प्रदेश में गाजियाबाद के बाद मेरठ की हवा सबसे प्रदूषित
एनसीआर तेजी से गैस चेंबर में तब्दील होने की ओर बढ़ रहा है। ईपीसीए के सख्त निर्देशों के बावजूद हवा को सेहतमंद बनाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। एक्यूआइ का स्तर चार सौ तक पहुंच गया। मेरठ में पीएम2.5 की मात्रा पहली बार 500 माइक्रोग्राम दर्ज की गई है।
मेरठ, जेएनएन। एनसीआर तेजी से गैस चेंबर में तब्दील होने की ओर बढ़ रहा है। ईपीसीए के सख्त निर्देशों के बावजूद हवा को सेहतमंद बनाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। एक्यूआइ का स्तर चार सौ तक पहुंच गया। मेरठ में पीएम2.5 की मात्रा पहली बार 500 माइक्रोग्राम दर्ज की गई है। विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि अगर प्रदूषण का आंकड़ा ऐसा ही बना रहा तो फेफड़ों पर घातक असर होगा। नाइट्रोजन का स्तर भी बढ़ रहा है। कोविड-19 के दौर में महामारी को बड़ा मौका मिल सकता है।
पिछले सप्ताहभर से एक्यूआइ का स्तर ढाई सौ के आसपास बना हुआ था। रविवार को अचानक एनसीआर की हवा बिगड़ गई। गाजियाबाद के लोनी में एक्यूआइ 416, मेरठ के गंगानगर में 354, जयभीमनगर में 316 और पल्लवपुरम में 394 तक पहुंच गई। पीएम 2.5 एवं 10 दोनों की उच्चतम मात्रा 500 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंची है। यह बेहद खतरनाक संकेत हैं। नवंबर और दिसंबर में तापमान गिरने से एक्यूआइ एक हजार के आसपास पहुंच सकती है। यह आपातकालीन स्थिति है। कदम तो उठे हैं, पर हवा का क्या
ईपीसीए के चेयरमैन भूरेलाल की अगुआई वाली कमेटी ने 15 अक्टूबर से 25 फरवरी तक जनरेटरों के संचालन पर रोक लगाई है। टीम लगातार गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर समेत अन्य शहरों में प्रदूषण की स्थिति पर नजर रख रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनसीआर में हवा के सुधार के लिए 50 टीमों का गठन किया है। ग्रेडेड एक्शन प्लान लागू किया गया है। वायु प्रदूषण हवा के बहाव और मौसम पर निर्भर करता है। सर्दी बढ़ने के साथ हवा में प्रदूषित कणों का घनत्व बढ़ेगा। यह सास के मरीजों के लिए खतरनाक है। यह है तस्वीर
शहर एक्यूआइ
गाजियाबाद 416
मेरठ 394
नोएडा 386
मुरादाबाद 386
बुलंदशहर 373
लखनऊ 362
मुजफ्फरनगर 287
कानपुर 267
बनारस 265
इनका कहना है
प्रदूषण रोकने के लिए सरकार ने प्रभावी कदम उठाए हैं। याद रहे कि ज्यादातर प्रदूषण स्थानीय है। पराली की भागीदारी 20 फीसद से भी कम है। लोग कचरा कतई न जलाएं। नवंबर और दिसंबर में प्रदूषित कण नीचे की परत में जमा होंगे। इससे सास लेने में कठिनाई होगी। 50 टीमें नियमित निगरानी कर प्रदूषण फैलाने वालों पर नजर रखेंगी।
एसके त्यागी, पर्यावरण वैज्ञानिक, गाजियाबाद
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खासकर सíदयों में वायु प्रदूषण का असर ज्यादा होता है। पार्टीकुलेट मैटर नीचे आ जाते हैं। सास के साथ इन कणों के शरीर में पहुंचने पर हार्ट तक रक्त पहुंचाने वाली नलिकाएं सख्त होने लगती हैं। ब्लड प्रेशर बिगड़ता है। प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन का स्तर ज्यादा मिल रहा। यह खतरनाक है। फेफड़ों के कमजोर होने से हार्ट पर लोड बढ़ता है।
डा. विनीत बंसल, ह्दय रोग विशेषज्ञ