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महापौर सुनीता वर्मा का एक साल, शहर का वही पुराना हाल

आज से ठीक एक साल पहले शहर की सरकार बनी थी। बसपा की सुनीता वर्मा को जनता ने महापौर चुना था। एक साल बीत गया लेकिन शहर का हाल आज भी वही है।

By Ashu SinghEdited By: Published: Wed, 12 Dec 2018 11:22 AM (IST)Updated: Wed, 12 Dec 2018 11:22 AM (IST)
महापौर सुनीता वर्मा का एक साल, शहर का वही पुराना हाल
महापौर सुनीता वर्मा का एक साल, शहर का वही पुराना हाल
मेरठ, [जागरण स्पेशल]। एक साल पहले 12 दिसंबर को शहर की नई सरकार में आई थी। जनता ने इस उम्मीद के साथ यह बदलाव किया था कि शहर के हालात बदलेंगे, लेकिन हालात जस के तस हैं। गंदगी से रिश्ते के कारण रिसते जख्म से शहर कराह रहा है। जनता कूड़े के ढेर, दुर्गंध, बीमारी, जलभराव, सिल्ट से भरे खुले नाले, आवारा पशुओं के आतंक से तब भी परेशान थी और आज भी है। नई महापौर और नगर निगम बोर्ड के चयन को एक साल बीत गया, लेकिन शहर के हालात जस के तस हैं। शहर की सीवेज के ट्रीटमेंट के लिए 271 करोड़ खर्च होने के बावजूद अभी तक कोई लाभ नहीं मिल सका है। अवैध होर्डिंग और अवैध पशु कटान यहां बेरोकटोक जारी है। महापौर, पार्षद और अफसरों के अपने-अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन मुसीबतें तो जनता ङोल रही है। आइए शहर की समस्याओं और उनके समाधान के लिए हुए प्रयासों पर एक नजर डालते हैं।

कूड़ा बड़ी समस्या
कूड़ा शहर की वर्षों पुरानी समस्या है। यहां रोजाना 900 टन कूड़ा पैदा होता है, लेकिन नगर निगम को इसकी सफाई कराना और उठाकर शहर के बाहर ले जाना चुनौती है। निगम के पास लगभग 3200 सफाई कर्मचारियों की फौज और 500 से ज्यादा कूड़ा वाहन उपलब्ध हैं। फिर भी शहर गंदा रहता है। गंदगी के कारण हर साल स्वच्छता सर्वेक्षण में शहर को हार का मुंह देखना पड़ता है। वर्ष 2009 में 223 करोड़ रुपये की सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट योजना मंजूर हुई थी। इसके तहत शहर में घर-घर और चप्पे-चप्पे से कूड़ा उठाकर उसका निस्तारण किया जाना था, लेकिन विवाद के चलते कार्यदायी एजेंसी काम छोड़कर भाग गई। इसके बाद से शहर की सफाई भगवान भरोसे ही है। इस बार फिर से डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन के लिए प्रयास किया गया। लगभग 27 करोड़ रुपये से 160 छोटे-बड़े कूड़ा वाहन खरीदे गए, लेकिन इन्हें चलाने वाले चालक नहीं हैं। पुराने वाहनों के चालक ही इक्का-दुक्का वाहन को गलियों में ले जाकर घर-घर से कूड़ा उठाने की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं।
खुले नाले बने हैं काल, निगम को नहीं मलाल
शहर में वैसे तो छोटे-बड़े नालों की संख्या 500 से ज्यादा है, लेकिन 285 नाले प्रमुख हैं। ओडियन, आबूनाला, मकाचीन समेत एक दर्जन नाले विशाल हैं। ये नाले 12 महीने गंदगी से लबालब रहते हैं। इनकी सफाई के नाम पर हर साल कई करोड़ रुपया निगम के खजाने से निकाल लिया जाता है, लेकिन नालों की हालत जस की तस रहती है।

सिल्ट से लबालब हैं नाले
सिल्ट से लबालब नालों में छोटे नाले और नालियों का पानी जाने की जगह नहीं होती। लिहाजा यह पानी सड़कों पर भरा रहता है। दूसरा बड़ा संकट इन खुले नालों का असुरक्षित होना है। इसमें हर साल 12 से 18 तक मासूम बच्चे, वाहन चालक व अन्य जिंदा इंसान समा जाते हैं। मासूम लोगों की जान बचाने के लिए नालों को ढकने की बातें भी लंबे समय से की जा रही हैं। कई बार प्रोजेक्ट भी बने लेकिन एक भी परवान नहीं चढ़ सका।
नालों को ढकने की योजना ठंडे बस्ते में
सपा सरकार में नगर विकास मंत्री तथा मेरठ के प्रभारी मंत्री आजम खां ने 407 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट से नालों को ढकने की घोषणा की थी। एमडीए ने भी आबूनाले को ढकने का लगभग 550 करोड़ का प्रोजेक्ट तैयार करके शासन को भेजा था। उसपर अभी तक कोई फैसला नहीं हो सका है। नाले में गिरकर 12 साल के मंदबुद्धि बच्चे की मौत के बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो नगर निगम ने शहर के खुले नालों की दीवारें ऊंची करने और लोहे के जाल से ढककर सुरक्षित करने की योजना पेश की, लेकिन इसे शासन के पास भेजकर धनराशि की मांग की। शासन का आज तक कोई जवाब निगम को नहीं मिल सका है। कोर्ट में कार्रवाई शांत होते ही निगम भी इसे भूल गया है।
कूड़े पर शासन और अफसर शहर से कर रहे मजाक
मेरठ शहर में रोजाना कूड़ा उत्पादन की मात्रा बढ़ती जा रही है। वर्षों से शहर में कूड़ा तो पैदा हो रहा है, लेकिन उसके निस्तारण की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। फिलहाल 900 टन कूड़ा रोजाना पैदा हो रहा है। इसे लंबे समय से शहर के चारों ओर खुले इलाकों में डाला जा रहा है। गांवड़ी, मंगतपुरम और कंकरखेड़ा में कूड़ा डालने के विरोध में जनता खड़ी हो गई है। लिहाजा तीनों स्थानों पर कूड़ा डाला जाना बंद है। हापुड़ रोड पर लोहियानगर के पास भी जनता ने विरोध किया, लेकिन पुलिस-प्रशासन ने लोगों की आवाज को दबा दिया। वर्तमान में लोहियानगर और कंकरखेड़ा में मार्शल पिच के पास कूड़ा डाला जा रहा है। शहर में 50 लाख टन से ज्यादा कूड़ा जमा हो चुका है। नगर निगम प्रशासन कूड़ा डालने के लिए तो परेशान है, लेकिन कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था करना उनके एजेंडे में नहीं है।

प्लांट लगवाने की प्रक्रिया परवान नहीं चढ़ी
कूड़ा से बिजली, सीएनजी और खाद बनाने के लिए प्लांट लगवाने की प्रक्रिया तो वर्ष 2009 से चल रही है, लेकिन परवान नहीं चढ़ पा रही है। वर्ष 2009 में जेएनएनयूआरएम मिशन के तहत एटूजेड एजेंसी ने काम शुरू किया। 220 करोड़ की योजना के बावजूद विवाद के चलते एजेंसी ने काम बंद कर दिया। पूर्व बोर्ड ने सोलापुर महाराष्ट्र की एजेंसी आर्गेनिक रीसाइक्लिंग सिस्टम प्रा. लि. का चयन किया। 800 टन क्षमता के प्लांट का शिलान्यास कराया। शासन की स्वीकृति के लिए दो वर्ष तक इंतजार करना पड़ा। शासन ने प्रोजेक्ट को स्वीकृति तो दी, लेकिन नए सिरे से एजेंसी के चयन की शर्त के साथ। अब शासन का नया फरमान आया है। नई एजेंसी आइएल एंड एफएस का चयन करके सीधे उससे काम कराने का आदेश निगम प्रशासन को मिला है। यह एजेंसी आरबीआइ की कर्जदार बताई जा रही है। शहर में अभी जल्द कूड़ा निस्तारण की उम्मीद करना बेमानी है। वहीं शहर के बाहर चारो ओर कूड़े के पहाड़ खड़े हैं, उनके आसपास रहने वाले लोग दरुगध, धुएं और बीमारियों से परेशान हैं।

जो वादे किए थे उन्हें पूरा किया : महापौर
महापौर सुनीता वर्मा का दावा है कि वह अपने एक वर्ष के कार्यकाल से संतुष्ट हैं। जनता से सभी वार्डो में एक समान विकास का वादा किया था, जिसे पूरा किया है। स्ट्रीट लाइट, पेयजल व अन्य समस्याओं का प्राथमिकता पर समाधान कराया जा रहा है। प्रत्येक सप्ताह चार वार्डो में विशेष सफाई हो रही है। इन क्षेत्रों में कभी निगम के अधिकारी नहीं पहुंचे। अब गली-गली में सफाई कराई जा रही है। कहा कि निगम के अधिकारी यदि पूरा साथ दें तो शहर को सबसे स्वच्छ शहर बनाया जा सकेगा।

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