से मुक्ति मिलेगी।
खुले नाले बने जानलेवा
शहर में 300 से अधिक छोटे-बड़े नाले हैं, जो खुले हैं। इनमें ओडियन, आबू नाला एक और दो की स्थिति खतरनाक है। ये खुले नाले हर साल मासूमों की जान लेते हैं। कूड़ा और गोबर से अटे हैं। जनता और जनप्रतिनिधि इन्हें ढकने की मांग करते रहे हैं। यह नाले ढककर पार्किंग के रूप में उपयोग में लाए जा सकते हैं। दशहरे पर निगम प्रशासन खुले नाले ढकने का संकल्प ले तो एक बुराई खत्म हो जाएगी।
बेलगाम अपराध
मेरठ में अपराध बढ़ गए हैं। हत्या, लूट, डकैती, चेन स्नेचिंग, मोबाइल चोरी, वाहन चोरी जैसी घटनाएं बढ़ गई है। महिला अपराधों दुष्कर्म, दहेज उत्पीड़न, दहेज हत्या, चेन स्नेचिंग, छेड़छाड़ जैसी घटनाओं का बढ़ता ग्राफ पुलिस के लिए चुनौती है। कानून का खौफ अपराधियों पर तनिक भी नहीं है। इस दशहरे पर पुलिस प्रशासन को संकल्प लेने की जरूरत है कि वह क्राइम ग्राफ पर लगाम लगाए। ताकि लोग बिन भय शहर में खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।
अतिक्रमण का बदनुमा दाग
शहर के सौंदर्यीकरण की योजनाएं अतिक्रमण के चलते बेमानी साबित हो रही हैं। नाले-नाली और रोड पटरी पर अतिक्रमण हर गली-मोहल्ले में है। इससे न केवल जलनिकासी बाधित होती है बल्कि यातायात व्यवस्था के लिए नासूर जैसा है। शहर की खूबसूरती के लिए अतिक्रमण तो बदनुमा दाग है। इस दाग को मिटाने की जरूरत है। प्रवर्तन दल ने कार्रवाई शुरू की है, लेकिन आम जनता की सहभागिता ही इससे मुक्ति दिला सकती है।
सिंगल यूज प्लास्टिक
50 माइक्रोन से कम मोटी पॉलीथिन और सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग ने बीमारियों को जन्म दिया है। कैंसर जैसी बीमारी का कारण है। वहीं 100 साल तक यह नष्ट नहीं की जा सकती है। जिससे प्लास्टिक कचरे का ढेर लग गया है। जो पर्यावरण और शहर की आबो-हवा के लिए बेहद खतरनाक है। दो अक्टूबर से प्रतिबंध लगा दिया गया है। उम्मीद है कि इस दशहरे हर व्यक्ति इससे नाता तोड़ने का संकल्प लेगा। ताकि अगले बरस तक इस बुराई का अंत हो सके।
सीवरेज और शुद्ध पेयजल
शहर में शत-प्रतिशत सीवरेज सिस्टम और शुद्ध पेयजल आपूर्ति बड़ी समस्या रही है। मेरठ शहर में दो तरह के हालात हैं। एक 40 साल पुरानी सीवर लाइन से परेशान हैं और दूसरे खुले नाले में बहते गंदे बदबूदार पानी से। दोनों ही समस्या से निजात दिलाने के लिए प्लान बनते हैं, लेकिन अमल नहीं होता है। वहीं, शुद्ध पेयजल शहर की सबसे बड़ी जरूरत है। बेहतर स्वास्थ्य के लिए शुद्ध पेयजल चाहिए। आधे शहर को गंगाजल नहीं मिल रहा है। नलकूप का पानी बिना ट्रीट किए घरों में पहुंच रहा है।
भ्रष्टाचार
पैसा कमाने की लालसा कालाबाजारी और भ्रष्टाचार को जन्म दे रही है। मेरठ में भ्रष्टाचार के कई मामले सुर्खियों में रहे हैं। बात सुशासन की होती है। इसका पाठ भी सरकारी महकमों को पढ़ाया जाता है। फिर भी जड़ें इतनी गहरी हैं कि आए दिन रिश्वत लेने के मामले सामने आ ही जाते हैं। हालात ये हैं कि छोटे-छोटे कामों के लिए लोगों को परेशान किया जाता है। भ्रष्टाचार के चलते ही सरकार की योजनाओं का लाभ अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाता है।
जरा सी बारिश और जलभराव
मेरठ शहर में वैसे तो 300 से अधिक छोटे-बड़े नाले हैं, लेकिन जरा सी बारिश में शहर में भीषण जलभराव होता है। मोहकमपुर औद्योगिक क्षेत्र, दिल्ली रोड, बागपत रोड और उससे जुड़े दर्जन भर मोहल्ले, कसेरूखेड़ा नाले के समीप वाले मोहल्ले जलभराव की चपेट में हर साल आते हैं। दरअसल, जलभराव वाले क्षेत्रों की प्लानिंग बनाकर काम करने की जरूरत है।
आवारा आतंक
शहर आवारा कुत्तों और बंदरों के हमले बढ़ गए हैं। पीएल शर्मा जिला अस्पताल में रोजाना 100 से अधिक पीड़ित रैबीज इंजेक्शन लगवाने कतार में खड़े होते हैं। आवारा कुत्तों की आबादी एक लाख के करीब पहुंच गई है। जबकि पत्थरवालान समेत एक दर्जन मोहल्ले बंदरों से सहमे हैं। लोग घरों को लोहे के पिंजरे से ढक रहे हैं। नगर निगम ने एजेंसी तय की है। उम्मीद है कि आवारा कुत्तों के साथ बंदरों से भी निजात मिलेगी।
प्रमुख मार्गो पर छाया अंधेरा
त्योहार हो या सामान्य दिन। शहर के प्रमुख मागरें पर अंधेरा छाया रहता है। इससे रात में दुर्घटना का खतरा रहता है। ईईएसएल के पास एलईडी लगाने का ठेका है, लेकिन कंपनी ने काम पूरा नहीं किया। 20 हजार से ज्यादा एलईडी लाइट स्ट्रीट लाइट के खंभों पर हैं ही नहीं। लोग परेशान हैं। नगर निगम प्रशासन की अनदेखी से यह समस्या विकराल रूप ले चुकी है। जिसे समाप्त किया जाना चाहिए।