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कुंडल या वलयाकार दिखाई देंगे भगवान भास्कर

21 जून को वर्ष का पहला सूर्यग्रहण दिखाई देगा। यह ग्रहण कुंडलाकार ग्रहण होगा जिसमें सूर्य की आकृति वलयाकार दिखेगी। जब ग्रहण अपने चरम पर होगा तो सूर्य चमकते हुए कंगन या फिर अंगूठी की तरह नजर आएगा। यह ग्रहण भारत के सभी हिस्सों में साफतौर पर देखा जा सकेगा।

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Jun 2020 06:00 AM (IST)Updated: Fri, 19 Jun 2020 06:05 AM (IST)
कुंडल या वलयाकार दिखाई देंगे भगवान भास्कर
कुंडल या वलयाकार दिखाई देंगे भगवान भास्कर

मेरठ, जेएनएन। 21 जून को वर्ष का पहला सूर्यग्रहण दिखाई देगा। यह ग्रहण कुंडलाकार ग्रहण होगा, जिसमें सूर्य की आकृति वलयाकार दिखेगी। जब ग्रहण अपने चरम पर होगा तो सूर्य चमकते हुए कंगन या फिर अंगूठी की तरह नजर आएगा। यह ग्रहण भारत के सभी हिस्सों में साफतौर पर देखा जा सकेगा। कुछ ऐसा ही सूर्यग्रहण 25 साल पहले वर्ष 1995 में भी दिखा था, तब दिन में ही अंधेरा हो गया था। उधर, तीन सिंतबर तक शनि वक्रीय है, ऐसी स्थिति में प्राकृतिक आपदा के साथ ही युद्ध और देश में अशांति की स्थिति बनी रहेगी।

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इस समय लगेगा ग्रहण

21 जून की सुबह 10.14 बजे से दोपहर 1.55 बजे तक सूर्यग्रहण रहेगा। कंकण सूर्यग्रहण का नजारा भारत सहित अन्य कई देशों में देखा जा सकेगा। इसका सूतक 20 जून रात 10 बजे से शुरू हो जाएगा। इस समय मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाएंगे। ग्रहण काल में पूजा-पाठ नहीं किया जाता है। इस समय इष्टदेवों का ध्यान करें और ग्रहण काल समाप्त होने पर स्नान के बाद दान का विधान है।

क्या है कंकणाकृति ग्रहण

कंकणाकृति ग्रहण के समय सूर्य एक कंगन की तरह नजर आता है। इसलिए इसे कंकणाकृति ग्रहण भी कहा जाता हैं। इससे पहले साल 1995 के पूर्ण ग्रहण के समय भी ऐसा ही हुआ था।

रोचक है चांद से सूर्य का ढकना

यह रोचक है कि चंद्रमा का आकार सूर्य से काफी छोटा है, लेकिन जब ग्रहण लगता है तो पृथ्वी से देखने पर दोनों का आकार बराबर दिखाई देता है, और चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है। साथ ही सूर्य की किरणें भी पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाती हैं। मेरठ में ग्रहण की परछाई 93 फीसदी नजर आएगी। इसे सोलर प्रोजेक्टर से देखा जा सकता है।

तीन तरह के होते हैं ग्रहण

जब चंद्रमा धरती के निकट होता है, और सूर्य बीच में आता है तो चंद्रमा उसे पूर्ण रूप से ढक लेता हैं। ऐसी स्थिति में पूर्ण सूर्यग्रहण होता है। आंशिक सूर्यग्रहण में सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा इस तरह से आ जाता है कि वह सूर्य का पूरा भाग ढक नहीं पाता। यह ग्रहण पृथ्वी के कुछ भागों में ही दिखाई देता है। रिग या कंगन के आकार के ग्रहण को वलयाकार ग्रहण कहते है। इसमें ऐसा महसूस होता है, जैसे सूर्य के बीच में एक काला गोल घेरा बन गया हो। इसमें सूर्य छल्ले की तरह चमकता है। लंबे समय बाद ऐसा सूर्यग्रहण पड़ रहा है। इसे गर्भवती को देखने की मनाही है। इस समय लोग पूजा-पाठ कर अपने इष्टदेवों का ध्यान करें। बाद में दान करना उचित रहता है।

-पंडित श्रवण झा, दयालेश्वर मंदिर न्यू मोहनपुरी

उत्तर भारत में पिछले दस सालों में दिखाई देने वाला यह पहला सूर्यग्रहण है। इस सूर्यग्रहण में 93 फीसद सूर्य को चंद्रमा ढक लेगा।

-दीपक शर्मा, समन्वयक जिला विज्ञान क्लब 1090 वर्ष बाद सूर्यग्रहण पर ग्रह नक्षत्रों की वक्रीय युति

21 जून को वर्ष का सबसे बड़ा दिन होगा। ग्रहण के समय मिथुन राशि में सूर्य, चंद्र, राहु ग्रह वक्रीय बुध के साथ होंगे। अग्नि तत्व मंगल, मृत्यु कारक अष्टम भाव में जल की मीन राशि में बैठकर, ग्रहण वाली मिथुन राशि के चारों ग्रहों पर दृष्टि डाल रहे होंगे। इससे शोक, संताप, संक्रमण, लाइलाज बीमारी, महंगाई में बढ़ोत्तरी के योग हैं। ग्रहण के पांच दिन बाद मघा नक्षत्र और शुक्र के संयोग से समुद्री तूफान के योग हैं। यह संयोग 1090 वर्ष बाद बन रहे हैं।

-भारत भूषण, ज्योतिषविद ग्रहण के 12 घंटे पहले सूतक शुरू हो जाएगा। मंदिरों में पूजा-अर्चना नहीं होगी। 12 राशियों पर इसका विपरीत प्रभाव रहेगा।

-विभोर इंदुसुत, ज्योतिषविद।


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