छत्तीसगढ़ से अपना घर-परिवार छोड़कर मेरठ में कन्या गुरुकुल की रखी नींव
रश्मि के लक्ष्य के सामने संसाधन का अभाव हमेशा रहा। वह गुरुकुल को महाविद्यालय के रूप में विकसित करना चाहती हैं।
बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ... आज यह नारा लगाने वाले लोग कई लोग मिल जाएंगे, लेकिन 18 वर्ष पहले न इसे सिर्फ सोचा गया, बल्कि इस नारे को हकीकत में मेरठ की ही माटी में बदला भी गया। बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ की रश्मि आगे आयीं और उन्होंने राजा परीक्षित की भूमि पर एक घर में पांच बालिकाओं से अपने सपने को बुनना शुरू किया और देखते-देखते उनका सपना साकार होता चला गया।
रश्मि की तपस्या आज फलीभूत हो रही है। वे कन्या गुरुकुल में देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाली बेटियों को परंपरा और संस्कार की शिक्षा तो देती ही हैं, खेलकूद में पारंगत बनाने के साथ ही साथ आधुनिक शिक्षा से भी तराश रही हैं।
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थोड़ी हटके है रश्मि की कहानी
रश्मि आर्य का यह नाम मूल नाम नहीं है, बल्कि आर्य समाज का दिया हुआ है। रश्मि की कहानी में काफी नाटकीय मोड़ हैं। एक संपन्न परिवार में जन्मीं रश्मि को किसी चीज का अभाव नहीं था, लेकिन, गरीब बच्चियों को देखतीं तो द्रवित हो उठतीं। उनके लिए कुछ न कर पाने की कसक रह जाती। परिवार से उन्हें ऐसा करने की इजाजत नहीं थी।
लिहाजा उन्होंने अपने सेवाभाव के संकल्प को पूरा करने के लिए 10 जुलाई 2000 को घर छोड़ दिया और घूमते-भटकते मेरठ आ गईं। रश्मि ने शुरुआत में सर्वे किया कि कहां की बेटियां पढ़ने नहीं जातीं। आंकड़े मिले तो उन्होंने गुरुकुल की नींव रखने का मन बनाया। शुरुआत तो रश्मि कर चुकी थीं, लेकिन पढ़ने-पढ़ाने के लिए बेटियों को कोई भेजने को तैयार नहीं था, लेकिन रश्मि को हारना पसंद नहीं। वे जुटी रहीं अपने धुन में और 22 अक्टूबर, 2007 को परीक्षितगढ़ के नारंगपुर में कन्या गुरुकुल की नींव रख दी। आज इसे श्रीमद् दयानंद आर्य कन्या गुरुकुल के नाम से जाना जाता है।
कुछ अलग हैं यहां की बेटियां
यहां की लड़कियां बाक्सिंग जानती हैं। जूडो में हाथ आजमाती हैं। निशाना भी अचूक है। डांस और म्यूजिक में तो हुनर है ही, कंप्यूटर का भी अच्छा खासा ज्ञान है। योग में निपुण हैं। कबड्डी में इनके क्या कहने... रश्मि की देखरेख में ये बेटियां नित नए कीर्तिमान के सपने संजो रही हैं। पांच की संख्या अब 60 पार कर चुकी है। आठवीं तक की पढ़ाई यहां यूपी बोर्ड से होती है।
रश्मि के एजुकेशन मॉडल में भारतीय संस्कृति के साथ आधुनिकता का पूरा मेल दिखता है। यहां की छात्राएं भारतीय संस्कृति से लबरेज हैं। वैदिक संस्कृत से हवन करती हैं। भारतीय संगीत में उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है तो इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स की भी यहां व्यवस्था है। पढ़ाई, खेल-कूद के अलावा संस्कारों की शिक्षा देने में गुरुकुल का कोई विकल्प नहीं है। यहां की छात्राएं जो उच्च कक्षा में पहुंच गई हैं, वे छोटी कक्षा की छात्राओं को पढ़ाती हैं, गाइड करती हैं।
रश्मि के गुरुकुल में छात्राओं के पढ़ने-खाने, रहने की व्यवस्था निशुल्क है। बेटियां कैसे अपने पैरों पर खड़ी हों, इसका बीज भी शिक्षा के दौरान बोया जाता है। छात्राओं को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश देखकर पिछले वर्ष स्कॉटलैंड से दो शिक्षिकाएं भी यहां आईं थीं। गुरुकुल में कई दिन रहकर छात्राओं को पढ़ाया भी। कन्या गुरुकुल केवल लड़कियों को उत्कृष्ट शिक्षा ही नहीं दे रहा है, बल्कि रश्मि लोगों की मदद से हर जरूरतमंद की सहायता भी करतीं हैं। गरीब बेटियों के हाथ पीले भी कराती हैं।
दान के दम पर दमका गुरुकुल
असल में रश्मि जो आज समाज को लौटा रही हैं, वह समाज के सहयोग से ही है। संसाधनों का रोना रोने वालों के लिए रश्मि एक सीख हैं। बेटियों का आवासीय गुरुकुल बनाना और चलाना आसान नहीं था। रश्मि ने गुरुकुल के लिए हर उस चौखट को खटखटाया और सहयोग लिया, जहां से उन्हें उम्मीद थी। आज भी रश्मि आर्या के नाम से कोई बैंक खाता नहीं है। शुरू में एक बीघा जमीन पर गुरुकुल की नींव पड़ी थी। आज आठ बीघे जमीन में गुरुकुल विस्तार ले चुका है।
योजना 20 बीघे तक फैलाने की है। रश्मि लड़कियों को निशुल्क शिक्षा देने के साथ ही आसपास के लोगों की मदद के लिए भी तैयार रहती हैं। बुजुर्ग, पीड़ित महिला की मदद भी गुरुकुल करता है। दान में मिले पैसे से वह जरूरतमंदों के मकान, शौचालय बनाने में भी सहयोग करती हैं। गुरुकुल में मेरठ और आसपास के क्षेत्र के साथ ही उड़ीसा, दिल्ली, झारखंड, उत्तराखंड की लड़कियां शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। इसमें कई छात्राओं ने विभिन्न खेलों में राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर पूरे क्षेत्र का नाम रोशन किया है।
आज सम्मान होती है, कभी अपमान होता था
रश्मि को कई मंचों पर सम्मान मिल चुका है। वे मलाला अवॉर्ड से भी नवाजीं जा चुकी हैं। वे आज एक सोशल रिफॉर्मर, एजुकेशनिस्ट जैसे विशेषणों से नवाजी जाती हैं, लेकिन दशक-डेढ़ दशक पहले तस्वीर बिल्कुल उलट थी। जब उन्हें गुरुकुल की नींव रखनी थी और उन्होंने लोगों से मदद मांगी तो बदले में उन्हें ताने मिले, अपमानित होना पड़ा। लोगों के अविश्वास और अपमान का घूंट पीते हुए आगे बढ़ रही रश्मि को जान से मारने की धमकी तक मिली, लेकिन रश्मि बढ़ती रहीं और बेटियों को पढ़ाकर आगे बढ़ाती रहीं। उनका कारवां आज भी जारी है।
गुरुकुल को महाविद्यालय बनाने की इच्छा
रश्मि के लक्ष्य के सामने संसाधन का अभाव हमेशा रहा। वह गुरुकुल को महाविद्यालय के रूप में विकसित करना चाहती हैं। छात्राओं के लिए एक गर्ल्स मेडिकल कॉलेज खोलना चाहती हैं, जहां लड़कियों को निशुल्क शिक्षा मिले और वे एक अच्छा नागरिक और डॉक्टर बनकर निकलें। जो मरीजों का शोषण नहीं, बल्कि सही तरीके से इलाज करें।
संकल्प पूरा करने को अन्न त्याग चुकी हैं रश्मि
रश्मि की इच्छा एक वैदिक गांव बसाने की है, जिसमें भारत की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता की झलक दिखे। छात्राओं और महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए रश्मि का संकल्प बड़ा है। उन्होंने मां जीवनदायिनी चिकित्सालय बनाने की इच्छा रखते हुए अनाज का त्याग कर दिया है। एक साल पांच महीने से वह दूध और सब्जी का सेवन कर रहीं हैं। इस दौरान वे बीमार भी पड़ी, लेकिन संकल्प को कमजोर नहीं होने दिया।
आज शिक्षा निजी और सरकारी के बीच बंट गई है। सरकारी शिक्षा की दशा खराब हो चुकी है। महंगे निजी स्कूलों में पढ़ा पाना सामान्य अभिभावक के बस की बात नहीं। ऐसे में छात्राओं को निशुल्क उत्कृष्ट शिक्षा देने की कोशिश की है। यहां हम उन्हें केवल पढ़ाते ही नहीं बल्कि हर विधा में दक्ष करते हैं, ताकि वह किसी भी स्तर पर खुद को कमतर न रहने दें। मेरा एक ही संकल्प है कि यहां से छात्राएं एक श्रेष्ठ संस्कार लेकर निकले।
- रश्मि आर्या
कन्या गुरुकुल एक रोल मॉडल की तरह है। यहां मैं पढ़ाई के साथ संस्कारित हुई, जिन संस्कारों को गुरुकुल में सीखा, उसे आगे मैं दूसरे बच्चों में सींचने की कोशिश कर रही हूं। गुरुकुल में पढ़ने की सबसे बड़ी शक्ति रही कि आत्मबल मजबूत हुआ।
- कल्पना, शिक्षिका
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