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मेरठ में खुद 'कुपोषण' का शिकार हुई मुक्ति योजना

गांवों में बचपन को कुपोषण से बचाने की योजना को अफसरों ने बनाया मजाक। समीक्षा में मंडलायुक्त ने स्थिति सुधारने के दिए निर्देश।

By JagranEdited By: Published: Sun, 01 Apr 2018 10:23 AM (IST)Updated: Sun, 01 Apr 2018 01:51 PM (IST)
मेरठ में खुद 'कुपोषण' का शिकार हुई मुक्ति योजना
मेरठ में खुद 'कुपोषण' का शिकार हुई मुक्ति योजना

मेरठ (नवनीत शर्मा)। गांवों में बचपन को कुपोषण से बचाने के लिए अफसरों को अभिभावक बनाकर जिम्मेदारी सौंपी गई थी। शासन द्वारा कुपोषण मिटाने के लिए निर्धारित एक साल की समय सीमा कागजी कार्रवाई में ही बीत गई। चयनित गांवों में अभी भी 80 फीसद बचपन कुपोषण के शिकंजे में है।

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प्रदेश सरकार ने बचपन को ग्रामीण बच्चों को कुपोषण से बचाने और गांवों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए कुपोषण मुक्त गांव योजना शुरू की थी। जिले के बडे़ अधिकारियों को दो गांव गोद देकर कुपोषण मुक्त करने की जिम्मेदारी दी गई थी। चयनित गांवों को कुपोषण मुक्ति के लिए 31 मार्च 2018 समय सीमा निर्धारित की। अब जरा योजना का हाल देखिए। तमाम फर्जी दावों और दलीलों के चलते मंडल में 482 में से 68 गांव ही कुपोषण मुक्त किए जा सके। समय खत्म होने के बावजूद 414 गांव कुपोषण का शिकार हैं। बेहतर गांवों को लिया गया गोद

योजना के तहत ऐसे गांवों को योजना में शामिल किया गया जो स्वच्छ भारत अभियान के प्रथम चरण में ही खुले में शौच मुक्त हो चुके हैं। इन गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता आदि का स्तर भी अन्य गांवों से बेहतर है। हर स्तर पर अच्छे गांवों की सूची तैयार कर शासन को भेजी गई। इसके बावजूद अधिकारियों की लापरवाही के कारण गांवों की स्थिति में कोई बड़ा सुधार नहीं हो सका। बडे़ अफसरों के गांव भी कुपोषित

योजना के तहत डीएम, सीडीओ, एडीएम और एसडीएम को मुख्य रूप से गांवों की जिम्मेदारी दी गई। मंडल में डीएम के गोद लिए गांवों में 25, सीडीओ के गांवों में 30, एडीएम के गांवों में 50, एसडीएम के गांवों में 65 और अन्य जिला स्तरीय अधिकारियों के गांवों में 500 से अधिक बच्चे अति कुपोषण का शिकार मिले। सर्वे रिपोर्ट में इतने ही बच्चों को कुपोषण मुक्त करने का भी दावा किया गया। बेअसर रही योजना

मातृ और शिशु को कुपोषण से बचाने के लिए तमाम योजनाएं शुरू की हुई हैं। इसमें गर्भवती और छोटे बच्चों के लिए हौसला पोषण योजना शुरू की है। इसमें गर्भवती की देखभाल की पूर्ण जिम्मेदारी सरकार के जिम्मे हैं। आयरन की गोली खिलाने के साथ समय-समय पर जांच और पुष्टाहार का वितरण भी कराया जा रहा है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर तमाम सुविधाएं भी बच्चों और गर्भवती के लिए उपलब्ध कराई गई हैं, लेकिन धरातल पर योजनाओं का असर गायब है।

योजना की स्थिति

-482 गांव मंडल के योजना में शामिल हैं

-241 अधिकारियों ने गोद लिए थे गांव

-68 गांव हुए कुपोषण से मुक्त

-88 गांव हुए जिले में चयनित

-6,000 गांवों में हैं कुपोषित बच्चे मेरठ मंडलायुक्त डॉ प्रभात कुमार ने बताया कि जिला स्तरीय अधिकारियों के गोद लिए गांवों को कुपोषण मुक्त करना प्राथमिकता है। पिछले दिनों की गई समीक्षा में स्थिति सुधारने के लिए संबंधित अधिकारियों को सख्ती से निर्देशित किया गया है।


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