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अकेले व्यक्ति ने ऐसा पार्क विकसित कर दिया जो मेरठ के सरकारी निकाय भी नहीं कर पाए

स्थानीय निवासी हरिराम बिश्नोई बताते हैं कि इस पार्क ने हमारी सोसाइटी के लोगों का जीवन बदल दिया है। ऐसा वातावरण शायद ही कहीं मिले।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Mon, 16 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 16 Jul 2018 06:00 AM (IST)
अकेले व्यक्ति ने ऐसा पार्क विकसित कर दिया जो मेरठ के सरकारी निकाय भी नहीं कर पाए

किसी स्मार्ट शहर की पहचान में उसके स्मार्ट पार्क भी गिने जाते हैं। विकास प्राधिकरण, नगर निगम और आवास विकास कोई स्मार्ट पार्क अब तक नहीं दे पाए हैं मगर इस कमी को एक सेवानिवृत्त बैंकर ने पूरा कर दिया है। महेश शर्मा ने स्थानीय लोगों की सहायता से शास्त्रीनगर के एच ब्लॉक में ऐसा पार्क विकसित किया है, जिसे देखने अफसर आते हैं और विदेशी मेहमान भी। यह पार्क ऐसा मॉडल है, जिससे सरकारी निकायों को सीख लेनी चाहिए। छोटे-बड़े पेड़ों से यह ऑक्सीजन की फैक्ट्री है तो वहीं बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के लिए खुशियों का घर भी। पार्क में गूंजता मधुर संगीत पौधों के भी जीवन में संगीत घोलता है।

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ऑक्सीजन और खुशियों का घर है यह पार्क
महेश चंद रस्तोगी 69 वर्ष की अवस्था में भी जिस जोश और जुनून के साथ पार्क को संवारने में लगे रहते हैं, उससे उनकी सोसाइटी के लोग भी आश्चर्यचकित रहते हैं। शास्त्रीनगर के एच ब्लॉक स्थित अपने घर के पास ही टैगोर पार्क को नायाब बनाने में वर्ष 1986 से जुटे हैं। जयहिंद रेजीडेंट वेलफेयर सोसाइटी के इस पार्क का यह असर हुआ है कि लोग इसे अब ऑक्सीजन और खुशियों का घर मानने लगे हैं।

सोसाइटी के महिला-पुरुष यहां सुबह पांच बजे योग करने पहुंचते हैं। शाम पांच बजे से बच्चे क्रिकेट और फुटबॉल आदि खेलते हैं। फिर 60 साल की उम्र पार कर चुके लोग एकत्र होते हैं और चाय पीते हैं। हंसी-मजाक और अनुभव साझा करने का दौर चलता है। 100 से अधिक पेड़-पौधे होने के कारण यहां चिड़ियों की चहचहाहट गूंजती रहती है।

महेश चंद रस्तोगी ने कहा, 'मैंने ऑस्ट्रेलिया में पार्क को विकसित करने का तरीका देखा था, तभी मैंने इसी तरह का पार्क विकसित करने की ठान ली थी। ड्रिप इरिगेशन, स्प्रिंकलर, लाइट एंड साउंड सिस्टम, ट्रैक, हार्वेस्टिंग आदि उसकी खासियत थे। यह सब यहां किया। 2009 में सेवानिवृत्त होने के बाद से अब पूरा समय इसी पार्क को देता हूं। मेरा मानना है कि यह शहर का पहला ऐसा पार्क है, जो सबसे अधिक ऑक्सीजन देता है। इसमें सुबह-शाम मंत्र और मधुर संगीत बजाया जाता है। इस पार्क को देखने दूर से लोग आते हैं।'

स्थानीय निवासी हरिराम बिश्नोई बताते हैं कि इस पार्क ने हमारी सोसाइटी के लोगों का जीवन बदल दिया है। ऐसा वातावरण शायद ही कहीं मिले। सुबह लोग योग करने और घूमने पहुंचते हैं। बच्चे यहां खेलते हैं और पौधों का रख-रखाव करते हैं। कॉलोनी के बुजुर्ग इस पार्क में एकत्र होकर हंसी मजाक करते हैं। इसने पर्यावरण सुधारा है और सोसाइटी को एक परिवार बना दिया है।

इसलिए इस पार्क का मॉडल है महत्वपूर्ण
इस पार्क का मॉडल महत्वपूर्ण है। इसे अपनाकर शहर के पार्कों को संवारा जा सकता है। इसमें पौधों की सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन और स्प्रिंकलर तकनीक का इस्तेमाल किया है। रेन वॉटर हार्वेस्टिंग यूनिट भी बनाया है। एक शोध में पता चला कि पौधे संगीत से स्वस्थ होते हैं और विकसित होते हैं तो उसके लिए सुबह और शाम गायत्री मंत्र तथा पुराने गाने हल्की आवाज में बजाए जाते हैं। बच्चों के खेलने के लिए झूले हैं।

इसमें नीम, चंदन, रुद्राक्ष, फाइकस, आंवला, नीम आदि के करीब 60 पेड़ हैं। वहीं पांच-छह फीट के भी पौधे हैं। मेरठ विकास प्राधिकरण ने अपने आधा दर्जन जोनल पार्कों को संवारा है और उसमें मिनी ओपन जिम खोला है, लेकिन इस तरह से उनके पार्क भी नहीं हैं। यदि इससे सीखा जाए तो शहर के सभी पार्क खिलखिला सकते हैं और शहर का जीवन बदल सकते हैं।

तबादला हुआ तो कुछ लोगों ने बेच दिए पेड़
महेश चंद स्टेट बैंक में मैनेजर रहे हैं। उनका स्थानांतरण 1998 में मेरठ से दिल्ली हो गया। जब वह कई साल वहीं रह गए तो यहां कुछ युवाओं ने पार्क के करीब 60 पॉपुलर और अन्य बड़े पेड़ों को कटवाकर बेच दिया। पार्क की देखभाल करने वाला कोई नहीं बचा। इसलिए पार्क उजड़ने लगा और खस्ताहाल हो गया। जब वह 10 साल बाद लौटे तो फिर से पार्क को संवारना शुरू किया। उधर बच्चे भी चुनौती बन गए।

बच्चे पार्क में खेलने के दौरान पौधे उजाड़ने लगे। इस पर बच्चों को ही उसका संरक्षक बनाने के लिए योजना बनाई। चार टीम बांटी गई और कहा गया कि जो बच्चा सबसे अधिक पौधे बचाएगा, उसे स्पोर्ट किट मिलेगी, इस तरह से वही बच्चे पौधे बचाने लगे। महेश चंद मानते हैं कि इस पार्क का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। काफी लोग इस पार्क को देखने आते हैं। नगर निगम के भी अफसरों ने कई बार यहां विजिट किया है। कुछ लोग इसे देखने के बाद अपने घर के लॉन को इस तरह से बेहतर करने की कोशिश करते हैं।

कोई आगे आए तो वह मदद को तैयार

महेश चंद का कहना है कि सिर्फ विकास प्राधिकरण या नगर निगम से ही सब कुछ नहीं होगा। स्थानीय लोगों को इसके लिए आगे आना होगा। किसी न किसी को लीड करना पड़ेगा। जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। तभी पार्क बचेंगे और पार्क शहर में एक मॉडल बन सकेंगे। उन्होंने कहा कि यदि कोई उनसे इस तरह के पार्क विकसित करने में उनकी मदद लेना चाहेगा तो मदद को तैयार हैं।


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