विजय के महायज्ञ में मेरठ ने भी दी थी आहुति
पाकिस्तानी सेना की बर्बरता से मानवता को बचाने के लिए युद्ध रूपी यज्ञ में भारतीय सेना ने आहुति दी थी। आहूति देने उतरी भारतीय सेना ने युद्ध के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अपनी विजय को दर्ज कराया।
मेरठ : पाकिस्तानी सेना की बर्बरता से मानवता को बचाने के लिए युद्ध रूपी यज्ञ में भारतीय सेना ने आहुति दी थी। आहूति देने उतरी भारतीय सेना ने युद्ध के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अपनी विजय को दर्ज कराया। उस आहूति में मेरठ छावनी स्थित पाइन डिविजन ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विश्व के इतिहास में अहम स्थान रखने वाली इस घटना में पाइन डिव के 18 हजार से अधिक जवान व अधिकारी मैदान में उतरे थे। इसी डिविजन ने छह दिसंबर को जेसोर जीत कर दुश्मन की कमर तोड़ दी थी। उस युद्ध की यह पहली बड़ी जीत थी। इसके बाद भारतीय सेना बढ़ती रही और दुश्मन जान बचाकर भागता रहा। पाइन डिव का मुख्यालय उस समय मेरठ में नहीं था। वर्ष 1976 में जनरल ऑफिसर कमांडिंग मैथ्यू थॉमस रांची से डिव को मेरठ छावनी ले आए।
मेरठ में हुई सैनिकों की ट्रेनिंग
1971 के समय पंजाब रेजीमेंटल सेंटर, सिख रेजीमेंटल सेंटर, डोगरा रेजीमेंटल सेंटर, सिख लाइट रेजीमेंटल सेंटर मेरठ में थे। यहां से युवाओं को प्रशिक्षित कर सैन्य इकाईयों में भेजा जाता था। मेरठ की पंजाब नाभा अकाल रेजीमेंट ने गरीबपुर पर हमला कर जीत दर्ज की थी। इसे मेरठ के ब्रिगेडियर राजकुमार सिंह कमांड कर रहे थे।
तीन गुना दुश्मन मारे
बांग्लादेश के उदय में हमारी सेना के 3842 जवान शहीद हुए और 9852 जवान घायल हुए थे। जबकि पाकिस्तान के लगभग 9300 सैनिकों को हमारे सैनिकों ने मार गिराया था और करीब 15 हजार को बुरी तरह से जख्मी कर दिया था। पूर्वी व पश्चिमी क्षेत्र में युद्ध में साहसिक प्रदर्शन के लिए मेरठ के छह अफसरों को भी अलंकृत किया गया था।
हाथ खड़े कर लेना, जिंदा रहोगे
पस्त हौसले के साथ असहाय होकर जगह-जगह आत्मसमर्पण के लिए सफेद झंडा दिखाती पाकिस्तानी सेना के लिए भारतीय सेना प्रमुख एसएचएफजे मानेकशा ने 15 दिसंबर को ही आसमान से संदेश का लिफलेट गिरवा दिया था। इसमें लिखा था कि, सुबह सभी हाथ खड़े कर लेना, किसी को जख्मी नहीं किया जाएगा। सब जिंदा रहेंगे। 16 दिसंबर को पाकिस्तान के ले. जनरल नियाजी ने 93 हजार से अधिक सैनिकों के साथ भारतीय सेना के मेजर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण किया। युद्ध इतिहास में यह अब तक का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण है। दुश्मन के अंगारों ने दिया 'संत सोल्जर' को रास्ता
भारतीय सेना के जज्बे की जीत के एक मिशाल ले. जनरल (तब ले. कर्नल) हानुत सिंह भी रहे। पुना हॉर्स के कमान अधिकारी के तौर पर पूर्वी पाकिस्तान के बसंतर में अपने जवानों के साथ दुश्मन की हर दीवार ढहाते हुए आगे बढ़ते रहे। 15-16 दिसंबर की रात को बसंतर नदी को पार करते हुए वे आगे बढ़े तो सामने की जमी दुश्मन के अंगारों को अपने सीने में दबाए भारतीय पूतों का इंतजार कर रही थी। उन्हें मालूम था कि दुश्मन ने जमीन के भीतर लैंड माइन बिछा रखे हैं। वे सामने गए और कुछ देर तक सोचने के बाद पलट कर बोले कि, दुश्मन का एक भी लैंडमाइन जवानों को छू भी नहीं सकता। पूरी बटालियन को पीछे आने का निर्देश देते हुए वे स्वयं आगे बढ़ते गए। सैकड़ों लैंडमाइन के बीच से गुजरते हुए पूरी बटालियन दूसरी ओर निकल गई लेकिन एक भी लैंडमाइन उन्हें आहत नहीं कर सका। बाद में उन्हें 'संत सोल्जर' और 'सोल्जर्स जनरल' कहा जाने लगा।
एयरफील्ड की रखवाली में तैनात के फौजी श्वान
विजय पताका में आरवीसी के फौजी श्वान भी पूर्वी व पश्चिमी क्षेत्र में गार्ड बनकर खड़े रहे। इन्हें एयरफील्ड की सुरक्षा में तैनात किया गया था। हमले के दौरान फौजी श्वानों की उपस्थिति में एक भी घुसपैठ नहीं हो सकी थी। युद्ध के बाद मेरठ छावनी में लाए गए युद्धबंदियों की निगरानी के लिए भी फौजी श्वान तैनात किए गए थे। इनकी विश्वसनीयता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि युद्ध बंदियों को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाते समय भी फौजी श्वानों को साथ रखा जाता था।
मेरठ के ये अधिकारी हुए थे अलंकृत
नाम : ब्रिगेडियर राजकुमार सिंह
पदक : महावीर चक्र
तत्कालीन पद : ले. कर्नल
रेजीमेंट : पंजाब रेजीमेंट
नाम : ब्रिगेडियर जेके तोमर
पदक : वीर चक्र
तत्कालीन पद : मेजर
रेजीमेंट : राज-रिफ नाम : ब्रिगेडियर रणवीर सिंह
पदक : वीर चक्र
तत्कालीन पद : मेजर
रेजीमेंट : मराठा रेजीमेंट नाम : कर्नल हरीश चंद्र शर्मा
पदक : वीर चक्र
तत्कालीन पद : मेजर
रेजीमेंट : जाट रेजीमेंट नाम : कर्नल जितेंद्र कुमार
पदक : वीर चक्र
तत्कालीन पद : कैप्टन
रेजीमेंट : आर्टिलरी नाम : ले. कर्नल डीके शर्मा
पदक : वीर चक्र
तत्कालीन पद : कैप्टन
रेजीमेंट : आर्टिलरी