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    क्या आप जानते हैं गजक व रेवड़ी कैसे बनीं!... गलती से, कम रोचक नहीं है गजक व रेवड़ी की कहानी

    By Om Bajpai Edited By: Praveen Vashishtha
    Updated: Sun, 07 Dec 2025 05:09 PM (IST)

    मेरठ की गजक और रेवड़ी का स्वाद दूर-दूर तक फैला है। इसकी शुरुआत 1904 में हुई, जब गलती से गरम गुड़ तिल में गिर गया। लाला रामचंद्र ने कारीगरों को इस मिश् ...और पढ़ें

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    गजक व रेवड़ी। जागरण आर्काइव

    जागरण संवाददाता, मेरठ। मेरठ की गजक और रेवड़ी का स्वाद और सुगंध दूर-दूर तक फैली है। इसके अस्तित्व में आने की कहानी कम रोचक नहीं है। 1904 की बात है जब लाला रामचंद्र की गुदड़ी बाजार स्थित दुकान में तिल बुग्गा तैयार करने के लिए सफेद तिल एक पात्र में रखे थे। इसी बीच कारीगर चिक्की बनाने के लिए कढ़ाई में गुड़ गरम कर रहे थे। कढ़ाई से गरम गुड़ दूसरे पात्र में डालते समय गलती से उसमें गिर गया, जिसमें तिल रखा हुआ था। लालाजी ने जब देखा तो काफी नाराज हुए।

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    उन्होंने इतना माल बर्बाद न हो इसके लिए कारीगर से तिल मिले गुड़ से कुछ बनाने के लिए कहा। दो तीन घंटे की मेहनत के बाद रेवड़ी की तरह आयटम तैयार हुआ। इसे लोगों ने पसंद किया। इसके बाद वे इसमें निरंतर सुधार करते रहे और 1915 तक बहुत कुछ वर्तमान सी दिखने वाली मेरठ की रेवड़ी अस्तित्व में आ चुकी थी। अंग्रेज अधिकारी भी इसके स्वाद के मुरीद थे। आज रामचंद्र के नाम से रेवड़ी बनाने वाले आपको जगह जगह मिल जाएंगे। पेश है दैनिक जागरण की रिपोर्ट...।

    रामचंद्र सहाय की चौथी पीढ़ी के वरुण ने बताया कि 1927 में रामचंद्र सहाय का निधन हो गया था। तब तक आसपास के शहरों से लोग इसे लेने आने लगे थे। लोगों के लिए मिष्ठान न लेकर तिल और गुड़ के रूप में जाड़े में स्वास्थ्य की दृष्टि से खाने का अच्छा विकल्प बन चुका था। काफी समय तक गुड़ की रेवड़ी और लड्डू वाली काजू वाली गजक बनती रही। बाद में पट्टी गजक, स्प्रिंग रोल गजक जुड़ती चली गई। चाकलेट रोल गजक और ड्राई फ्रूट समोसा गजक बाजार में आ चुकी है। वर्तमान में उनके चाचा सुनील कुमार गुप्ता के साथ उनके भाई दीपक भी इस काम से जुड़े हैं। आबू लेन सहित तीन अन्य जगह उनके आउट लेट हैं। बताया कि देशभर में फैले एक हजार डीलरों के अलावा 18 देशों में उनकी गजक और रेवड़ी जाती है।

    मशीन का प्रयोग नहीं होता
    रेवड़ी और गजक बनाने में आज भी किसी प्रकार की मशीन का प्रयोग नहीं होता यह कारीगरों के हाथों से तैयार होती है। इसमें किसी केमिकल का भी प्रयोग नहीं होता। लोग, इलायची, जावित्री, जायफल मिलाया जाता है, जिससे यह सर्दी में स्वास्थ्य के लिए गुणकारी है। कढ़ाई में गुड़ को गरम करने के बाद उसकी पिटाई की जाती है। 15 से 20 मिनट पिटाई या पट्टी खींचने का काम होता है। इससे लंबी-लंबी पतली छड़े गट्टा तैयार होते हैं, इन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर गरम तिलों में डालते हैं। इसे घान लगाना कहते हैं, जिसके बाद सिक्के के आकार रेवड़ी तैयार होती है।

    जल्दी ही मेरठ की गजक को मिलेगा जीआइ टैग
    मेरठ की गजक को जियोग्राफिकल आइडेंटीफिकेशन मिलने की कार्रवाई चल रही है। मेरठ रेवड़ी गजक व्यापारी वेलफेयर एसोसिएशन के माध्यम से इसके लिए आवेदन किया गया था। अध्यक्ष वरुण गुप्ता ने बताया कि इससे ढाई सौ व्यापारी जुड़े हैं। चेन्नई स्थित संस्था में जीआइ मैन के नाम से प्रसिद्ध डा. रजनीकांत का भी सहयोग रहा है।