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Medical College का हाल बेहाल, यहां डॉक्‍टर तो मिलेंगे..पर दवा नहीं Meerut News

इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज का रुख कर रहे हैं तो जरा संभल जाएं मेडिकल में कॉलेज में आपको डॉक्‍टर तो मिल जाएंगे लेकिन यहां से इलाज के बाद आपको दवाएं नहीं मिलेगी।

By Prem BhattEdited By: Published: Thu, 29 Aug 2019 10:37 AM (IST)Updated: Thu, 29 Aug 2019 10:37 AM (IST)
Medical College का हाल बेहाल, यहां डॉक्‍टर तो मिलेंगे..पर दवा नहीं Meerut News
Medical College का हाल बेहाल, यहां डॉक्‍टर तो मिलेंगे..पर दवा नहीं Meerut News

मेरठ, जेएनएन। पश्चिमी उप्र के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज में जल्द ही दवाएं मिलनी बंद हो जाएंगी। कर्ज के बोझ में दबे मेडिकल कॉलेज में बुखार, सिरप, उल्टी दस्त की सामान्य दवाएं भी खत्म होने की कगार पर हैं, जबकि दवा कंपनियां मेडिकल को नया स्टाक नहीं दे रही हैं। ऐसे में अब सात माह कंगाली में गुजारना होगा। शासन ने स्पष्ट कर दिया है कि दवा के लिए कोई बजट नहीं मिलेगा।

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दवा खरीद का बजट ही नहीं
मेडिकल कॉलेज को इस वर्ष दवा खरीद के लिए 12 करोड़ रुपये का बजट मिला। जिसमें से छह करोड़ रिलीज हुआ। पांच करोड़ रुपये पुरानी देनदारी में चुकाने पड़े। बजट मिला तो सात करोड़ रुपये बचेंगे, जिसमें से पांच करोड़ रुपये केमिकल खरीद का बिल भरना पड़ेगा। ऐसे में मेडिकल के पास दवा खरीद का बजट नहीं है।

हर माह पहुंच रहे एक लाख मरीज
उधर, हर माह करीब एक लाख मरीज ओपीडी से लेकर भर्ती होने तक दर्ज हो रहे हैं। मेडिकल प्रशासन ने सरकार से कई बार दवा का बजट मांगा। आपरेशन थिएटरों के लिए डिसइंफटेंट भी नहीं है। बड़ी संख्या में मरीजों को पैरासिटामॉल तक नहीं मिली। बच्चों को बुखार में दिया जाने वाला सिरप खत्म है। 50 फीसद मरीजों को काउंटर पर पूरी दवाएं नहीं मिल पा रही हैं। सर्जरी के मरीजों को हाई एंड एंटीबायोटिक बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं।

सांकेतिक कार्य बहिष्कार
मेडिकल कालेज में जूनियर डाक्टरों ने बुधवार को दोपहर दो से तीन बजे तक सांकेतिक कार्य बहिष्कार किया। इस दौरान अस्पताल में चिकित्सा व्यवस्था प्रभावित हुई। कई वार्डो में चिकित्सा ठप पड़ गई। डॉ. विनय कुमार की अध्यक्षता में सीनियर रेसिडेंट्स जूनियर रेसिडेंट्स एवं इंटर्न की टीम ने कहा कि लखनऊ के मेडिकल संस्थानों में सातवे वेतन आयोग को लागू किया गया, किंतु अन्य मेडिकल कालेजों में नहीं किया गया। ऐसे में डाक्टर इसका विरोध करेंगे। डाक्टरों ने कहा कि सप्ताहभर तक सांकेतिक हड़ताल के बाद एक डेलीगेशन प्रदेश सरकार से बात करने जाएगा। प्राचार्य को ज्ञापन दिया जा चुका है।

आंकड़े खुद दे रहे गवाही
4000 मरीज रोजाना ओपीडी में पहुंच रहे हैं
पांच साल में मरीजों की संख्या प्रति वर्ष 60,000 से एक लाख प्रति माह हो गई
275 प्रकार की दवाएं स्टोर में होती हैं
70 फीसद दवाओं की कमी
पोस्ट सर्जरी केस में एंटीबायोटिक की कमी हो गई है
12 करोड़ के बजट में सिर्फ दो करोड़ बचेगा, सात करोड़ का है खर्च
हर माह दवा पर 50 लाख व बिजली पर 60 लाख खर्च होता है

इनका कहना है
दवा की भारी कमी आ सकती है। 12 करोड़ में से छह करोड़ का बजट ही मिला। अन्य छह करोड़ में पांच करोड़ का भुगतान केमिकल आपूर्ति वाली कंपनी को देना होगा। अन्य कोई धनराशि देने से शासन ने मना कर दिया है।
- डा. आरसी गुप्ता, प्राचार्य मेडिकल कॉलेज 


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