लक्षण रहित मरीजों में भी मिल रहा लंग्स फाइब्रोसिस
अगर कोरोना छूकर निकल गया यानी एसिम्टोमेटिक मरीज बनकर ठीक हो गए तब भी सावधान रहने की जरूरत है।
मेरठ, जेएनएन। अगर कोरोना छूकर निकल गया, यानी एसिम्टोमेटिक मरीज बनकर ठीक हो गए, तब भी सावधान रहने की जरूरत है। लक्षणरहित मरीजों में भी लंग्स फाइब्रोसिस मिलने से डाक्टर हैरान हैं। क्लीनिकों में ऐसे मरीज पहुंच रहे हैं, जिन्हें कोरोना का लक्षण नहीं था, लेकिन अब सास फूलने और छाती में दर्द उभर रहा है। जाच में पता चल रहा है कि वायरस ने लंग्स की कोशिकाओं को घातक चोट पहुंचाई है। व्यक्ति की उम्र कम हो सकती है।
फेफड़ों में मिलने लगी सूजन
मेडिकल कालेज में अब तक 1900 से ज्यादा मरीज भर्ती हुए, जिसमें से 429 की मौत हो गई। एल-3 केंद्र होने की वजह से यहा पर ज्यादातर गंभीर मरीजों का इलाज हुआ, लेकिन बड़ी संख्या में एसिम्टोमेटिक मरीज भी ठीक हुए। इनमें से कई मरीजों में सास फूलने की शिकायत मिल रही है। मेडिकल कालेज का कम्युनिटी मेडिसिन विभाग पोस्ट कोविड सिंड्रोम पर शोध कर रहा है। क्लीनिकों पर पहुंचे तो डाक्टर ने हिस्ट्री पता की। कोरोना संक्रमण की जानकारी मिलने पर छाती का एक्स रे और सीटी जाच कराई गइ, जिसमें फेफड़ों में सूजन मिली। फेफड़े का लचीलापन कम होने से शरीर में आक्सीजन घटने लगती है।
14 दिन से एक माह में उभरता है लक्षण
कोरोना मरीजों में से 85 फीसद सामान्य, जबकि 15 फीसद को भर्ती होने की जरूरत होती है। महज पाच फीसद में गंभीर लक्षण मिलते हैं, जिसमें एक फीसद से कम लोग वेंटीलेटर पर जाते हैं। निमोनिया सात से 14 दिनों में ठीक हो जाता है, जिसमें करीब एक माह बाद सूखी खासी, सास की तकलीफ, जोड़ों में दर्द, हार्ट अटैक, लकवा और फेफड़े में सिकुड़न जैसे लक्षण आते हैं। ज्यादातर में बीमारी ठीक हो जाती है, लेकिन 15-20 फीसद में निमोनिया फेफड़ों में फाइब्रोसिस बना देती है। मेडिकल कालेज के सास एवं छाती रोग विशेषज्ञ डा. संतोष मित्तल कहते हैं कि ऐसे लक्षण एसिम्टोमेटिक मरीजों में भी मिल रहे हैं।
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-ऐसे समझें..क्या है लंग्स फाइब्रोसिस
जैसे खाल पर चोट लगने के बाद ठीक होने पर वहा सख्त और सिकुड़न वाली खाल आ जाती है। इस बार एक बाल भी नहीं उगता। त्वचा जल जाने के बाद कई बार अंगुलिया आपस में चिपक जाती हैं। उसी प्रकार, फेफ़ड़े भी मुलायम स्पंज के बने होते हैं। इसमें लाखों महीन अल्वोलाई होते हैं, जहा आक्सीजन व कार्बन डाई आक्साइड का आदान प्रदान होता है। कोरोना संक्रमण में इसे ठीक करने के लिए प्राकृतिक रूप से सूजन बनती है। अल्वोलाई में गाढ़ा द्रव्य भर जाता है। कई बार यही द्रव्य सूखकर फेफड़ों में चिपक जाता है। ऐसे में फेफड़ा सख्त होकर लोच खो देता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
कोरोना का निमोनिया 15 फीसद मरीजों में लग्स फाइब्रोसिस कर सकता है। जिससे फेफड़े की कार्यक्षमता घटने से व्यक्ति की आक्सीजन पर निर्भरता बढ़ती है। ठीक होने वाले मरीज आक्सीजन चेक करते रहें। इसकी मात्रा 96 फीसद से कम नहीं होना चाहिए। फेफड़ों में इटली, चीन, भारत एवं यूएसए में बड़ी संख्या में ऐसे मरीज हैं, जिन्हें निमोनिया ठीक होने के बाद लंग्स फाइब्रोसिस हुई। बाद में उन्हें वेंटीलेटर पर जाना पड़ा। कई को ट्रासप्लाट की भी जरूरत हुई।
-डा. राजकुमार, सीएमओ एवं सास व छाती रोग विशेषज्ञ
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पल्मोनरी फाइब्रोसिस को शुरुआती अवस्था में पकड़ने से इलाज संभव है। छह मिनट तेज चलने के बाद अगर शरीर में आक्सीजन चार फीसद से ज्यादा गिर रही है तो यह फाइब्रोसिस हो सकता है। कोरोना के एसिम्टोमेटिक मरीजों में भी इसका खतरा मिलना चौंकाने वाली बात है। छाती के हाई रिजोल्यूशन सीटी स्कैन से यह बीमारी आसानी से पकड़ में आई। दो दवाएं फाइब्रोसिस रोकने में कारगर मिली हैं। कोविड निगेटिव होने के छह माह तक चिकित्सक के संपर्क में रहें।
-डा. वीरोत्तम तोमर, सास व छाती रोग विशेषज्ञ।