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केरल डूबा तो रोनू मजूमदार ने बजाना बंद किया राग मियां की मल्हार

स्पिक मैके के कार्यक्रम में बांसुरी वादक पंडित रोनू मजूमदार ने छेड़ी जादुई तान। कोल्लम में मेघ मल्हार बजाने पर हुई थी बारिश, अब इस वर्षाकाल में नहीं छेड़ेंगे ये राग। दर्शकों की फरमाइश पर खोला राज, कहा फिर बिगड़ सकता है बादलों का मूड।

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Aug 2018 02:50 PM (IST)Updated: Tue, 28 Aug 2018 02:50 PM (IST)
केरल डूबा तो रोनू मजूमदार ने बजाना बंद किया राग मियां की मल्हार
केरल डूबा तो रोनू मजूमदार ने बजाना बंद किया राग मियां की मल्हार

मेरठ (संतोष शुक्ल)। भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रकृति से सीधा संवाद करती है। कहते हैं कि तानसेन राग दीपक गाकर भयंकर गर्मी पैदा कर देते थे। बैजू बावरा मल्हार छेड़कर बारिश करा देते थे। आज के जमाने में यकीन करना भले मुश्किल है, किंतु मशहूर बांसुरीवादक पंडित रोनू मजूमदार ने भी ऐसा ही एक प्रसंग छेड़ा है। उन्होंने जिस दिन केरल के कोल्लम में राग 'मेघ मल्हार' की सरगम छेड़ा, उसी दिन से शुरू बारिश में सूबा डूब गया। अब रोनू ने इस वर्षाकाल में यह राग बजाने से तौबा कर लिया है।

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कोल्लम में बजाते ही झमाझम

मैहर घराने के प्रसिद्ध बांसुरीवादक पंडित रोनू मजूमदार ने दावा किया कि भारतीय संगीत में ऋतुओं के प्रभावित करने की क्षमता होती है। मेरठ में एक कंसर्ट के दौरान जब पंडित रोनू से श्रोताओं ने वर्षाकाल का राग बजाने की फरमाइश की तो उन्होंने हाथ जोड़ लिए। कहा कि केरल में मानसून के दौरान मेघ मल्हार बजाने के बाद वह इस ऋतु में फिर से इसे नहीं दोहराएंगे। बताया कि एक पखवाड़ा लोगों की फरमाइश और मानसून को देखते हुए केरल में गंभीर प्रकृति का राग मेघ मल्हार का घंटेभर वादन किया था। इसके बाद बादलों की उमड़-घुमड़ तेज हुई और बारिश सूबे पर कहर बनकर बरसी। संगीत साधकों की मानें तो पंडित मजूमदार के होठों पर बांसुरी गाने लगती है।

खमाज है पसंदीदा राग

मेघ मल्हार और खमाज पंडित जी के पसंदीदा रागों में हैं। इस बारे में उन्होंने कहा कि मैं पूरा यकीन करता हूं कि साधना में डूबा संगीत मौसम में परिवर्तन की क्षमता रखता है। उन्होंने माना कि बारिश की कोई भी वजह क्यों न हो, किंतु केरल के बाद दर्जनों कंसर्ट में उन्होंने इस राग में फिर नहीं बजाया। यहां तक कि लोकसंगीत एवं उपशास्त्रीय गायन के अंतर्गत आने वाली कजरी एवं अन्य धुनों से भी परहेज कर रहे हैं।

क्या है मियां मल्हार

यह काफी थाट का राग होता है, जिसके अवरोह में 'ध' व‌र्ज्य स्वर है। ग कोमल और दो नि लगाने का भी प्रचलन है। इसमें मध्यम एवं षडज का ज्यादा इस्तेमाल होता है। यह मध्यम सप्तक के पूर्वाग में खिलने वाला गंभीर राग है। हालांकि इसे रात्रि के दूसरे प्रहर में गाते हैं, किंतु महफिलों में इसे वर्षाऋतु में किसी भी समय गाया जाता है। कर्नाटक संगीत में इसे 'माधायामावती' राग कहते हैं। तानसेन ने मियां की मल्हार शुरू की। गौड़ मल्हार, बसंत, खमाज से सभी वर्षा के राग हैं।


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