मेरठ के डाक्टर बोले, पिछली लहर से पांच गुना खतरनाक रहा कोरोना... दुआ है कि फिर न आए
प्रैल के अंतिम और मई के पहले सप्ताह में कोरोना का कहर पीक पर था। मेडिकल कालेज से लेकर निजी अस्पतालों की आइसीयू तक में भयावह मंजर था। डाक्टर वो दौर याद कर सिहर जाते हैं। डाक्टरों ने आपबीती बताई।
मेरठ, जेएनएन। अप्रैल के अंतिम और मई के पहले सप्ताह में कोरोना का कहर पीक पर था। मेडिकल कालेज से लेकर निजी अस्पतालों की आइसीयू तक में भयावह मंजर था। डाक्टर वो दौर याद कर सिहर जाते हैं। मरीजों को बेड व आक्सीजन न होने की बात कहकर लौटाना पड़ा। कई मरीज भर्ती होते ही जान गंवा बैठे। आाइसीयू भरी थी, और भर्ती मरीजों के चेहरे पर मौत का डर साफ नजर आता था। इस दौरान आइसीयू में डयूटी करने वाले डाक्टरों ने गजब का साहस दिखाया, और ऐसे भी मरीज ठीक किए, जिनकी आक्सीजन 50 तक आ गई थी। डाक्टर उस दौर को याद कर रहे हैं।
मेडिकल कालेज फिजिशियन डा. अरविंद ने बताया- नए मरीज अब ज्यादा गंभीर नहीं हैं। लेकिन पिछली लहर से यह लहर पांच गुना जानलेवा रही। आइसीयू बेड न सिर्फ भरे थे, बल्कि वेंटिंग 50 पार कर गई थी। पिछली लहर में 80-90 प्रतिशत आक्सीजन को गंभीर समझते थे, जो इस बार 50-60 तक आ गया। मरीज रोते हुए खुद को बचाने की गुहार लगाते थे, जो भयावह था। पहले मरीजों की स्टेरायड हम शुरू करते थे, लेकिन इस बार वो घर से खाकर आ रहे थे, इसलिए शुगर अनियंत्रित रही। उसी वजह से फंगस पकड़ रहा है। भर्ती होने के दो दिन में मरीजों की जान गई। खतरनाक निमोनिया और थक्का बनने से हार्ट अटैक ने बड़ी संख्या में मरीजों की जान ली।
केएमसी फिजिशियन डा. अर्पित सैनी ने कहा- 175 बेडों वाले वार्ड के आइसीयू में बेहद गंभीर मरीज पहुच रहे थे, और यह सिलसिला दिनरात का था। कई मरीजों को तत्काल ही हाई फ्लो आक्सीजन पर लेना पड़ा। हमारी क्रिटकल केयर टीम बेहद सजग थी। लेकिन महामारी बेहद तेज और मारक थी, जिसकी वजह से हम कई मरीजों को बचा नहीं पाए। संक्रमण से दो दिन में मरीजों का आक्सीजन लेवल अचानक गिर रहा था। ज्यादा स्टेरायड लेकर आने की वजह से कई मरीज प्रतिरोधक क्षमता खो चुके थे। मरीजों का न सिर्फ इलाज महत्वपूर्ण था, बल्कि उन्हें डर से भी उबारना था। मरीजों में इंफ्लामेट्री मार्कर बेहद ज्यादा मिला। डी-डाइमर का स्तर 4000 तक देखा गया।
न्यूटिमा फिजिशियन डा. विश्वजीत बेंबी ने कहा- 96 से ज्यादा आक्सीजन सेचुरेशन वाले जवान मरीज भी अचानक जान गंवा बैठे, जबकि सिर्फ 26 आक्सीजन सेचुरेशन वाली वृद्धा महिला ने इच्छाशक्ति से लंबी लड़ाई लड़ा। हैप्पी हाइपोक्सिया ने कई मरीजों की जान ली। इस लहर में बेहद गंभीर मरीज अस्पतालों में पहुंचे। यह दर्दनाक था कि गंभीर मरीजों को भी बेड न होने की वजह से लौटाना पड़ा। कोरोना एक सुनामी की तरह आया, और तमाम तैयारियां धरी रह गईं। कई गंभीर मरीज बचाए भी गए। हमारी क्रिटकल केयर टीम ने एक-एक मरीज पर ध्यान दिया, लेकिन कई तब भी नहीं बचाए जा सके। अब तीसरी लहर को जागरूकता से खत्म करना होगा।