आधा दर्जन सीटों पर नए चेहरे उतारेगी भाजपा
-भाजपा की मासिक सर्वे रिपोर्ट में तमाम सांसद फेल गठबंधन से कैसे मुकाबला -वोटरों से कने
-भाजपा की मासिक सर्वे रिपोर्ट में तमाम सांसद फेल, गठबंधन से कैसे मुकाबला
-वोटरों से कनेक्ट भी नहीं बना सके, चुनावी वर्ष में जनता के बीच पहुंची योजनाएं
संतोष शुक्ल, मेरठ: चुनावी समर में नए सूरमा भगवा रथ हांकते नजर आएंगे। पश्चिमी उप्र की आधा दर्जन सीटों पर बदलाव की बयार तेज है। पार्टी के आंतरिक सर्वे में तमाम दिग्गज धड़ाम मिले हैं। विकास एवं जनता से कनेक्टिीविटी के पैमाने पर तमाम सांसद खरे नहीं उतरे हैं। सपा-बसपा में गठबंधन और कांग्रेस की तेज घेरेबंदी को भेदने के लिए भाजपा नए चेहरों में संभावनाएं तलाश रही है। इधर, सांसदों ने अपना टिकट बचाने के लिए क्षेत्रों में भागदौड़ तेज कर दी है।
..विकास पर देर से
2014 में मोदी लहर उफान पर थी। भाजपा ने जिसे भी टिकट दे दिया, वो सब संसद की सीढि़यों तक पहुंच गए। इस बार परिस्थितियां अलग है। राष्ट्रीय स्तर पर मोदी बेशक सबसे बड़े राजनीतिक सूरमा बने हुए हैं, यह बात उनके सांसदों पर लागू नहीं हो रही है। ज्यादातर सांसद जनता से कनेक्ट नहीं बना पाए। सांसद आदर्श गांव का माडल फेल रहा। विकास कार्य भी इतनी देर बाद शुरू किए गए, जब तक चुनावी हवा में बहनी शुरू हो चुकी थी। कई सांसदों ने विकास कराया तो उसके बताने के लिए जनता के बीच संपर्क नहीं साधा पाए। पार्टी के सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह हर माह समीक्षा कर रहे हैं। पश्चिमी उप्र की आधा दर्जन सीटों पर बदलाव के बादल मंडराने लगे हैं। प्रदेश के करीब 40 सांसद उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं।
पश्चिमी उप्र में रिस्क नहीं लेगी भाजपा
पश्चिमी उप्र से चुनावी शंखनाद को भाजपा लकी मानती है। 2014 लोकसभा और 2017 विस चुनावों में पार्टी को इसका फायदा भी मिला। सियासी पंडितों का कहना है कि पश्चिम से उठी बयार पूर्वाचल तक असर दिखाती है। इस क्षेत्र में मुस्लिम मतों की बड़ी तादाद व मायावती की मजबूत पकड़ पार्टी के लिए कड़ी चुनौती साबित होगी। गठबंधन में पश्चिमी उप्र की ज्यादातर सीटों पर बसपा चुनावी मैदान में है, जहां भाजपा को राजनीतिक ब्रहमास्त्र चलाना होगा। पार्टी ने माना है कि सांसद इस कसौटी पर खरे नहीं उतरेंगे।
चुनावी आहट हुई तो भागने-दौड़ने लगे माननीय
मोदी फैक्टर पर जीते सांसदों का क्षेत्र में रिकार्ड कमजोर मिला। 2017 विस चुनावों में भी सांसदों की भूमिका खास नहीं थी। भाजपा कार्यकर्ता भी मानते हैं कि पश्चिम में कोई अतिरिक्त विकास नहीं हुआ, जिसे सांसद की देन कहा जा सके। ज्यादातर योजनाएं केंद्र सरकार की देन हैं। चुनावी हवा चलने के बाद बुलंदशहर सांसद भोला सिंह, अमरोहा के कंवर सिंह तंवर, सांसद राजेंद्र अग्रवाल, नगीना सांसद डा. यशवंत, सहारनपुर सांसद राघव लखनपाल ने क्षेत्र में संपर्क तेज कर दिया है। डा. यशवंत गत दिनों पार्टी से बगावत की मुद्रा में थे, किंतु गडकरी की सभा में सुर बदले नजर आए। बिजनौर सांसद कुंवर भारतेंदु को भी बदला जा सकता है। हालांकि सांसदों के खाते में चुनावी वर्ष में चंद उपलब्धियां जुड़ी हैं, किंतु जनता इसे ज्यादा तवज्जो नहीं देगी।
कैराना पर असमंजस
मुजफ्फरनगर सांसद डा. संजीव बालियान का जनता से कनेक्ट बेहतर है। केंद्रीय मंत्री डा. सत्यपाल सिंह और डा. महेश शर्मा विकास और जनता से कनेक्ट का सामंजस्य बनाने में कुछ हद तक सफल नजर आ रहे हैं। उधर, दो बार हारने के बावजूद कैराना में मृगांका सिंह ने चुनावी उम्मीदों को बरकरार रखते हुए जनता से कनेक्ट बढ़ाया है। हालांकि यहां से हुकुम सिंह के भतीजे अनिल चौहान ने भी दावा जताया है। रामपुर सांसद अपने बेटे के लिए पैरवी कर रहे हैं। मुरादाबाद के सर्वेश सिंह पुराने कार्यकर्ता हैं, जिनके बारे में पार्टी अंत में निर्णय लेगी।