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मेरठ की सेहत के लिए डोर-टू-डोर कूड़ा उठाना और कचरा प्रबंधन जरूरी

संगल ने रेलवे रोड जैन नगर से बागपत रोड तक एलीवेटेड रोड बनाने का सुझाव दिया था, जिस पर कुछ माह पूर्व तत्कालीन कमिश्नर डॉ. प्रभात कुमार ने एमडीए और सेतु निगम को सर्वे करने का निर्देश दिया था।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Thu, 19 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 19 Jul 2018 06:00 AM (IST)
मेरठ की सेहत के लिए डोर-टू-डोर कूड़ा उठाना और कचरा प्रबंधन जरूरी

आपका शहर जैसा भी है, वह आपका है। उसका नाम और पहचान आपके नाम और पहचान के साथ भी जुड़ते हैं। शहर की तमाम कमियों से हमें परेशानी होती है और हम व्यवस्था को कोस रहे होते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो शहर को मूलभूत सुविधाएं दिलाने में योगदान करते हैं। उनकी कोशिशें रंग लाती हैं और शहर में बदलाव दिखाई देता है। उनके कार्य शहर को गौरवान्वित करते हैं।

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दैनिक जागरण का माय सिटी माय प्राइड महाभियान ऐसी सकारात्मक सोच रखने वालों के सुझाव व उनके कार्य से रूबरू करा रहा है। इसी कड़ी में शहर के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए कार्य कर रहे हैं मेरठ सिटीजन फोरम के अध्यक्ष गोरांग संगल। अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी 

शहर को इंदौर की तर्ज पर साफ व स्वच्छ रखने के लिए उन्होंने पांच मोहल्लों में डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन की शुरुआत कराई, उन्हें पायलट प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी मिली। तीन महीने तक उनका प्रोजेक्ट चला।

संगल ने रेलवे रोड जैन नगर से बागपत रोड तक एलीवेटेड रोड बनाने का सुझाव दिया था, जिस पर कुछ माह पूर्व तत्कालीन कमिश्नर डॉ. प्रभात कुमार ने एमडीए और सेतु निगम को सर्वे करने का निर्देश दिया था। कांवड़ मार्ग का निर्माण लंबे समय से रुका हुआ था। पीडब्ल्यूडी और वन विभाग के बीच धनराशि ट्रांसफर का मामला फंसा हुआ था, जिसकी वजह से काम रुका था। इस समस्या को मेरठ सिटीजन फोरम ने दिल्ली और लखनऊ संपर्क करके हल कराया, जिससे धनराशि ट्रांसफर हुई। हस्तिनापुर में चेता वाला घाट पर यमुना पुल प्रस्तावित था, लेकिन वन विभाग से संबंधित क्लियरेंस फंस गया।

इसके लिए उन्होंने दिल्ली, लखनऊ के आईजी फारेस्ट आदि से संपर्क किया तब जाकर वन विभाग से संबंधित राशि ट्रांसफर हुई और कार्य शुरू हो सका।
शहर को जाम से मुक्ति दिलाने के लिए वर्षों पहले इनर रिंग रोड का प्रस्ताव तैयार हुआ था। एमडीए के बाद इस प्रोजेक्ट को पीडब्ल्यूडी को सौंपा गया। बाद में बताया गया कि इसमें भूमि अधिग्रहण की बाधा आ रही है। इसको भी शासन से स्पष्ट करने के लिए उन्होंने प्रयास किया। तब पता चला कि समस्या शासन स्तर से धनराशि स्वीकृति की है न कि अधिग्रहण की। 

शहर के इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने में कई दिक्कतें हैं। संगल के हिसाब से प्रमुख दिक्कतें हैं:

1. वह कहते हैं कि नगर निगम की मेजर वर्किंग ठीक होनी चाहिए। जिम्मेदार अधिकारियों को सक्रिय होना पड़ेगा, तभी कार्यशैली में बदलाव आएगा। उनके सुस्त होने की वजह से बड़ी समस्या आ रही है। जनप्रतिनिधियों को शहर के लिए फंड दिलाने के लिए विशेष प्रयास शासन स्तर पर करने होंगे। दूसरी दिक्कत ये हैं कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए नियमों का पालन नहीं होता। नगर निगम के पास नगर स्वास्थ्य अधिकारी हैं जबकि इनका कार्य स्वास्थ्य से संबंधित है। इलाहाबाद व आगरा नगर निगम ने एनवायरमेंट इंजीनियर की नियुक्ति कराई है, इससे वहां बेहद सुधार हुआ है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली 2016 जरूर लागू होना चाहिए। 

2. उनका कहना है कि कूड़ा व सिल्ट समय से उठना चाहिए। इसके लिए निगम को कांपेक्टेशन मशीन का उपयोग करना होगा। जो सिल्ट से पानी अलग करके नाले में डाल देता है, जिससे सिल्ट नाले से निकालते ही डंपिंग ग्राउंड तक पहुंचाया जा सकता है। ऐसी मशीन छोटा हाथी में भी फिट किया जा सकता है। 

3. तीसरी बड़ी दिक्कत शहर में पार्किंग की है। वह कहते हैं कि शहर के मुख्य मार्गों पर भी जो व्यावसायिक भवन या अस्पताल हैं उनकी पार्किंग की जगह अन्य कार्यों में उपयोग में लाई जा रही है, जिससे वाहन सड़क पर खड़े होते हैं। इससे मुख्य मार्ग के वाहन भी अपनी गति से नहीं चल पाते।

4. चौथी बड़ी समस्या ड्रेनेज सिस्टम की है। वह कहते हैं कि ड्रेनेज सिस्टम ठीक न होने की वजह से शहर सामान्य बारिश में भी डूबने लगता है। इसके लिए नाले साफ होने चाहिए। नाले साफ रखने के लिए पूरे शहर में डोर-टू-डोर व्यवस्था जरूरी है। अन्यथा लोग नालों में कूड़ा फेंकते रहेंगे। इससे नाले जाम होते रहेंगे।

5. पांचवीं दिक्कत है सार्वजनिक परिवहन व ट्रैफिक नियमों के पालन की व्यवस्था। वह बताते हैं कि सिटी बसों की फ्रीक्वेंसी और उनके रूट इस तरह से नहीं हैं कि लोगों को सहूलियत दे सकें। इसलिए ई-रिक्शा बढ़ते जा रहे हैं। इनकी वजह से जाम की समस्या बढ़ रही है। ट्रैफिक सिग्नल सिर्फ धनराशि खर्च करने वाले प्रोजेक्ट साबित हो रहे हैं, कोई भी उसका पालन नहीं करता।


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