फिटनेस का मंत्र : जुनून के हौसलों से हमने जीती है जिंदगी की जंग Meerut News
इनके जज्बे को सलाम है गोली लगने जन्म से बिजली के झटके से सड़क दुर्घटना से शरीर का एक या कुछ अंग गंवाने के बाद भी दिव्यांग खिलाड़ियों का हौसला कायम रहा।
By Edited By: Published: Fri, 30 Aug 2019 04:00 AM (IST)Updated: Fri, 30 Aug 2019 03:26 PM (IST)
मेरठ, [अमित तिवारी]। मेरठ के दिव्यांग खिलाडिय़ों ने जुनून से फिटनेस को अपना हथियार बनाकर ढेरों पदक के साथ दुनिया का दिल भी जीत लिया। गोली लगने, जन्म से, बिजली के झटके से, सड़क दुर्घटना से शरीर का एक या कुछ अंग गंवाने के बाद भी उनका हौसला कायम रहा। आत्मविश्वास से लबालब मजबूत मन ने उठने को प्रेरित किया तो वह आज सही मायने में फिटनेस का मंत्र ही बन गए। इन्हें देख ऐसे और भी दिव्यांग अब खिलाड़ी बनने लगे हैं।
ऊंचा कूदना ही लक्ष्य
पैरा एथलीट रवि कुमार यादव साल 2005 में बिजली के झटके से दाहिना हाथ व दोनों पांव के अंगूठा गवां बैठे। साल 2016 में खेल को सहारा बनाया और ऊंची कूद का अभ्यास शुरू किया। चार सालों में रवि ने जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी रजत पदक जीता।
शरीर टूटा पर हौसला नहीं
पैरा एथलीट फातिमा पांच जुलाई 2016 को सड़क दुर्घटना का शिकार हुई। पूरे शरीर में 200 स्टिचेज पड़े और दाहिना पैर कमजोर हो गया। एक साल बाद पांच जुलाई 2017 को खेल के मैदान में पहुंची। शारीरिक फिटनेस पर मेहनत की और डिस्कस थ्रोवर बनी। इसी साल मई में चीन में आयोजित वल्र्ड ग्रांड प्रिक्स में कांस्य पदक जीता।
रीढ़ में गोली लगी, हाथ मजबूत कर लिया
साल 2003 में छेड़खानी का विरोध करने पर बदमाशों ने प्रदीप कुमार की पीठ पर गोली मार दी थी। इसके बाद व्हील चेयर का सहारा लेना पड़ा। साल 2017 में खेल को चुना। जैवलिन थ्रोवर बने। नेशनल में रजत पदक जीता और अब दो से 15 नवंबर तक होने जा रही वल्र्ड चैंपियनशिप के लिए भी क्वालीफाई कर चुके हैं।
दृष्टिबाधित होकर भी दौड़ते हैं
साल 2006 में चोट के बाद इलाज के दौरान दोनों भाई नितिन व गौरव की आंख की रोशनी चली गई। आंख के साथ जीवन में भी अधियारा छाने लगा तभी दृष्टिबाधित दौड़ की जानकारी मिली। फिर 200, 400 और 800 मीटर की दौड़ लगानी शुरू की और प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता में पिछले दिनों स्वर्ण पदक जीते। दोनों भाई बीए की पढ़ाई भी रहे हैं।
हाथ नहीं तो क्या, दौडऩा तो पैर से ही
जन्म से ही रिया सिंह का आधा बांया हाथ नहीं है। पढ़ाई के साथ ही रिया ने पिछले साल दिव्यांगता की छाया को हटाया और दौडऩा शुरू किया। वह 400 व 800 मीटर की दौड़ लगाती हैं। इस साल रिया ने प्रदेश स्तरीय पैरा एथलेटिक्स प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता है।
ऊंचा कूदना ही लक्ष्य
पैरा एथलीट रवि कुमार यादव साल 2005 में बिजली के झटके से दाहिना हाथ व दोनों पांव के अंगूठा गवां बैठे। साल 2016 में खेल को सहारा बनाया और ऊंची कूद का अभ्यास शुरू किया। चार सालों में रवि ने जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी रजत पदक जीता।
शरीर टूटा पर हौसला नहीं
पैरा एथलीट फातिमा पांच जुलाई 2016 को सड़क दुर्घटना का शिकार हुई। पूरे शरीर में 200 स्टिचेज पड़े और दाहिना पैर कमजोर हो गया। एक साल बाद पांच जुलाई 2017 को खेल के मैदान में पहुंची। शारीरिक फिटनेस पर मेहनत की और डिस्कस थ्रोवर बनी। इसी साल मई में चीन में आयोजित वल्र्ड ग्रांड प्रिक्स में कांस्य पदक जीता।
रीढ़ में गोली लगी, हाथ मजबूत कर लिया
साल 2003 में छेड़खानी का विरोध करने पर बदमाशों ने प्रदीप कुमार की पीठ पर गोली मार दी थी। इसके बाद व्हील चेयर का सहारा लेना पड़ा। साल 2017 में खेल को चुना। जैवलिन थ्रोवर बने। नेशनल में रजत पदक जीता और अब दो से 15 नवंबर तक होने जा रही वल्र्ड चैंपियनशिप के लिए भी क्वालीफाई कर चुके हैं।
दृष्टिबाधित होकर भी दौड़ते हैं
साल 2006 में चोट के बाद इलाज के दौरान दोनों भाई नितिन व गौरव की आंख की रोशनी चली गई। आंख के साथ जीवन में भी अधियारा छाने लगा तभी दृष्टिबाधित दौड़ की जानकारी मिली। फिर 200, 400 और 800 मीटर की दौड़ लगानी शुरू की और प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता में पिछले दिनों स्वर्ण पदक जीते। दोनों भाई बीए की पढ़ाई भी रहे हैं।
हाथ नहीं तो क्या, दौडऩा तो पैर से ही
जन्म से ही रिया सिंह का आधा बांया हाथ नहीं है। पढ़ाई के साथ ही रिया ने पिछले साल दिव्यांगता की छाया को हटाया और दौडऩा शुरू किया। वह 400 व 800 मीटर की दौड़ लगाती हैं। इस साल रिया ने प्रदेश स्तरीय पैरा एथलेटिक्स प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता है।
Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें