भावनाओं से खेलता है एमडीए
मेरठ विकास प्राधिकरण जनता की भावनाओं से खेलता है। अब तो इस प्राधिकरण ने दिव्यांगों के मन को भी ठेस पहुंचा दी।
मेरठ, जेएनएन। मेरठ विकास प्राधिकरण जनता की भावनाओं से खेलता है। अब तो इस प्राधिकरण ने दिव्यांगों के मन को भी ठेस पहुंचा दी। वैसे तो प्रोजेक्ट-प्रोजेक्ट खेलने की इस संस्थान की आदत है, मगर दिव्यांगजनों को तो बख्श देना चाहिए। पिछले साल दावा किया गया कि दिव्यांगों के लिए विशेष पार्क बनाया जाएगा। पैसा भी खर्च हुआ। यहां के अधिकारी उज्जैन के पार्क का निरीक्षण भी करने गए। टेंडर भी जारी किया गया, उसके बाद जानबूझकर लटका दिया गया। बहाना वही कि धन नहीं है। ऐसे ही तीन-चार बार चौराहों के सुंदरीकरण की बात हो चुकी है। शहर में बस शेल्टर, आधुनिक शौचालय, रेन वाटर हार्वेस्टिग यूनिट, ट्रैफिक थीम पार्क, पार्कों तक एसटीपी का शोधित पानी पहुंचाना, फन पार्क, वाटर पार्क, क्रांति पार्क, जिले के मुख्य द्वार बनाने जैसे प्रोजेक्क्ट के नाम पर भी जनता को बरगलाता है एमडीए। लोग वर्षों से सुनते आ रहे हैं।
एक्सप्रेस-वे पर फिर काला साया
दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस-वे का काम अब वायु प्रदूषण की वजह से प्रभावित होना शुरू हो गया। तीन हाट मिक्स प्लांट बंद हो गए हैं, इसकी वजह से तारकोल कार्य नहीं हो पाएगा। मतलब प्रोजेक्ट पिछड़ेगा। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पिछले साल भी स्माग की वजह से काम बंद करना पड़ा, फिर बरसात ने कई बार काम बंद कराए रखा। इसी बीच किसानों का मुआवजा आंदोलन कभी भी उग्र हो जाता है, और काम रुकवा देते हैं। लाकडाउन की वजह से काम बंद करना ही पड़ा था। लक्ष्य है इसी साल 31 दिसंबर तक पूरा करने का, लेकिन अब वायु प्रदूषण ने जिस तरह से रुकावट शुरू की है, उससे यही लगता है कि काम पिछड़ेगा। इस काले साये से उबरने के लिए फिलहाल एनएचएआइ ने अपील की है कि उसके प्लांट पाबंदी से बाहर रखे जाएं। तर्क है कि वे प्रदूषण रहित हैं।
मेट्रो से जरूरी रिग रोड
शहर बड़ा है, आबादी भी ज्यादा है। भविष्य में विस्तार होगा, उसी मुताबिक मेट्रो रेल परियोजना का खाका खींचा जा रहा है। दिल्ली रोड पर मेट्रो रेल का काम चल रहा है, 2025 से यह चलने लगेगी। अब गढ़ रोड पर लाइट मेट्रो चलाने के लिए मंथन शुरू हो गया है। शहर को आधुनिक और स्थानीय यातायात को सुगम बनाने के लिए यह प्रोजेक्ट शानदार है, मगर इस प्रोजेक्ट को थोड़ा देरी से बनाया जाए तब भी काम चल सकता है, क्योंकि वर्तमान में सिटी बस, टेंपो आदि साधन हैं ही। उससे पहले अगर रिग रोड बना दी जाए तो कहीं ज्यादा जरूरत पूरी हो सकती है। शहर में बच्चा पार्क एलिवेटेड रोड के प्रस्ताव को शासन ने फाइल में दबा रखा है, लेकिन मेट्रो की फाइल तैयार कराई जा रही है। मेट्रो महत्वपूर्ण है, मगर एलिवेटेड रोड से जाम से जल्द निजात मिल सकेगी।
सीवेज शोधन ख्वाब न बन जाए
शहर के सीवेज को शोधित करने के बाद ही उसे नाले में डालने की बात कई साल से शहरवासी सुनते आ रहे हैं। सीवेज नाले से होता हुआ नदी में पहुंचता है। बातें बड़ी-बड़ी हुईं। नाले पर एसटीपी लगाने की परियोजना स्वीकृत हुई, मगर काम आगे नहीं बढ़ा। परियोजना नमामि गंगे योजना से मिली थी, फिर भी उसका अता-पता नहीं। एमडीए की आवासीय योजनाओं में 13 एसटीपी हैं जो पूरी क्षमता से इसलिए नहीं चल रहीं क्योंकि उनमें आबादी कम है। ये यदि नगर निगम को हैंडओवर हो जाएं तो तमाम कालोनियां उससे जुड़ सकती हैं। हालांकि ऐसी हवाई बातें कई साल से हो रही हैं। प्राइवेट कालोनियों को एसटीपी लगाने का दबाव भी सिर्फ नोटिस भेजकर बनाया जा रहा है, कोई कार्रवाई नहीं हो रही। नाले में खुलेआम सीवेज बहाया जा रहा है। शहरवासियों को शोधन का ख्वाब दिखाने का सिलसिला जारी है।