Coronavirus: सरकारी रसोई में पक रही ‘खिचड़ी’, परदेसी परदेसी तुम आना नहीं Meerut News
प्रशासन हो या स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी हर किसी का दावा है कि अब मेरठ कोरोना मरीजों के इलाज के मामले में भी पीछे नहीं है। 373 में से अब मात्र 118 एक्टिव केस हैं।
मेरठ, [अनुज शर्मा]। जैसे कोरोना मरीजों की भरमार ने मेरठ को आगरा के बाद प्रदेश में दूसरे स्थान पर पहुंचा दिया, वैसे ही अब कोरोना मरीजों के ठीक होने की रफ्तार भी यहां खासी बढ़ी है। इसे लेकर अधिकारी सीना चौड़ा करके चल रहे हैं और अपनी पीठ ठोंक रहे हैं। हालांकि यह उनका हक है, संक्रमण और 22 लोगों की मौत पर फजीहत भी तो आखिर उन्होंने ही झेली। प्रशासन हो या स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी, हर किसी का दावा है कि अब मेरठ कोरोना मरीजों के इलाज के मामले में भी पीछे नहीं है। 373 में से अब मात्र 118 एक्टिव केस हैं। लगभग रोजाना अस्पताल से मरीजों को छुट्टी दी जा रही है। छुट्टी के साथ हिदायत भी है कि इस बार तो आप कोरोना से जीत गए हैं, इसकी बधाई लेकिन लापरवाही मत करना, दूसरों को भी समझाना कि कोरोना महामारी खतरनाक है।
याद आई घर की
कोरोना काल में जहां लोग घर में रहकर परेशान हैं वहीं नौकरी करने दूसरे जनपद, राज्यों और देशों को जाने वाले लोग वहां फंसकर। सभी अपने घर पहुंचना चाहते हैं। सरकार ने भी तमाम राज्यों से अपने लोगों को बुलाया। अन्य राज्यों के हजारों लोगों को उनके घर भी भेजा। सिलसिला जारी है। मेरठ में भी 20 से ज्यादा राज्यों के लोग रह रहे थे। सभी को उनके घर भेजा जा रहा है लेकिन अब जैसे ही दूसरे राज्यों से स्थानीय लोगों की वापसी की तैयारी हो रही है तो तमाम विभाग इसके विरोधी बन गए हैं। स्वास्थ्य समेत कई विभाग इतनी बड़ी संख्या में कामगारों को मेरठ बुलाने के पक्षधर नहीं। आशंका है कि ये फिर से कोरोना का ग्राफ बढ़ा देंगे। यह भी सच है कि किसी को भी अपने घर वापसी से रोका नहीं जा सकता है, क्वारंटाइन जरूर किया जा सकता है।
प्रभारी एक्टिव तो साहब सुपरफास्ट
मेरठ में कोरोना मरीजों की मौत से प्रदेश को भी शर्मिदा होना पड़ा है। मौत का कारण इलाज में लापरवाही था। अस्पताल की वायरल वीडियो-ऑडियो ने तो कहने के लिए कुछ बाकी ही नहीं छोड़ा। वायरल फाइलें सीएम तक पहुंचीं तो सारा अमला मेरठ आ धमका। कठघरे में जनपद प्रभारी भी आ गए। माननीयों ने अलग से जनपद का हाल प्रभारी जी को सुनाया। अब उनका गुस्सा होना लाजिमी था। बस फिर क्या, अधिकारी हों या माननीय सभी को उन्होंने रोजाना ही वीडियो कॉल से ऑनलाइन कर रखा है। जो खामियां गिनाई गईं उनकी सूची बनी। एक-एक पर रोजाना साहब लोगों से पूछताछ होती है। नतीजा भी सामने है। बदलाव दिखाई दे रहे हैं। रसोई रोजाना जांची जा रही है। क्वारंटाइन केंद्रों में गर्मी से झुलस रहे लोगों के लिए कूलर भी लगने लगे हैं। साहब सुपरफास्ट मोड में हैं। यह तेजी हमेशा बनी रहे, बेहतर।
रसोई बनी शतरंज की बिसात
लॉकडाउन में गरीबों और जरूरतमंदों की भूख मिटाने को सरकार ने जो रसोई बनवाई, वह शतरंज की बिसात बन गई है। रसोई हॉट टॉपिक है। हर किसी की नजरें यहीं जमीं हैं। ठेकेदार की काबिलियत पर सवाल उठे। ठेका प्रक्रिया और भुगतान में घोटाला बताया गया। अफसरों ने सबकुछ बदल दिया तो अब खाना सड़ने के आरोप लगने लगे। अफसर एक टॉस्क खत्म करके दम लेते नहीं कि नया तैयार मिलता है। अब रसोई के कारीगरों में कोरोना का खतरा जताया जा रहा है। माननीयों ने भी रसोई पर अंगुली उठाई थी, लिहाजा उनके घर भी सुबह-शाम खाने के पैकेट के बहाने ठेकेदार और प्रशासन की हाजिरी लगने लगी। अब तो मददगार भी अपनी क्षमता का पूरा उपयोग कर चुके हैं। जनपद के जरूरतमंदों का सारा बोझा फिलहाल प्रशासन के कंधों पर ही है। अब तो अफसरों को शांति से जरूरतमंदों की भूख मिटाने दीजिए।