निःसंतान दंपत्तियों के लिए उम्मीद की किरण, भ्रूण में ही बीमारी के इलाज करने की ओर बढ़ते कदम
उनकी मंशा है कि आदमी तक उच्चस्तरीय चिकित्सा न्यूनतम खर्च में उपलब्ध हो। इसके लिए वह भी अपने केंद्र में विशेष बंदोबस्त कर रहे हैं।
डॉ. सुनील जिंदल देश के शीर्ष विशेषज्ञों में से हैं, जिन्हें अपने क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर की महारत हासिल है। शोध कार्यों में इतनी गहरी दिलचस्पी कि वह दुनियाभर में प्रजेंटेशन के लिए पहुंचते हैं। वह नि:संतान दंपत्तियों की नजर में बड़ा ओहदा रखते हैं। 51 साल के डॉ. जिंदल अब तक दो हजार से ज्यादा लैप्रोस्कोपिक और हिस्ट्रोस्कोपिक सर्जरी कर चुके हैं। वह अत्याधुनिक माइक्रो टिसे इक्सी तकनीक- 'जिन पुरुषों में शुक्राणु नहीं हैं, उनके अंडकोप में माइक्रोस्कोप से इसे खोज लिया जाता है' से इलाज करने वाले देश के शीर्ष डाक्टरों में हैं।
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डॉ. जिंदल ने मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली से एमबीबीएस और एमएस किया। नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंस से डीएनबी कोर्स पूरा किया। यूएसए और जीबी पंत हॉस्पिटल नई दिल्ली से लैप्रोस्कोपिक की ट्रेनिंग ली। उनकी मंशा है कि आदमी तक उच्चस्तरीय चिकित्सा न्यूनतम खर्च में उपलब्ध हो। इसके लिए वह भी अपने केंद्र में विशेष बंदोबस्त कर रहे हैं। वह चाहते हैं कि सभी दंपत्तियों को अपना बच्चा मिले, इसके लिए मेडिकल साइंस की हर नई तरक्की उनकी जुबान पर होती है। वह ऐसे पुरुषों को संतान प्राप्त करने में सक्षम बना रहे हैं, जिनमें शुक्राणु नहीं हैं।
आने वाले दिनों में भ्रूण की उन कोशिकाओं को निकाल दिया जाएगा, जिससे शुगर और हीमोफीलिया होती है। वह भविष्य की साइंस पर भी बड़े चाव से बात करते हैं, जब दंपत्ति मनचाही प्रतिभा से युक्त संतान प्राप्त कर सकेगी।
दिक्कतें जिनका समाधान है जरूरी
1. डॉ. सुनील जिंदल मरीज और डॉक्टर के बीच बढ़ती खाई को खतरनाक मानते हैं। इसके लिए बड़ी सामाजिक पहल की जरूरत है। भरोसा बना रहेगा तो चिकित्सा आसान होगी। क्लीनिकल इस्टैबलिशमेंट एक्ट में संशोधन के साथ लागू हो। उधर, एनएमसी एक्ट में संशोधन किया जाए, अन्यथा कॉरपोरेट सेक्टर चिकित्सा में हावी हो जाएगा, और आम जनता पिसेगी।
2. विदेशों की तर्ज पर भारत में भी पूरी आबादी को चिकित्सा बीमा के दायरे में लाया जाए। इससे गरीब मरीज को भी उच्चस्तरीय चिकित्सा संस्थानों में इलाज मिलने में आसानी होगी। सरकारी एवं निजी चिकित्सा संस्थानों के बीच गुणवत्ता का फर्क मिटेगा। भारत में बीमित आबादी सिर्फ पांच फीसद है। इसको लेकर सरकार को बड़ा फैसला करना होगा। सरकारी चिकित्सा अपग्रेड करने की आवश्यकता है।
3. मेरठ की छवि क्राइम कैपिटल से बदलकर मेडिकल हब की बनाएं। यहां पर कानून व्यवस्था चुस्त दुरुस्त हो तो पश्चिमी उप्र से लेकर उत्तराखंड तक के मरीज भी इलाज के लिए पहुंचेंगे। शहर का इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने की जरूरत है। दिल्ली से आधे खर्च में मेरठ में इलाज होता है। हॉर्ट, न्यूरो, कैंसर, किडनी और इक्सी समेत तमाम तकनीकों में मेरठ बेहद दक्ष है।
4. प्रशासन की टीम जांच के नाम पर अस्पतालों का उत्पीड़न न करे। सभी प्रकार के सर्टिफिकेट के लिए ऑनलाइन तकनीक दुरुस्त की जाए। अस्पतालों को भरोसे में लेकर उनमें पारदर्शिता बनाई जाए। इससे प्राइवेट चिकित्सा के माहौल में तेजी से सुधार होगा। जांच एवं दवाओं की गुणवत्ता का विशेष ख्याल रखना होगा।
5. गर्भवती महिलाओं में आयरन और कैल्शियम की कमी है। बच्चों में एनीमिया है, जबकि 40 फीसद बच्चों में वजन की कमी है। ऐसे में निजी अस्पतालों और डॉक्टरों को भी सरकारी अभियान से जोड़ने की जरूरत है। इस सहभागिता से ही आबादी का कायाकल्प किया जा सकता है। टीकाकरण से लेकर अन्य सरकारी योजनाओं में भागीदारी बढ़ानी जरूरी है।