मेरठ : प्रदूषण में मास्क बाहरी और कच्ची हल्दी-दूध भीतरी कवच, जागरण विमर्श में डा. सत्यपाल सिंह ने रखे विचार
Jagran Vimarsh शहीद मंगल पांडे डिग्री कालेज के प्राध्यापक डा. सत्यपाल सिंह ने कहा कि मानव जनित प्रदूषण कारकों को रोकना मनुष्य के व्यवहार में निहित है। बताया कि उद्योग वाहनों के धुएं रैपिड रेल निर्माण जैसे कार्यों से उठने वाली धूल आदि प्राइमरी प्रदूषण है।
अमित तिवारी, मेरठ। Jagran Vimarsh दैनिक जागरण की अकादमिक संगोष्ठी में सोमवार को शहीद मंगल पांडे डिग्री कालेज के प्राध्यापक डा. सत्यपाल सिंह ने कहा कि प्रदूषण के खतरे का अनुमान ग्लासगो में चल रहे जलवायु सम्मेलन में दुनिया भर के देशों की चिंता सुनकर लगाया जा सकता है। विकसित देश अब विकासशील देशों पर दबाव बना रहे हैं। ऐसे में भारत ने विकास, रोजगार, संसाधन आदि का हवाला देते हुए मजबूती से अपना पक्ष रखा है। हमें यह ध्यान देने की जरूरत है कि मानव जनित प्रदूषण के कारकों को हम अपने व्यवहार और आचरण में बदलाव लाकर ही रोक सकते हैं।
प्रदूषक तत्व आपस में मिलकर होते हैं और खतरनाक
डा. सिंह ने बताया कि उद्योग, वाहनों के धुएं, रैपिड रेल निर्माण जैसे कार्यों से उठने वाली धूल आदि प्राइमरी प्रदूषण है। ये अलग-अलग तरह के प्रदूषण जब वातावरण में घुलकर आपस में मिलते हैं तो और भी खतरनाक रूप धारण करते हैं। इसे सेकेंडरी प्रदूषण कहते हैं। ओजोन परत भी सेकेंडरी प्रदूषण है। धरती से ऊपर वह हमारी रक्षक जरूर है लेकिन मनुष्य के निकट आए तो खतरनाक हो सकती है। सूर्य से आने वाली किरणें पृथ्वी से टकराकर वापस जाती हैं जिससे वातावरण में उनका असर कम होता है। लेकिन ओजोन जैसी प्रदूषण जनित परतों के कारण सूर्य की किरण वापस नहीं जा पाती जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। यह ठीक उसी तरह कार्य करता है जिस तरह बेहद ठंडी जगहों पर पौधों को पर्याप्त गर्मी देने के लिए ग्लास हाउस बनाते हैं। इसमें भी सूर्य की किरणों भीतर प्रवेश करती हैं लेकिन बाहर नहीं निकल पाती और भीतर का तापमान बढ़ जाता है।
कड़ाई से हो कानून का अनुपालन
डा. सिंह के अनुसार प्रदूषण को लेकर बने कानूनों का कड़ाई से अनुपालन होना चाहिए। उद्योगों में आब्जर्वेंट व स्क्राइबर अनिवार्य रूप से लगवाया जाए। ट्रैफिक में खड़े होकर बिना वजह हार्न बजाने वालों का चालान होना चाहिए। वाहनों की प्रदूषण जांच में कड़ाई होनी चाहिए। कचरा फैलाने वालों पर भी सख्ती होनी चाहिए। स्वअनुशासन से इनमें बड़ा सुधार लाया जा सकता है।
खुद को और पर्यावरण को बचाएं
पीएम-2.5 के बेहद छोटे कण हमारी सांस की नलियों में प्रवेश कर जम जाते हैं जिससे नली बंद हो जाती है। इसलिए मास्क हमेशा लगाएं। दूसरों को भी लगाने को प्रेरित करें। नाक में सरसों का तेल लगाकर निकलने से भी बचाव होता है। यह एंटीसेप्टिक भी होता है। रात में दूध में कच्ची हल्दी उबाल कर जरूर पीएं। तुलसी मदर आफ आल मेडिसिनल प्लांट है। लेकिन तुलसी की पत्ती चबाकर कतई न खाएं। इसमें पारा होता है जो चबाने से नुकसानदेह है। इसे उबालकर या पीसकर ग्रहण करें। व्यायाम कर पसीना निकालें, विशेष तौर पर गर्दन के आस-पास पसीना अधिक निकालें। पर्यावरण संरक्षण के लिए जब, जहां, जिस भी मौके पर अवसर मिले पौधे लगाएं और उनकी देखभाल करें।